सफल रहा सर्वोच्च न्यायालय तो बंद होंगी मंदिर- मस्जिद के नाम की सियासी दुकानें?

त्वरित टिप्पणी———

अयोध्या मामले को लेकर राजनीति करने वाले सियासतदानों के पेट में बढ़ा दर्द
देश में बड़े मोहब्बत इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय का बड़ा कदम।
कृष्ण कुमार द्विवेदी (राजू भैया)
लखनऊ। देश के बहुचर्चित अयोध्या मामले को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने आज दोनों पक्षों को मध्यस्था के जरिए यह मामला सुलझाने की जो राह दिखाई है वह काबिले तारीफ है ।यदि सर्वोच्च न्यायालय की यह मुहिम सफल होती है तो वह दिन भी देश देखेगा कि मंदिर मस्जिद के नाम पर रोटियां सेकने वाले सियासत दानों की दुकानें लगभग बंद हो जाएंगी। जाहिर है कि इसे लेकर ऐसे लोगों के पेट में दर्द होना स्वाभाविक है।
अयोध्या में श्री राम मंदिर बनाम बाबरी मस्जिद के मामले को लेकर देश अब तक बहुत कुछ भुगत चुका है। हालात यह है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम टाट में हैं तो इस पर राजनीति करने वाले लोग ठाट में हैं? ऐसा नहीं है कि इस मुद्दे पर एक पक्ष के ही लोग मौज उड़ा रहे हैं बल्कि दोनों पक्षों के धार्मिक ठेकेदार इसे लेकर मौज के रसगुल्ले उड़ा रहे हैं। आज प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने दोनों पक्षों को कहा कि वह इस मामले को आपसी सहमति से सुलझाने की कोशिश करें। इसके लिए 3 सदस्यीय पैनल भी निर्धारित कर दिया गया। इस मध्यस्था पैनल में पूर्व जस्टिस इब्राहिम कलीफुल्ला एवं प्रख्यात मध्यस्थ श्रीराम पंचू तथा आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर को शामिल किया गया है। गौरतलब हो कि इसे लेकर दोनों पक्षों में अलग-अलग राय हैं। जहां दोनों पक्षों के कुछ लोगों का कहना है कि यह मामला आस्था से जुड़ा हुआ है इस पर मध्यस्था नहीं होनी चाहिए ।वहीं कुछ ऐसे भी लोग हैं जो यह चाहते हैं कि यह मुद्दा किसी भी तरह से सुलझा जाय।सनद रहे कि सर्वोच्च न्यायालय ने साफ कहा था कि यह फैसला देश की एकता एवं हमारे अमन की बहाली को लेकर के भी महत्वपूर्ण है ।ऐसे में यदि देश का माहौल अच्छा हो लोग एक दूसरे को प्यार से आत्मसात करेंगे ।
अयोध्या मामले को लेकर के एक बात राजनीतिक चर्चा में स्पष्ट कही जाती है कि सरयू के तीरे दो दल पैदा हुए! एक तो भाजपा दूसरी सपा जबकि उससे पहले कांग्रेस ने भी इस पर जमकर राजनीतिक रोटियां सेकी? ऐसे कई नेता है जो आज बड़े नाम हो चुके हैं एक जमाने में वह किसी लायक नहीं हुआ करते थे। अयोध्या मामले अलाउद्दीन चिराग उन्हें ऐसा मिला कि यह लोग उसे रगड़ रगड़ कर आज माननीय बन बैठे। कोई हिंदुओं का ठेकेदार है तो कोई मुसलमानों का ठेकेदार है। सही तो यह है कि सभी अपनी अपनी सियासत को चमकाने के ठेकेदार हैं। तमाम ऐसे मंदिर है तमाम ऐसी मस्जिदें हैं जिसकी देखरेख करने वाला कोई नजर नहीं आता। ऐसे भी तमाम लोग हैं जो इस मामले में हुए दंगों को लेकर अपनी जान तक गंवा चुके हैं। यही नहीं अयोध्या गोलीकांड के समय भी तमाम कारसेवक अयोध्या में शहीद हो गए थे। एक तरफ मुलायम सिंह यादव बयान देते हैं कि अयोध्या में गोली कांड कराना मेरा सही कदम था तो दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का दावा है कि उन्होंने श्री राम चंद जी के लिए अपनी सरकार कुर्बान कर दी।
