सोनिया के लंच में न जाकर नीतीश ने साबित कर दिया कि विपक्ष के सबसे बड़े नेता…

बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार ने नई दिल्ली में सोनिया गांधी के आयोजित किए गए लंच में शरीक होने से इनकार कर दिया. इस तरह से कांग्रेस के बनाए जा रहे संयुक्त विपक्षी बैठक के गुब्बारे की हवा निकल गई.

सोनिया के लंच में न जाकर नीतीश ने साबित कर दिया कि विपक्ष के सबसे बड़े नेता...

विपक्ष में सबसे भरोसेमंद चेहरा हैं नीतीश

नीतीश का सोनिया गांधी की लंच टेबल से गैरमौजूद रहना अहमियत रखता है क्योंकि विपक्षी पार्टियों में एक वही भरोसेमंद चेहरा हैं. शुक्रवार को सोनिया गांधी ने विपक्षी एकता पर चर्चा की और राष्ट्रपति चुनावों के लिए विपक्ष के संभावित संयुक्त उम्मीदवारों के नामों पर भी चर्चा हुई. ऐसे में नीतीश का इससे दूर रहना इस पूरी कवायद को तकरीबन बेमतलब बना देता है.

लंच का आयोजन यथावत है क्योंकि प्रतीक रूप में कोई भी नेता ऐसा नहीं है जिसके बगैर काम न हो सके और कोई भी शख्स इतनी अहमियत नहीं रखता कि उसकी मौजूदगी या गैरमौजूदगी की छाया से आधा दर्जन ऐसे नेताओं की मौजूदगी बौनी साबित हो जाए जो उसी कद के हैं.

मोदी की अपील के सबसे नजदीक हैं नीतीश

हालांकि, नीतीश कुमार बिहार में तीन दलों के गठबंधन वाली सरकार में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के नेता है, लेकिन उनकी शख्सियत बिहार असेंबली या संसद में उनके दल के सदस्यों की संख्या के मुकाबले कई गुना ज्यादा बड़ी है.

विपक्ष में वह न सिर्फ सबसे ज्यादा अच्छी तरह से अपनी बात रखने वाले नेता हैं, बल्कि विपक्ष में वह एकमात्र ऐसे नेता हैं, जो नरेंद्र मोदी की पब्लिक अपील के सबसे नजदीक हैं.

विपक्ष के अपने दूसरे समकक्ष नेताओं के उलट उनका सोनिया गांधी के लंच में न जाने का फैसला अब इस बैठक से कहीं ज्यादा बड़ी खबर हो गया है.

 

लंच में शरीक न होने की क्या हैं वजहें?

कांग्रेस प्रेसिडेंट के इस लंच में न जाने की नीतीश कुमार की कुछ खास वजहें हैं. जेडीयू के एक नेता ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया कि 20 अप्रैल को जब नीतीश कुमार 10 जनपथ पर सोनिया गांधी से मिले थे, तब उन्होंने प्रणब मुखर्जी का नाम विपक्ष के उम्मीदवार के तौर पर सुझाया था.

प्रणब मुखर्जी को फिर लाने की इच्छा

नीतीश ने कहा था कि अगर प्रणब मुखर्जी के नाम पर सहमति नहीं बन पाती है तो कांग्रेस द्वारा चुना जाने वाला कोई भी उम्मीदवार उन्हें स्वीकार्य होगा. नीतीश उस वक्त सोनिया के निजी आमंत्रण पर उनसे मिलने गए थे.

हालांकि, समस्या यह है कि प्रणब मुखर्जी इस वक्त देश के राष्ट्रपति हैं और वह शायद तब तक दूसरे टर्म के लिए अपना नाम आगे बढ़ाने पर सहमति न दें जब तक उन्हें एक सर्वसम्मत उम्मीदवार के तौर पर न उतारा जाए. जिसमें बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए भी उनके नाम पर सहमत हो. आम समझ यह है कि कोई भी मौजूदा राष्ट्रपति दोबारा मैदान में तब तक नहीं कूदता जब तक कि वह जीत के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त न हो. दूसरे शब्दों में वह हारने का जोखिम नहीं ले सकते. इसी वजह से प्रणब मुखर्जी अनमने से नजर आ रहे हैं.

प्रणब के नाम पर लालू का विरोध

सूत्रों के मुताबिक, दूसरी दिक्कत यह है कि नीतीश के सहयोगी और बिहार में सरकार के बड़े पार्टनर लालू प्रसाद यादव कुछ वजहों से प्रणब मुखर्जी को उम्मीदवार के तौर पर नहीं देखना चाहते हैं. लालू किसी अन्य को संयुक्त विपक्षी उम्मीदवार के तौर पर लाना चाहते हैं.

