शरीर का ड्राइवर है दिमाग

कहावत है कुछ काम दिल से होते हैं, कुछ दिमाग से। यानी एक शरीर को जिंदा बनाए रखने में दिल और दिमाग दोनों की भूमिका गजब की है। हार्ट यानी दिल अगर शरीर का इंजन तो दिमाग या मस्तिष्क या ब्रेन उस वाहन रूपी शरीर का संचालक (ड्राइवर/चालक)। ड्राइवर, मतलब वाहन चलाने की पूरा अधिकार, मगर शरीर के इस चालक के पास तो उससे भी ज्यादा अधिकार। यह मोटर की खराबी तक को खुद ही पहचान लेता है। शरीर का कौन-कौन का अंग काम करेगा, शरीर के आस-पास क्या हो रहा है। क्या आप खाना-चाह रहे हो या क्या नहीं पंसन्द है। कौन आपको छुए और कौन न छुए, कौन सी खाद्य सामग्री या अन्य वस्तु आपके लिए लाभदायक है या नुकसान दायक। यह सब भी निर्णय करने का अधिकार इसी मस्तिष्क रूपी चालक के पास है। कम शब्दों में इस चालक की अहमियत बताएं तो समझिए कि डॉक्टर भी शरीर को तभी मृत घोषित करते हैं, जब मरीज की ब्रेन डेथ हो जाती है, भले ही हार्ट (इंजन) किसी भी हालत में हो। अगर एक बार हार्ट धड़कना बंद भी कर दे तो सीपीआर या चिकित्सकीय उपकरणों के प्रयासों से निर्धारित समय में पुन: चलाया जा सकता है। मगर ब्रेन डेथ हो गई तो दुनिया की कोई ताकत शरीर में हरकत नहीं पैदा कर सकती है। इस बार पढ़िए शरीर के चालक (मस्तिष्क) के बारे में, विस्तृत जानकारी उपलब्ध करा रहें पद्माकर पाण्डेय —

सिर, शरीर में सबसे महत्वपूर्ण अंग जो कि सबसे ऊपर होता है। सिर में एक बड़ा हिस्सा मस्तिष्क का होता है, इसके अलावा स्पाइनल कार्ड (रीढ़ की हड्डी) के साथ ही स्कल (कपाल) होती है। मस्तिष्क का वजन औसतन करीब 1400 ग्राम होता है। इसके चारों ओर तीन तरह की परत से होती है, जो मस्तिष्क को बाहरी चोट से सुरक्षित रहता है। पहली परत क्रेनियम की परत होती है, यह चोट आदि से बचाती है। इसके ऊपर परत होती है जिसमें सेरीबोस्पाइनल द्रव भरा होता है। यह द्रव है जो बाहरी चोट से बचाने के साथ ही सुखने नहीं देता है यानि नमी बनाए रखता है। इसके अलावा तीसरी और ऊपरी परत मेनिनजेज होती है यह बाहरी चोट के साथ दबाव से भी बचाता है।
मस्तिष्क से शरीर के जिस भी अंग का संपर्क टूटता है, उसका अस्तित्व खतरें में पड़ जाता है। अंगों तक मस्तिष्क के संपर्क माध्यम होता हैं शरीर में मौजूद अनगिनत नर्व। ये नर्व दिनभर, जरूरत पड़ने पर सक्रिय रहती हैं। इन्हीं नर्व के समूह को ‘नर्वस सिस्टम’ कहते हैं, जिसे चिकित्सकीय भाषा में न्यूरो सिस्टम कहा जाता है।
नर्वस सिस्टम दो प्रकार के होते हैं, सेंट्रल नर्वस सिस्टम और पेरीफेरल नर्वस सिस्टम ।
सेंट्रल नर्वस : यह दो हिस्सों में बंटा होता है, मष्तिष्क (ब्रेन) और स्पाइनल कॉर्ड (रीढ़ की हड्डी। मस्तिष्क की बात करेंगे तो इसके भी तीन भाग होते हैं, अग्र मस्तिष्क (फोर ब्रेन, कोरटेक्स), मध्य मस्तिष्क (मिड ब्रेन या ब्रेन स्टेम) और पश्च मस्तिष्क (हिंद ब्रेन या केयरबेल्लम)। अग्रभाग कार्टेक्स के बाएं हिस्से (गोलार्द्ध) से शरीर का दायां हिस्सा नियंत्रित होता है और दाएं हिस्से से शरीर का बायां हिस्सा कंट्रोल होता है। यह मस्तिष्क का सबसे बड़ा भाग होता है, पूरे मस्तिष्क का दो तिहाई हिस्सा होता है। इसके बाद आता है मिड ब्रेन, अग्र मस्तिष्क और हिंद ब्रेन के बीच की स्थिति को मिड ब्रेन कहते हैं। यह नालीनुमा होता है और छोटा होता है। द्रव्य युक्त होता है इसे ही ब्रेन स्टेम भी कहते हैं। दिमाग के दोनों हिस्सों में निर्मित होने वाले सेलेब्रल कार्टेक्स से उत्पन्न शरीरिक क्रियाओं को मूर्तिरूप देने में मध्यस्थता करने वाले दिमाग के हिस्से को मिड ब्रेन माना जाता है। यहां पर संतुलन, आंख की पेशियों को नियंत्रित करने, दिल की धड़कन, श्वास गति, कोध्र, प्यार, भावनाएं, शरीर को स्पर्श करने वाली समस्त संवेदनाएं यही से संचालित होती हैं। मस्तिष्क का सबसे पिछला भाग, पश्च मस्तिष्क, हिंद ब्रेन में सेरेबेलम होता है। इसका काम होता है शरीर का संतुलन बनाए रखना, किसी भी दशा में शरीर को परिस्थिति अनुकूल सामान्जस्य स्थापित करने का काम होता है। सेरेबेलम, किसी भी शारीरिक गतिविधियों को पूरी संतुलित मात्रा में काम करता है। यहीं पर बेलनाकार आकार में मेडुला ऑब्लांगेटा होता है, जो मस्तिष्क के पीछे रीढ़ की हडि्डयों से होता हुआ रीढ़ के अंत तक जाता है।

