सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज पिनाकी चंद्र घोष होंगे देश के पहले लोकपाल

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव से पहले से ही जस्टिस पीसी घोष को सरकार ने देश के पहले लोकपाल के नाम के लिए मंजूरी दे दी है। पिनाकी चंद्र घोष देश के पहले लोकपाल बनाने जा रहे है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, प्रख्यात कानूनविद मुकुल रोहतगी की चयन समिति ने उनका नाम तय किया है और उनके नाम की सिफारिश भी की है. आपको बता दें कि सरकार ने विपक्ष से ऐन वक्त पर बड़ा मुद्दा छीन लिया है। भले ही सरकार को लोकपाल नियुक्त करने में पांच साल का समय क्यों न लग गया हो पर लोकसभा चुनाव से ठीक पहले ही इस पद पर सेवानिवृत्त जज जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष की नियुक्ति के लिए सरकार उन्हें मास्टर स्ट्रोक के रूप में देख रहें है।
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खास बातें- पिनाकी चंद्र घोष के बारे में
जस्टिस घोष उच्चतम न्यायालय के जज रह चुके हैं। वह आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस भी रह चुके है। जस्टिस पीसी घोष को मानवाधिकार कानूनों पर उनकी बेहतरीन समझ और विशेषज्ञता के लिए जाना जाता है। वह अपने दिए गए फैसलों में मानवाधिकारों की रक्षा की बात बार-बार करते थे। जस्टिस घोष राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य भी हैं।
जस्टिस घोष की चर्चा शशिकला को सजा सुनाने के बाद
जस्टिस घोष तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं जयललिता की करीबी शशिकला को आय से अधिक संपत्ति मामले में सजा सुना कर देश भर में बहुत चर्चित हुए थे। वह उन्होंने शशिकला समेत बाकी आरोपियों को दोषी करार देने के निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए अपने सुप्रीम कोर्ट कार्यकाल के दौरान कई अहम फैसले दिए है। आपको बता दें कि जयललिता फैसला सुनाए जाने से पहले ही उनकी मौत हो चुकी थी।
अहम फैसले के जस्टिस घोष
अयोध्या में विवादित ढांचा विध्वंस मामले में जस्टिस रोहिंग्टन के साथ पीठ में रहते हुए निचली अदालत को भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह और बाकी नेताओं पर आपराधिक साजिश की धारा के तहत आरोप तय करने का आदेश दिया था।
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जस्टिस घोष, चीफ जस्टिस एच एल दत्तू और जस्टिस कलीफुल्ला के साथ उस पीठ के भी सदस्य थे, जिसने तय किया था कि सीबीआई की ओर से दर्ज मुकदमे में दोषी ठहराए गए राजीव गांधी के दोषियों की सजा माफी का अधिकार राज्य सरकार को नहीं है।
जस्टिस राधाकृष्णन के साथ पीठ में रहते हुए उन्होंने जल्लीकट्टू और बैलगाड़ी दौड़ जैसी परंपराओं को पशुओं के प्रति क्रूरता मानते हुए उन पर रोक लगाई।
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अरुणाचल में राष्ट्रपति शासन के फैसले को पलटते हुए वहां पहले की स्थिति को बहाल करने वाली संविधान पीठ में भी शामिल रहे। सरकारी विज्ञापनों के लिए दिशा निर्देश तय करने वाली बेंच के भी वो सदस्य थे।

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