हैदराबादी बिरयानी या ‘M-Y’ का सत्तू, तस्लीमुद्दीन की विरासत में कौन चमकेगा?

नई दिल्ली। बिहार के सीमांचल की राजनीति तस्लीमुद्दीन के इर्द-गिर्द सिमटी रही है। अब तस्लीमुद्दीन नहीं हैं और उनकी राजनीतिक विरासत पर काबिज होने को लेकर उनके दोनों बेटों के बीच सियासी तलवार खिंच गई है। तस्लीमुद्दीन के बड़े बेटे सरफराज आलम आरजेडी के टिकट पर लालू यादव के एम-वाई समीकरण के जरिए सत्तू घोलने में जुटे हैं तो छोटे बेटे शाहनवाज आलम AIMIM के जरिए हैदराबादी बिरयानी की देग चढ़ाए हुए हैं। ऐसे में देखना है कि जोकीहाट क्षेत्र की जनता तस्लीमुद्दीन की विरासत का असल वारिस किसे चुनती है?

अररिया जिले की जोकीहाट विधानसभा सीट पर तस्लीमुद्दीन परिवार का सियासी वर्चस्व पांच दशक से कायम है। जोकीहाट सीट पर 1967 से 2018 तक 15 बार चुनाव हुआ है। इसमें 10 बार तस्लीमुद्दीन और उनके पुत्र यहां से जीते, तस्लीमुद्दीन पांच बार खुद इस सीट से विधायक रहे जबकि उनके बड़े पुत्र सरफराज चार बार जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं। मौजूदा समय में तस्लीमुद्दीन के छोटे बेटे शहनवाज आलम विधायक हैं, जिन्होंने 2018 के उपचुनाव में पहली बार जीत दर्ज की थी। इस बार के चुनाव में दोनों भाई एक दूसरे के खिलाफ चुनावी मैदान में आमने-सामने हैं।

बिहार का सीमांचल का इलाका बंगाल से सटा हुआ है। ये वो इलाका है जहां भारी गरीबी है, हर साल बाढ़ से जिंदगी दूभर होती है और मुसलमानों की अच्छी खासी तादाद में आबादी है। अररिया जिले में 4 जनवरी 1943 को जन्मे तस्लीमुद्दीन ने छात्र राजनीति के जरिए सियासत में कदम रखकर सीमांचल की राजनीति के बादशाह बन गए। उन्होंने सरपंच और मुखिया से लेकर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री का सफर तय किया।

तस्लीमुद्दीन 1959 में सरपंच बने और 1964 में मुखिया बने, तस्लीमुद्दीन अपने राजनीतिक करियर में सात बार विधायक और पांच बार सांसद रहते हुए बिहार से लेकर केंद्र तक में मंत्री भी रहे। 1989 में पहली बार वो लोकसभा के सदस्य चुने गए और 2014 के चुनाव में मोदी लहर में भी जीतने में सफल रहे थे। तस्लीमुद्दीन खुद जहां केंद्रीय राजनीति में आ गए थे तो अपने बड़े बेटे सरफराज आलम की 90के दशक में ही प्रदेश की राजनीति में एंट्री कर दी थी। सरफराज जोकीहाट सीट से चार बार विधायक रहे।

तस्लीमुद्दीन के 17 सितंबर 2017 में के निधन के बाद सरफराज आलम ने अपने पिता की सियासी विरासत संभाली। सरफराज जेडीयू छोड़कर आरजेडी के टिकट पर 2018 में अररिया सीट पर हुए उपचुनाव में सांसद चुने गए, ऐसे में जोकीहाट विधानसभा सीट रिक्त हो गई, जहां से तस्लीमुद्दीन के छोटे बेटे शाहनवाज आलाम उपचुनाव जीतकर विधायक बने, इस तरह से तस्लीमुद्दीन के दोनों बेटे राजनीति में अपनी-अपनी जगह बना चुके थे।

हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में सरफराज आलम अररिया सीट से चुनाव हार गए थे, जिसके बाद अब वो जोकीहाट सीट से आरजेडी के टिकट लेकर मैदान में उतरे हैं। ऐसे में शाहनवाज आलम अब असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी से टिकट पर ताल ठोक रहे हैं। इस तरह से दोनों भाई एक-दूसरे के खिलाफ चुनावी मैदान में हैं, लेकिन अब देखना है कि जोकीहाट क्षेत्र की जनता किसे तस्लीमुद्दीन की सियासी विरासत का असल हकदार समझती है।

जोकीहाट विधानसभा सीट पर बीजेपी, आरजेडी और AIMIM के बीच त्रिकोणीय मुकाबला माना जा रहा है। आरजेडी से सरफराज आलम और बीजेपी से रंजीत यादव मैदान में हैं जबकि शाहनवाज आलम AIMIM से किस्मत आजमा रहे हैं। इस सीट पर जेडीयू भी दो बार जीत दर्ज कर चुकी है। इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति और जातीय समीकरण ऐसा है कि यहां का चुनावी मुकाबला काफी दिलचस्प हो गया है। जोकीहाट विधानसभा अब भी मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है और इसके अलावा मंडल और यादव जाति के मतदाता भी अच्छी खासी संख्या में हैं।

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