स्वर्ग से लाया गया यह अलौकिक वृक्ष आज भी है धरती पर स्थित…

पारिजात वृक्ष की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी। इसे देवराज इंद्र द्वारा स्वर्ग में स्थापित कर दिया गया था। पारिजात के फूलों का देवपूजा में विशेष महत्व है। जल से उत्पत्ति होने के कारण देवी लक्ष्मी की पूजा में पारिजात के फूलों का विशेष महत्व है। क्योंकि देवी लक्ष्मी का प्रादुर्भाव भी समुद्र मंथन के दौरान हुआ था। पारिजात को हरश्रृंगार भी कहा जाता है। यहां जानिए, कहां स्थित है स्वर्ग से लाया गया पारिजात वृक्ष और क्या है इसकी स्वर्ग से धरती पर आने की कहानी…स्वर्ग से लाया गया यह अलौकिक वृक्ष आज भी है धरती पर स्थित...

ये हैं इस वृक्ष की खूबियां
यह वृक्ष 10 से 30 फीट तक की ऊंचाईवाला होता है। खासतौर से हिमालय की तराईवाले क्षेत्रों में ज्यादा संख्या में मिलता है। इसके फूल, पत्तों और तने की छाल का उपयोग औषधियां बनाने में किया जाता है।

मन मोह लेते हैं इसके फूल
इसके फूल सफेद रंग के और छोटे होते हैं। फूलों का निचला भाग चटक नारंगी रंग का होता है। ये फूल रात में खिलते हैं और सुबह पेड़ से स्वत: ही झड़ जाते हैं। इनकी खुशबू मोहक होती है।

और भी हैं नाम

इस पौधे को पारिजात और हरश्रृंगार के अलावा शेफाली, प्राजक्ता और शिउली नाम से भी जाना जाता है। यह फूल पश्चिम बंगाल का राजकीय पुष्प है।

यहां स्थित स्वर्ग से लाया गया यह वृक्ष
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में मुख्यालय से करीब 38 किलोमीटर दूर पूर्व में स्थित है किंतूर गांव। इसी गांव में वह पारिजात वृक्ष है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसे कान्हा स्वर्ग से धरती पर लाए और गुजरात राज्य के द्वारका में स्थापित किया।

कुंती के नाम पर बसा है किंतूर गांव
मान्यता है कि यह गांव महाभारत काल में बसाया गया। उस समय जब धृतराष्ट्र द्वारा पांडु पुत्रों को अज्ञातवास दिया गया तो वह यहीं आकर रुके। पांडवों की माता कुंती के नाम पर इस गांव का नाम किंतूर पड़ा। पांडवों ने अपनी माता कुंती के पूजन के लिए यहां महादेव मंदिर का निर्माण किया। इस मंदिर का नाम कुंतेश्वर महादेव मंदिर है।

पारिजात कैसे पहुंचा द्वारका से किंतूर?
कुंती ने अपने पुत्र अर्जुन से शिवपूजन के दौरान शिवजी पर पारिजात के पुष्प अर्पित करने की इच्छा जाहिर की। इस पर अर्जुन द्वारका से पूरा का पूरा पारिजात वृक्ष ही उठा लाए और उसे किंतूर गांव में स्थापित कर दिया।

…और इस तरह स्वर्ग से आया पारिजात
श्रीकृष्ण लीला में वर्णन मिलता है कि कान्हा की पत्नी रुक्मिणी को अपने व्रत का उद्यापन करना था। इसके लिए वह श्रीकृष्ण सहित रैवतक पर्वत पर पहुंची। उस समय देवऋषि नारद वहां से गुजर रहे थे। उनके हाथ में पारिजात वृक्ष का पुष्प था, जिसे उन्होंने रुक्मिणी को दे दिया। रुक्मिणी ने इस फूल को अपने बालों में लगा लिया।

जिद पर अड़ गईं सत्यभामा
कान्हा की तीन पत्नियां थीं, रुक्मिणी, जाम्वंती और सत्यभामा। जब व्रत का उद्यापन समाप्त कर रुक्मिणी कान्हा सहित अपने महल लौटीं तो सत्यभामा उनके केश में लगे पुष्प को देखकर श्रीकृष्ण से पारिजात के पूरे वृक्ष की मांग करने लगीं। तब कान्हा स्वर्ग से उनके लिए पारिजात का वृक्ष लेकर आए।

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