शिलॉन्ग टाइम्स मामला – सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को रोका

दिल्ली ब्यूरो: ‘द शिलांग टाइम्स’ अखबार के दो पत्रकारों को अवमानना के एक मामले में हाई कोर्ट ने दोषी ठहराया था लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले को रोक दिया है। हाई कोर्ट ने ‘द शिलांग टाइम्स’ की संपादक पैट्रिसिया मुखिम और प्रकाशक शोभा चौधरी को इस मामले में दोषी ठहराया था। हाई कोर्ट ने दोनों पर दो-दो लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था और कहा था कि अगर दोनों ने राशि जमा नहीं की तो उन्हें छह महीने की साधारण कैद काटनी होगी। अखबार पर प्रतिबंध भी लगा दिया जाएगा। यह फैसला हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस मोहम्मद याकूब मीर और जस्टिस एसआर सेन की पीठ ने सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने अखबार की संपादक और प्रकाशक की अपील पर हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार को नोटिस भी जारी किया है।
बता दें कि शिलांग टाइम्स में एक लेख का प्रकाशन छह और 10 दिसम्बर, 2018 को किया गया था जिसमें सेवानिवृत जजों और उनके परिवार को बेहतर सुविधा देने के फैसले की आलोचना की गई थी। अखबार की संपादक पैटरीसिया मुखिम ने ‘जब न्यायाधीशों ने अपने लिए ही फैसले सुनाए’ नाम से एक आलेख लिखा था। उन्होंने आरोप लगाया था कि अगले महीने सेवानिवृत्त हो रहे न्यायाधीश सेन सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीशों, न्यायाधीशों और उनकी पत्नियों और बच्चों के लिए राज्य सरकार से कई प्रावधान चाहते हैं। इसमें गेस्ट हाउस, घरेलू सहायता, मोबाइल और इंटरनेट का खर्च शामिल है।अवमानना मामले में फैसला सुनाते हुए मेघालय हाई कोर्ट ने आठ मार्च को दोनों से अदालत उठने तक कोर्ट रूम के एक कोने में बैठे रहने की सजा काटने को कहा था।
हाई कोर्ट ने मुखिम की ओर से लिखे गए सोशल मीडिया पोस्ट पर टिप्पणी करते हुए कहा कि उन्होंने सोशल मीडिया पर देश की न्यायिक व्यवस्था का माखौल उड़ाया सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मुखिम ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने मेघालय हाई कोर्ट के 8 मार्च, 2019 के फैसले पर रोक लगा दी। और उसे निलंबित कर दिया। मुझे पूरा भरोसा है कि न्यायपालिका प्रेस की आजादी का संरक्षण करेगी।” उत्तर पूर्व के मुख्य समाचार पत्र शिलांग टाइम्स का प्रकाशन साल 1945 से हो रहा है।

Back to top button