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लालू की अहमियत से नीतीश हैं असहज

हो सकता है कि सोनिया के लंच में लालू की आवाज को ज्यादा अहमियत मिलने की वजह से नीतीश इसमें शरीक नहीं होना चाहते हों. नीतीश खुद को ऐसी स्थिति में फंसा हुआ नहीं पाना चाहते होंगे जहां उनके दोनों गठबंधन सहयोगी इस अहम मसले पर एक-दूसरे का विरोध कर रहे हों. राष्ट्रपति पद के लिए संयुक्त उम्मीदवार तय करना वह पहला कदम है जिसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के मुकाबले एक महागठबंधन तैयार करने का रास्ता तय किया जाना है.

भ्रष्टाचार का बचाव करने वाले की छवि नहीं चाहते

यह बात ध्यान देने योग्य है कि न ही नीतीश और न ही अन्य कोई नेता लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के ताजा आरोपों के खिलाफ खुलकर बोला है. बिहार, दिल्ली और इसके आसपास के इलाकों में जिस तरह से लालू परिवार ने संपत्तियां अर्जित करने के लिए शेल कंपनियों का सहारा लिया है, उसे देखते हुए आरजेडी के नेता तक तथ्यों के बगैर केवल राजनीतिक जुमलों से इसका जवाब दे रहे हैं.

जेडीयू के नेता इस मसले पर खामोश बने हुए हैं क्योंकि नीतीश नहीं चाहते हैं कि उनकी पार्टी को उनके गठबंधन सहयोगी के किए गए भ्रष्टाचार का समर्थन करने वाली पार्टी के तौर पर देखा जाए. कांग्रेस बिहार में नीतीश की सहयोगी है, इसके बावजूद जेडीयू ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी के खिलाफ नेशनल हेराल्ड केस में चुप्पी बनाए रखना ज्यादा उचित समझा.

किसी के भी बुलावे पर नहीं पहुंचने वाले नेता की छवि

नीतीश सोनिया के लंच में मौजूद नहीं होंगे, लेकिन वह खुद को विपक्षी एकता का विरोधी भी साबित नहीं करना चाहते हैं. इस वजह से उन्होंने पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद शरद यादव को इस बैठक के लिए भेजने का फैसला किया है.

ऐसा करके नीतीश ने अन्य विपक्षी नेताओं के इतर अपनी एक खास पोजिशन तैयार कर ली है कि वह कभी भी किसी के बुलावे पर पहुंचने के लिए खाली नहीं हैं. वह एक बार सोनिया के सामने अपनी पोजिशन साफ कर चुके हैं, ऐसे में उन्हें फिर उन्हीं चीजों को बताने के लिए लंबा सफर करने की जरूरत नहीं है.

Nitish Kumar

नीतीश और उनकी पार्टी पर जांच की आंच नहीं

इसके अलावा सोनिया के लंच में आमंत्रित नेताओं में नीतीश की छवि सबसे स्वच्छ है. न वह न ही उनकी पार्टी के नेता जांच एजेंसियों के राडार पर हैं. आरजेडी, टीएमसी, डीएमके, एनसीपी के प्रमुख अतिथियों के मुकाबले नीतीश और उनकी पार्टी के दूसरे नेताओं की किसी तरह की जांच नहीं चल रही है. उनकी छवि पर कोई दाग नहीं है.

प्रधानमंत्री मोदी के नोटबंदी के कदम का समर्थन करने में भी वह बाकी की विपक्षी पार्टियों- कांग्रेस, तृणमूल, आप और अन्य से अलग हटकर खड़े हुए. साथ ही केंद्र सरकार की आलोचना करने का उनका तरीका भी काफी सकारात्मक माना जाता है.

क्या शरद हो सकते हैं उम्मीदवार?

दिलचस्प बात यह है कि नीतीश ने अपनी पार्टी की ओर से शरद यादव लंच के लिए नामांकित किया है और हो सकता है कि यादव राष्ट्रपति पद के संभावित उम्मीदवार तय कर दिए जाएं. लेकिन, जेडीयू नेता कह रहे हैं यादव इस मसले पर काफी सतर्कता से फैसला करेंगे. वह अभी राज्यसभा सांसद हैं. नामांकन दाखिल करने से पहले उन्हें राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा देना होगा.

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एक जेडीयू नेता ने फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत में सवाल उठाया कि क्या शरद यादव सांसद का पद और राष्ट्रपति चुनाव दोनों को खोने का फैसला करेंगे?

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