सर्वोच्च न्यायालय ने जिन मध्यस्थों को रखा है उनमें श्री श्री रविशंकर एवं पूर्व जस्टिस इब्राहिम कलिफुल्ला तमिलनाड से आते हैं जबकि श्रीराम पंचू चेन्नई के रहने वाले है। वैसे यह भी स्पष्ट है कि देश के ऐसे कई नेता है जो मंदिर मस्जिद के नाम पर राजनीति करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते। अभी उनकी जुबान की खुजलाहट सामने आएगी! जहां तक सवाल है अयोध्या का तो अयोध्या में बहुत पहले से वहां के स्थानीय निवासी यह बात कहते हैं कि यदि इसमें नेतागिरी खत्म हो जाए तो यह विवाद आपस में मिल बैठकर सुलझाया जा सकता है। हो सकता है कि यह हिंदू पक्ष के लिए आस्था का प्रश्न हो।यह भी हो सकता है यह मुस्लिमों के लिए भी नाक का पक्ष हो ।लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इसे देश की एकता का पक्ष माना है ।तीनों मध्यस्थों की यह अग्नि परीक्षा है। जिस पर पूरे देश की निगाहें लगी हुई है ।न्यायालय ने इसकी मीडिया रिपोर्टिंग पर रोक लगा दी है। चार हफ्ते का समय दिया गया है। लोकसभा चुनाव सामने है। ऐसे में नेता चुप्पी साधे रहेंगे यह बात तो हजम नहीं होती। नेता बोलेंगे ?कोई राजनीतिक जुबान बोलेगा तो कोई जहरीली जुबान से जहर उगलेगा ।अलग अलग नेता इस मुद्दे का फायदा कैसे राजनीतिक उठाया जा सके इस के प्रयास में जान देते नजर आएंगे ।
स्पष्ट यह भी ऐसे कई नेता व दल हैं जिन्हें ये मालूम है कि अयोध्या मामले का निस्तारण हो गया तो कईयों की राजनीतिक दुकान एकदम से बंद हो जाएंगी। वैसे इस प्रकार की राजनीति करने वालों के लिए अभी मथुरा एवं काशी विश्वनाथ का भी मुद्दा सामने है ।अयोध्या में श्री राम मंदिर बने यह आस्था का प्रश्न है। लेकिन यदि सभी की सहभागिता से यह पुनीत कार्य हो तो देश एक नई अखंडता की ओर बढ़ता नजर आएगा ।अयोध्या मुद्दे को लेकर के जहां अयोध्या वासियों ने मानसिक रूप से बहुत कुछ झेला है वहीं दूसरी ओर देश की आम जनता ने भी इस मुद्दे को लेकर के बहुत कुछ सहा है। बड़ी-बड़ी बातें करने वाले मंदिर मस्जिद के ठेकेदार बनने वाले नेता स्वयं तो वातानुकूलित कमरों में बैठते हैं जबकि इसके नाम पर बुलाई जाने वाली भीड़ में शामिल व्यक्ति तमाम मुसीबतों का सामना करता है ।जाहिर की अब देश को तेजी से विकास के नए मापदंडों को प्राप्त करना चाहिए। ऐसी मुहिम में आपसी सहमति, आपसी प्यार, आपसी व्यवहार एवं आपसी मोहब्बत आम लोगों में बढ़े यह जरूरी है। सर्वोच्च न्यायालय का यह कदम यदि सफल हुआ तो यह इस दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।।

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