संपादकीय : आईपीएल की साख पर कायम सवाल

ipl_18_10_2015जाहिर तौर पर इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) को बचाना इस वक्त भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की प्रमुख चिंता है। मगर बीसीसीआई की कार्यसमिति के ताजा फैसले उसके इस फ्लैगशिप टूर्नामेंट की पुरानी चमक-दमक कायम रख पाएंगे, यह कहना कठिन है। आईपीएल की बदनामी का आलम यह है कि उसके टाइटल स्पॉन्सर पेप्सिको ने पिछले दिनों उससे किनारा कर लिया।

कोल्ड ड्रिंक्स निर्माता यह बहुराष्ट्रीय कंपनी 2013 से 2017 तक के लिए 396 करोड़ 80 लाख रुपए देकर टाइटल स्पॉन्सर बनी थी। मगर 2013 में सामने आए स्पॉट फिक्सिंग/सट्टेबाजी घोटाले के बाद उसे महसूस हुआ कि इस टूर्नामेंट से नाम जोड़े रखना बदनामी का सौदा है। इस वर्ष आरंभ में सुप्रीम कोर्ट के आदेश और फिर जस्टिस आरएम लोढ़ा कमेटी के फैसलों से आईपीएल में भ्रष्ट और अनैतिक आचरणों की भरमार होने की बात साबित हो गई। तो पेप्सी आईपीएल को मझधार में छोड़कर अलग हो गई।

अब बीसीसीआई के सामने चुनौती टाइटल स्पॉन्सर ढूंढ़ने की थी। उसकी तलाश चीन की मोबाइल फोन निर्माता कंपनी वाइवो के रूप में पूरी हुई है। मगर एक विश्व प्रसिद्ध कंपनी की जगह एक अपेक्षाकृत अनजान कंपनी का आना अपने आप में यह बताता है कि विज्ञापन बाजार में आईपीएल कैसी चुनौतियों का सामना कर रही है। फिर अभी यह नहीं बताया गया है कि मेसर्स वाइवो मोबाइल्स टाइटल स्पॉन्सर बनने के बदले कितनी रकम बीसीसीआई को देगी? क्या वह पेप्सी के हटने से होने वाली क्षति की भरपाई करेगी?

वैसे एक राय यह है कि पेप्सी ने महज नैतिक कारणों से कदम पीछे नहीं खींचे, बल्कि उसके हटने की एक वजह अगले साल से आईपीएल के फॉर्मेट और इसमें मैचों की संख्या को लेकर जारी असमंजस को माना गया। टीम सह-मालिकों के सट्टेबाजी में शामिल होने के कारण दो टीमों (चेन्न्ई सुपर किंग्स और राजस्थान रॉयल्स) के निलंबन के बाद से यह अनिश्चितता बनी हुई है। इसे दूर करने के प्रयास में बीसीसीआई ने 2016 से आईपीएल में दो नई टीमें लाने का फैसला किया है। मगर निलंबित टीमों की फ्रेंचाइजी रद्द नहीं होगी। वे दोनों 2018 से आईपीएल में वापसी करेंगी।

मगर क्या उन दोनों टीमों के खिलाड़ी अगले दो साल इस टूर्नामेंट से बाहर रहेंगे, इस बारे में अभी स्पष्टता नहीं है। वैसे आईपीएल का असली मसला यह नहीं है। मुख्य समस्या उसकी साख का संदिग्ध होना है। बीसीसीआई ने इस टूर्नामेंट को स्वच्छ बनाने की कोई प्रभावी पहल अभी भी नहीं की है। उसने उतना ही किया है, जितना सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत उसकी मजबूरी है। टीमों में निवेश ढांचे को लेकर पारदर्शिता तय करने के उपाय अब भी सामने नहीं हैं।

आईपीएल एक क्रिकेट टूर्नामेंट के बजाय धनी-मानी लोगों की आउटिंग पार्टी तथा धन के भौंडे प्रदर्शन का अवसर बनी हुई है। बीसीसीआई ने इस धारणा को बदलने को ठोस प्रयास भी नहीं किए हैं। ऐसे में नया स्पॉन्सर ढूंढ़ना और दो नई टीमों को हरी झंडी बीसीसीआई की सीमित सफलता ही मानी जाएगी। बाकी सवाल उसे घेरे रहेंगे।

 
 
 
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