आलेख : काले धन से कारगर लड़ाई की ओर – अरुण जेटली

rupee-getty_05_10_2015कोई भी समाज अनंतकाल तक एक ऐसा सिस्टम जारी नहीं रख सकता, जहां आय अर्जित करने वाले टैक्स चोरी को जीने का एक तरीका मानते हों। दु:ख की बात है कि हमने अतीत में ऊंची टैक्स दरों की जो प्रणाली अपनाई, उसने टैक्स चोरी को बढ़ावा ही दिया। जिन देशों में सरकारें अपने लोगों पर वाजिब टैक्स लगाती हैं, वहां वे उन्हें ईमानदारी से अपनी आय घोषित करने के लिए समझा सकती हैं। आजादी के बाद के शुरुआती दशकों में भारत ने ऊंचे कर लगाए, जिससे लोगों को अपनी आय छिपाना बेहतर लगा। सरकारों की कर चोरी को पकड़ पाने की क्षमता भी पर्याप्त नहीं थी। लेकिन पिछले कुछ समय से भारत ने धीरे-धीरे टैक्स की उदार दरों की ओर से कदम बढ़ाए हैं।

राजग सरकार की यह प्रतिबद्ध नीति रही है कि मध्यम और कम आय वाले समूहों की जेबों में ज्यादा से ज्यादा पैसा दिया जाए। इसके लिए छूट की सीमा में बढ़ोतरी और बचत को प्रोत्साहन देने की नीति को अपनाया गया है। इससे खपत बढ़ेगी और सिस्टम में ज्यादा पैसा भी आएगा। खपत से अप्रत्यक्ष करों की मात्रा में बढ़ोतरी होती है। भारत को निवेश के अनुकूल बनाने के लिए मैंने 2015 के बजट में यह घोषणा की थी कि अगले चार वर्षों में कारपोरेट टैक्स की दर में 25 प्रतिशत की कमी की जाएगी और ज्यादातर छूट (बचत को बढ़ावा देने वाली छूटों के अतिरिक्त) को धीरे-धीरे समाप्त किया जाएगा। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली मौजूदा सरकार इसके प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध है।

काले धन की समस्या से निपटने के लिए सरकार ने एक मजबूत रणनीति तैयार की है। शपथ ग्रहण के बाद कैबिनेट की प्रथम बैठक में ही हमने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का अनुपालन करते हुए सुप्रीम कोर्ट के दो सेवानिवृत्त जजों के नेतृत्व में एक जांच समिति का गठन किया, जो काले धन के खिलाफ चलाए जाने वाले सभी कार्यों की निगरानी कर रही है। संप्रग सरकार पिछले तीन वर्षों से इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुपालन से बचती रही थी, जबकि राजग सरकार ने विदेशों में लीचेंस्टाइन और जेनेवा के एचएसबीसी बैंकों में जमा अवैध धन के मामले में कार्रवाई करते हुए जानकारी में आए लोगों की आय के आकलन के काम को तेज किया। ऐसे ज्यादातर लोगों के आकलन का काम अब तकरीबन पूरा हो चुका है और जहां कहीं भी हेराफेरी का मामला पाया जाएगा, लाभान्वित होने वाले सभी खाताधारकों के खिलाफ आपराधिक कृत्य के तहत कार्रवाई की जाएगी।

अभी तक के आकलन के मुताबिक ऐसे खातों में तकरीबन 6500 करोड़ रुपए होने की जानकारी है। सरकार ने विदेश में अर्जित बेनामी संपत्ति पर कर लगाने के लिए एक कानून का प्रस्ताव किया है। पहली बार इस तरह का टैक्स लगाए जाने के बाद नब्बे दिनों का समय दिया गया, ताकि ऐसे सभी लोग अपनी अवैध संपत्ति के मामलों की जानकारी दे सकें। यह समयसीमा 30 सितंबर 2015 को समाप्त हो गई। इस दौरान अपनी संपत्ति का खुलासा करने वालों को 30 फीसद कर और 30 फीसद जुर्माने के तौर पर 31 दिसंबर 2015 तक जमा करने हैं। जिन लोगों ने इस समयसीमा के भीतर अपनी अवैध संपत्ति घोषित कर दी है, उनके खिलाफ नए बनाए गए कानून के तहत कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी। अभी तक 638 लोगों ने अपनी आय घोषित की है। ये सभी लोग अब चैन की नींद सो सकते हैं।

