स्टार्ट-अप की सफलता के लिए इन बातों को न करें नजरअंदाज

startup_05_10_2015बिना किसी कारोबारी पृष्ठभूमि के आज के तमाम युवा एंटरप्रेन्योर जोखिम लेने को तैयार रहते हैं। हार के बारे में वे सोचते ही नहीं। कामयाबी नहीं भी मिली, तो गलतियों से सीख लेते हुए आगे बढ़ने को तत्पर रहते हैं। इतना ही नहीं, शुरूआती नाकामियों के बावजूद वे अपनी अलग सोच और मेहनत से स्थापित कारोबारियों को अचरज में डाल रहे हैं। इससे साबित होता है कि नाकामी या हार से सबक लेकर आगे बढ़ने वाले एक-न-एक दिन सफलता की इबारत जरूर लिखते हैं।

हारने से हर कोई डरता है। कोई नहीं चाहता कि वह हारे। चाहे खेल का मैदान हो या युद्ध का या फिर करियर अथवा जिंदगी का ही क्यों न हो। सभी जीत चाहते हैं पर सच यह है कि जीतता वही है, जो हर मोर्चे पर मानसिक रूप से खुद को लगातार मजबूत रखने में सक्षम होता है।

एक नहीं, तो दूसरी राह

आईआईटी दिल्ली से पढ़े राघव वर्मा कुछ साल पहले नोएडा स्थित एक अमेरिकी मैनेजमेंट कंसल्टेंट फर्म में काम करते थे। दो साल काम करने के बाद जब इस काम से उन्हें बोरियत होने लगी, तो उन्होंने जॉब छोड़ दी और अपने एक सहयोगी के साथ मिलकर स्टार्ट-अप ‘प्रेपस्क्वेयर’ की शुरूआत की। यह उन विद्यार्थियों के सामने ऑनलाइन विकल्प के रूप में पेश किया गया था, जो कोचिंग पर लाखों रुपए खर्च करते थे। इसके जरिये बेहतरीन टीचर्स के वीडियो लेक्चर्स और टेस्ट पेपर्स की लाइब्रेरी उपलब्‍ध कराई जा रही थी। शुरूआती अच्छे रिस्पांस के बावजूद ऑनलाइन मीडियम पर विद्यार्थी ज्यादा भरोसा नहीं कर पाए। ऑफलाइन काम शुरू करने के लिए पर्याप्त फंड न होने के कारण इस स्टार्ट-अप को बंद करना पड़ा। हालांकि कुछ ही समय बाद वर्मा ने दिल्ली-एनसीआर में अलग-अलग फ्लेवर वाली चाय बेचने के लिए ‘चायोस’ नाम से दूसरे स्टार्ट-अप की शुरूआत कर दी। तेजी से आगे बढ़ती गुड़गांव-बेस्ड इस कंपनी को 2 करोड़ रुपए की एंजल फंडिंग मिल गई है। कई और निवेशक इसमें पैसा लगा रहे हैं।

अपनों का साथ

आईआईटी खड़गपुर से ग्रेजुएट पंकज जज द्वारा शुरू किया गया स्टार्ट-अप ‘जियो इंडिया’ तीन साल में ही बंद हो गया था। यह उनके लिए बड़ा झटका था। एंट्रप्रेन्योर बनने के लिए आईटी सेक्टर की जॉब छोड़ने वाले पंकज ने इस नाकामी की बात केवल अपनी होने वाली पत्नी को बताई। विवाह के बाद उन्होंने एक दोस्त के साथ मिलकर पत्नी के सहयोग से ‘चायठेला’ नामक कियोस्क बेस्ड स्टार्ट-अप शुरू किया। यह स्टार्ट-अप भी अलग-अलग फ्लेवर वाली चाय बेचता है। दिल्ली-एनसीआर में इसके कई आउटलेट्स खुल गए हैं और इसे फंडिंग भी मिलनी शुरू हो गई है।

