संपादकीय : राज्‍य में दुष्‍कर्म से जुड़ा शर्मसार करता सच

crimeagainstwoman_23_09_2015यह ताजा खबर है कि रायसेन जिले की रहने वाली एक युवती के साथ ट्रेन में दुष्कर्म हुआ। इस युवती को बेहतर नौकरी दिलाने का लालच देकर एक व्यक्ति इंदौर-बिलासपुर ट्रेन से जबलपुर ले जा रहा था। इसी बीच उसने दुष्कर्म किया और भाग निकला। घटना निंदनीय व आक्रोश पैदा करने वाली है। किंतु दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि यह इकलौती या कभी-कभार हो जाने वाली वारदात नहीं है। राष्ट्रीय अपराध अभिलेखन ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों पर गौर करें तो मध्य प्रदेश में ऐसे अपराध तेजी से बढ़े हैं।

एनसीआरबी ने 2014 में देशभर में हुए कुल अपराधों की सूची जारी की है। उसके मुताबिक एक बार फिर मप्र दुष्कर्म के मामले में पहले नंबर पर आया है। असल में आईपीसी के तहत दर्ज कुल अपराधों में भी उसका स्थान पहला है। इस लिहाज से यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि इस राज्य में न तो आम इंसान महफूज है, न ही महिलाओं की आबरू सुरक्षित है।

हालात लगातार बिगड़ते गए हैं। 2013 से तुलना करें, तो 2014 में मप्र में कुल अपराधों की संख्या में 358 फीसदी इजाफा हुआ। बीते साल राज्य में 5,076 दुष्कर्म की घटनाएं हुईं। यानी रोज तकरीबन 14 रेप। हालात कितने खराब हैं, यह दूसरे राज्यों से तुलना करने पर और भी साफ होता है। मसलन, आबादी के लिहाज से उत्तर प्रदेश इस राज्य की तुलना में खासा बड़ा है। किंतु वहां 3,461 दुष्कर्म की घटनाएं बीते साल हुईं। दूसरे नंबर पर रहे राजस्थान में 3,759 घटनाएं हुईं, यानी पहले व दूसरे के बीच ऐसी घटनाओं का अंतर काफी (लगभग 35 प्रतिशत) रहा।

यह हाल इसके बावजूद है कि प्रदेश सरकार ने महिलाओं को सम्मान और सुरक्षा देने की घोषणाएं कर रखी हैं। महिला सशक्तीकरण के उसके अनेक कार्यक्रमों की तारीफ भी हुई है। फिर भी अप्रिय यथार्थ यह है कि इसी राज्य में महिलाएं सबसे जघन्य अपराध का सबसे ज्यादा शिकार हो रही हैं।

कहा जा सकता है कि दुष्कर्म की वारदातें सिर्फ कानून-व्यवस्था की हालत का आईना नहीं होतीं। रेप पितृ-सत्तात्मक मानसिकता और समाज एवं परिवार में महिलाओं की कमजोर और दोयम स्थिति का परिणाम भी होता है। यह तथ्य गौरतलब है कि 2014 में मध्य प्रदेश में दुष्कर्म के 92.59 फीसदी आरोपी पीड़िता के परिचित थे। यानी महिलाएं जिन्हें अपना समझती हों, वे ही उसके साथ ऐसे जुर्म कर डालें तो इस हालत से सिर्फ पुलिस की चौकसी बढ़ाकर नहीं निपटा जा सकता। इसका मुकाबला करने के लिए सामाजिक मानसिकता बदलनी होगी।

इसके बावजूद कानून-व्यवस्था की मशीनरी अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकती। परिचित या अपरिचित अपराधी निर्भयता से दुष्कर्म करने की जुर्रत कर रहे हों, तो इसका निहितार्थ यह भी है कि पुलिस और प्रशासन का कोई खौफ अपराधियों में नहीं है। यह हकीकत राज्य सरकार के लिए गहरे आत्म-मंथन का विषय होना चाहिए।

 
 
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