जिन लोगों ने अपनी विदेशी संपत्ति को घोषित नहीं किया है, वे नए प्रावधान के तहत दंडित होंगे। ऐसे लोगों को 30 फीसद कर देना होगा और 90 फीसद जुर्माना भरना होगा। इसके अतिरिक्त संपत्ति जब्ती और अन्य कार्रवाइयों का भी उन्हें सामना करना होगा। कर चोरी करने वाले लोगों को 10 वर्ष तक की सजा हो सकती है। मौजूदा कानून भविष्य में भारत से विदेशों में भेजे जाने वाले धन के लिए प्रतिरोधक का काम करेगा। इसी तरह घरेलू काले धन के मामले में भी सरकार अलग से कदम उठाएगी। कर चोरी के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए भी सरकार ने कई कदम उठाए हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने जी-20 बैठक के दौरान इस संदर्भ में पहल की है ताकि एक देश के नागरिक द्वारा विदेश में अर्जित की गई अवैध संपत्ति के मामलों में अंतरराष्ट्रीय सहयोग कायम हो। इस पहल का उद्देश्य बैंकिंग लेन-देन की जानकारी साझा करना और ऐसे किसी भी मामले में संबंधित देशों की टैक्स अथॉरिटी को तत्काल सूचना मुहैया कराना है। इसके लिए सरकार ने एफएटीसीए के तहत अमेरिका के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। जी-20 की इस पहल के तहत अन्य देशों के साथ भी ऐसा ही सहयोग कायम किया जाएगा। राजस्व सचिव के नेतृत्व में भारतीय अधिकारियों की एक टीम ने स्विट्जरलैंड के साथ भी विस्तृत बातचीत की है। इस संदर्भ में मंत्रिस्तरीय वार्ता भी हुई। स्विट्जरलैंड अब एचएसबीसी के तमाम खातों की जानकारी और साक्ष्य देने को तैयार है।

उम्मीद है कि आगामी दो वर्षों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग के मामले में काफी काम कर लिया जाएगा और संबंधित देशों द्वारा मांगी गई जानकारियों के मामले में कुछ शर्तों के साथ अवैध संपत्तियों की जानकारी साझा की जा सकेगी। विदेश में अवैध संपत्ति की जानकारी नहीं देने वाले लोगों को अब आगाह हो जाना चाहिए।

काले धन का एक बड़ा हिस्सा अभी भी भारत में है। लिहाजा हमें देश के राष्ट्रीय नजरिए-प्रवृत्ति में इस ढंग से बदलाव करने की जरूरत है, जिससे प्लास्टिक मनी यानी डेबिट-क्रेडिट कार्ड का मुख्य रूप से इस्तेमाल हो और नकद लेन-देन अपवादस्वरूप ही हो। इस बदलाव को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार कई स्तर पर प्रयास कर रही है। बड़ी संख्या में पेमेंट गेटवे की शुरुआत करना और इंटरनेट बैंकिंग पर जोर देना इसी का हिस्सा है। इसके अलावा ई-कॉमर्स के उभार और उसका दायरा बढ़ने से भी इसमें मदद मिलेगी। बैंकों के जरिए जितना ज्यादा लेन-देन होगा, उतना ही प्लास्टिक मनी को बढ़ावा मिलेगा। जनधन, आधार और मोबाइल (जाम) का त्रिकोण तथा सब्सिडी के लिए डीबीटी प्रणाली (जिसके तहत विभिन्न् सरकारी योजनाओं में दी जाने वाली सब्सिडी को लाभार्थी के खाते में सीधे डाला जाता है) भी इसी दिशा में एक मजबूत कदम है। जनधन योजना के सभी 18 करोड़ लाभार्थियों को रुपे कार्ड उपलब्ध कराया गया है, जिससे वे प्लास्टिक मनी के इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहित होंगे।

आयकर की निगरानी के तंत्र को भी मजबूत बनाया गया है और कर चोरी को पकड़ने के लिए उसके ढांचे को तकनीकी और अन्य रूपों से सशक्त बनाया जा रहा है। जीएसटी पर अमल की शुरुआत होना भी इस दिशा में एक मील का पत्थर होगा। सरकार की नीति कर ढांचे को तर्कसंगत बनाने, कर की दरों को वाजिब बनाने, छोटी आमदनी वाले लोगों के हाथों में ज्यादा पैसा देने, समाज के सभी वर्गों में प्लास्टिक मनी के इस्तेमाल को बढ़ावा देने और उन लोगों के मन में भय पैदा करने की है, जो बिना लिखा-पढ़ी वाले पैसे का इस्तेमाल करना जारी रखे हैं।

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