एक समय में एक काम

आईआईटी-बीएचयू के बीटेक स्टूडेंट अभिषेक कुमार ने एक साथ दो वेंचर आरंभ किए थे: ‘करियर एंड मी’ और ‘बनारसी साड़ीज डॉट कॉम’। शुरूआती सफलताओं के बावजूद व्यवहारिक दिक्कतों की वजह से इन दोनों को बंद करना पड़ा। इससे उन्हें झटका जरूर लगा पर वे बिजनेस की दुनिया से बाहर नहीं निकले। इससे उन्हें यह सबक मिला कि एक समय में एक ही स्टार्ट-अप पर फोकस करना चाहिए। इसके बाद उन्होंने ‘स्कूलमित्र’ नाम से एक एजुकेशनल टेक्नोलॉजी स्टार्ट-अप की शुरूआत की, जो स्कूलों को तकनीक पर आधारित सेवाएं देती है। उनका टारगेट 2020 तक पांच हजार से ज्यादा स्कूलों तक अपनी सेवाओं को पहुंचाना है।

कदम क्यों ठिठकें?

हाल के वर्षों में स्टार्ट-अप्स के रूप में कामयाबी के झंडे गाड़ने वाले तमाम एंटरप्रेन्योर्स युवाओं के प्रेरणास्रोत बने हैं। उन्हें देखकर बड़ी संख्या में विद्यार्थी ऊंचे-ऊंचे सपने देखने लगे हैं। उनमें से कई अपने सपनों को हकीकत में बदलने की दिशा में आगे भी बढ़ रहे हैं लेकिन कई के कदम ठिठके रहते हैं। वे सपने भी देखते हैं और अपनी मंजिल पर पहुंचना भी चाहते हैं लेकिन अक्सर उन्हें डर भी लगता है। दरअसल, युवाओं के डर के पीछे अपने सपनों को पाने की दिशा में उनकी कोई ठोस तैयारी न होना ही होता है। बैठे-बिठाए सपने देखना तो बेहद आसान है, लेकिन सपनों को पूरा करने के लिए सही दिशा में ईमानदारी से प्रयास करने की जरूरत होती है। इसके लिए अपने भीतर अपेक्षित योग्यताओं को बढ़ाने की भी दरकार होती है। अगर आप प्रयास और मेहनत ही नहीं करेंगे, तो सपने पूरे कैसे होंगे? ऐसे में डर तो लगेगा ही।

व्यवहारिक हो सोच

दूसरों की कामयाबी देखकर उन जैसा बनने का सपना देखना ठीक नहीं है। आप किसी को आदर्श मानकर उसकी कामयाबी से प्रेरित जरूर हों मगर उसके संघर्षों से सबक सीखने का प्रयास भी करें। अपने लिए कोई मंजिल या लक्ष्य तय करते समय यह जरूर देखें कि आपकी क्षमता-योग्यता के हिसाब से वह लक्ष्य उचित है या नहीं। अगर आपको लगता है कि आपने लक्ष्य बहुत ऊंचा चुन लिया है, तो इस पर पुनर्विचार करें।

मन को रमाएं

अगर आप अपनी अलग पहचान बनाना चाहते हैं, तो अपने चुने हुए काम में पूरी तरह से रमना होगा। उसके लिए जरूरी योग्यताओं को खुद में विकसित करें। जहां जरूरत हो, वहां खुद को आज की तकनीक के हिसाब से भी ढालें। रस्मी तरीके से काम करके आप अपनी पहचान कतई नहीं बना सकते। हो सकता है कि आपको अपने मन का काम चुनने और उसमें करियर बनाने का मौका मिल जाए। अगर ऐसा हो जाता है, तो अवसर का लाभ उठाने से कतई न चूकें। न तो हार या दूसरों की टिप्पणियों से डरें और न ही शुरूआती सफलताओं से आत्ममुग्‍ध हों। विनम्र रहकर ही आप दूसरों से कुछ सीख सकते हैं और सीखकर ही कामयाबी पा सकते हैं।

 
 
 

 

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