सैकड़ों बार दोहराकर भाषणों का हिस्सा बना “चौकीदार चोर है”

दिल्ली।  देश की 500 जगहों से एक साथ होगा। यानी, 5 बरस में चलते-चलते हम ‘चाय’ से ‘चौकीदार’ तक पहुंच गए हैं। पहले तीन मिनट 45 सेकेंड के एक वीडियो के साथ मैं भी चौकीदार अभियान का आगाज और उसके अगले ही दिन ट्विटर हैंडल पर नरेंद्र मोदी बदलकर हो गए, ‘चौकीदार नरेंद्र मोदी’। देखादेखी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और पीयूष गोयल समेत कई मंत्री भी ‘चौकीदार’ हो गए। और अब तो 30 मार्च को प्रधानमंत्री मोदी, वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए इस अभियान से जुड़े लोगों से चर्चा करेंगे।
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जब कोई आप पर पत्थर फेंके तो उससे भी गुलदस्ता बनाने की कोशिश करो। हालांकि, ऐसी कोशिशें हमेशा कामयाबी में ही बदलती हों, ये भी सच नहीं। 2019 के सबसे बड़े संग्राम का सबसे बड़ा चुनावी अभियान औपचारिक तौर पर लॉन्च हो चुका है। ये भाजपा की चुनावी रणनीति के तरकश का एक खास तीर है। बीते कुछ समय में शायद ही कोई रैली हो जिसमें राहुल गांधी ने पीएम नरेंद्र मोदी पर हमला करने के लिए ‘चौकीदार चोर है’ नारे का इस्तेमाल न किया हो। ये नारा अब उनके भाषणों का हिस्सा बन चुका है। वो जनता से आह्वान करते हैं और एक शब्द हवा में उछालते हैं- चौकीदार…जिसके बाद इंतजार होता है उसमें जनता के ‘…चोर है’ जोड़ने का।

Fellow Indians,
Happy that #MainBhiChowkidar has ignited the Chowkidar within all of us. Great fervour!
Ecstatic to see the passion and commitment to protect India from corrupt, criminal and anti-social elements.
Let us keep working together for a developed India.
— Chowkidar Narendra Modi (@narendramodi) March 17, 2019

सूत्रों के अनुसार राहुल गांधी ने एक नारे को सैकड़ों मंच से सैकड़ों बार दोहराकर भाजपा के खेमे में हलचल मचा दी है लेकिन भाजपा कभी घबराई नहीं उसकी बेचैनी उसके नेताओं के बयानों के बाद ही पता चलती है।
भाजपा ने सही समय का इंतजार किया और ठोस रणनीति पर काम किया और एक अभियान जिस तरह गाजे-बाजे के साथ लॉन्च होता है, वो कर दिखाया।
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क्या इससे भाजपा को कोई फायदा भी होगा?
आपको बता दें कि मुद्दों के महासंग्राम को भटकाने में ये अभियान जरूर कारगर साबित हो सकता है। कहां किसान और बेरोजगारी के बड़े सवालों का जवाब दिया जाए। क्यों इस सवाल में उलझा जाए कि 2 करोड़ लोगों को हर साल रोजगार के वादे पर अमल नहीं हो पाया। क्यों नोटबंदी और जीएसटी के ‘मुर्दों’ को कब्र खोदकर बाहर निकलने का मौका दिया जाए।
इस लिहाज से देश भर में बड़े पैमाने पर, बड़ी मशीनरी के साथ ‘मैं भी चौकीदार’ अभियान के सहारे बाकी मुद्दों पर हावी होने की रणनीति ज्यादा सटीक, ज्यादा फायदेमंद मालूम होती है।
चलिए 2014 में चलते हैं
अब याद कीजिए 2014 की जनवरी। दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में कांग्रेस का अधिवेशन चल रहा था। तब कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर के मुखारविंद से फूटे कुछ शब्द, भाजपा के उस वक्त के सबसे बड़े अभियान की बुनियाद बन गए।
अय्यर ने कहा,
“मैं आपको वादा करता हूं…वादा करता हूं कि इस इक्कीसवीं सदी में नरेंद्र मोदी कभी भी देश के प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे, नहीं बनेंगे, नहीं बनेंगे। यहां आकर चाय का वितरण करना चाहते हैं तो हम उनके लिए कुछ जगह बना देंगे।”
ये 16 जनवरी का दिन था। उसके बाद भाजपा को महज 3 से 4 दिन लगे और पूरा खेल खड़ा हो गया। चुनावी बहसें, चुनावी भाषण सबमें ‘चाय’ का उबाल खुद-ब-खुद आने लगा।
नरेंद्र मोदी के लोकसभा क्षेत्र बनारस से गुजरात तक, तमिलनाडु से जम्मू तक चाय के स्टॉल लगने लगे। 500 शहर में हजार से ज्यादा टी स्टॉल, चाय पे चर्चा, नमो टी स्टॉल…जैसे बाकी सब गौण हो गया हो।
2014 और 2019 में क्या फर्क हुआ?
फर्क है और बहुत बड़ा है। वो एक स्वत:स्फूर्त और ताजगी से भरा अभियान था। नरेंद्र मोदी पहली बार चुनाव मैदान में थे। पहली बार वे गुजरात से बाहर देश के एक बड़े भू-भाग में घूम-घूमकर जनता के सामने थे। उनके गुजरात विकास मॉडल की अपनी कहानियां थीं। नेता को तौलने के लिए जनता के पास पैमाने ज्यादा नहीं थे। कांग्रेस 10 साल सत्ता में रह चुकी थी। देश हजारों करोड़ के भ्रष्टाचार की खबरों के बीच एक ‘गरीब’ नेता ढूंढ़ रहा था। और शायद ‘चायवाले’ प्रतीक में वो प्यास खत्म हुई।
मैं भी चौकीदार अभियान 2019 के जरिए एक बार फिर भाजपा ने अपने तुरुप के पत्ते यानी नरेंद्र मोदी को आगे किया है। अमित शाह की भाजपा बखूबी जानती है कि नरेंद्र मोदी पर राहुल गांधी या कांग्रेस के व्यक्तिगत हमले अक्सर पलट कर उन्हीं को नुकसान पहुंचाते रहे हैं लेकिन 2019 के रण में भी ऐसा ही होगा ये भी जरूरी नहीं।
 

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