-स्पाइनल कॉर्ड–
यहीं से मस्तिष्क का जुड़ाव, रीढ़ की हड्डी (स्पाइनल कार्ड) से होता है। यहीं से स्पाइनल कार्ड में नर्व समूह (पेरेफेरल नर्वस सिस्टम) जाता है। यही नर्व, हाथों-पैरों की मांसपेशियों की गतिविधियों पर नियंत्रण का काम करते हैं। स्पाइनल कॉर्ड से दो प्रकार की नर्व निकलती हैं, मोटर नर्व और सेन्सरी नर्व। मोटर नर्व अंदर की सूचनाएं मस्तिष्क तक न्यूरॉन्स के द्वारा पहुंचाती हैं, मतलब अंदर की बात  बाहर लाती हैं।
सेन्सरी नर्व, शरीर के बाहरी सूचनाएं मस्तिष्क तक पहुंचाती हैं अर्थात बाहरी स्पर्श, गर्म-ठंडा, सूई-कांटा चुभना आदि का अहसास कराती मस्तिष्क को। जिसके बाद मस्तिष्क, शरीर के अनुकूल प्रतिक्रिया का निर्देश देता अंग को देता है।
स्पाइन कॉर्ड की संरचना-
हड्डी निर्मित छोटे-छोटे घुर्री के जोड़ों की लंबी कतार होती है। इसके मध्य में नालीनुमा खाली स्थान होता है जिससे नर्व गुजरती हैं। इन्हें सुरक्षित रखने के लिए फ्लूड से भरी झिल्लियां होती हैं। इसी फ्लूड के माध्यम से नर्व आदि को न्यूट्रीशियन भी पहुंचता है। रीढ़ की हड्डी में 31 जोड़े होते हैं। ये जोड़े चार भाग में बंटे होते हैं, सभी के शरीर संचालन में पृथक-पृथक कार्य निर्धारित हैं। इन भागों को अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है- सर्विवाइकल, थोरेसिक, लम्बर और सेकरल नर्व।
सर्वाइकल नर्व –
रीढ़ की हड्डी में सबसे ऊपरी हिस्सा होता है, आठ जोड़े होते हैं, जिन्हें सी-1, सी-2, —-सी-8 से जाना जाता है। ये सभी ऊपर का हिस्सा अर्थात गर्दन, कंधों व हाथों के कार्य को नियंत्रित करती हैं। मान लिजिए अगर सी-8 में खराबी आ जाए तो अंगुलियों में सुन्नता आ जाती है और सर्वाइकल नर्व संपर्क टूट जाए तो अंगुलियां हिलेंगी भी नहीं।
थोरेसिक नर्व –
यह 12 जोड़े नर्व होती हैं, इन्हें टी-1, टी-2 —टी-12 से पहचाना जाता है। ये नर्व शरीर मे मध्य का हिस्सा, पेट से लेकर गर्दन तक का हिस्सा संचालित करता है ।
लुम्बर नर्व व सेक्रल नर्व –
पांच-पांच जोड़ी नर्व होती है। इसमें लुम्बर को एल-1, एल-2, एल-3, एल-4 व एल-5 होती हैं, और सेक्रल नर्व को एस-1, एस-2 , एस-3, एस-4 व एस-5 बोला जाता है। ये दोनो हिस्सों, दोनों पैरों को नियंत्रित करती हैं, साथ ही मल-मूत्र विसर्जन भी इन्हीं नर्व से कंट्रोल होता है।
बीमारियां-
केजीएमयू के न्यूरोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो.आरके गर्ग का कहना है कि ब्रेन की वजह से मुख्यतया तीन तरह की समस्याएं हो रही हैं। पहली समस्या सिरदर्द या हेडेक, दूसरी मिर्गी रोग व तीसरा पक्षाघात (लकवा) इसके अलावा ब्रेन व स्पाइनल कार्ड में सूजन आने से नर्वस सिस्टम प्रभावित होता है और बीमारियां आती हैं। ब्रेन में सूजन होने से न्यूरॉन्स खत्म होने लगते हैं और ब्रेन सिकुड़ने लगता है। इसके बाद डिमेन्सिया बीमारी हो जाती है।
सिर दर्द (माइग्रेन)-
सदैव सिरदर्द बना रहने वाला दर्द माइग्रेन दर्द होता है, इसके अलावा दूसरा दर्द तनावजनित दर्द होता है। माइग्रेन दर्द पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में अधिक होता है, इसके कारणों की सटीक जानकारी चिकित्सा विज्ञान के पास नहीं है। माना जाता है कि मस्तिष्क के अंदर निर्मित रसायन व कोशिकाओं में परिवर्तन की वजह से होता है। यह शुरु होने के बाद 4 से 72 घंटे तक रह सकता है। महिलाओं में माइग्रेन के कारणों में हार्मोन के बदलाव को माना जाता है। इसमें सिर में झनझनाहट, एक हिस्से में तेज दर्द होता है। अक्सर समस्या ऊभरती है तो विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। दूसरा दर्द तनावजनित होता है, जो कि पूर्ण नींद और संतुलित आहार के साथ ठीक हो जाता है।
मिर्गी रोग-
जब व्यक्ति को दौरे पड़ने लगे, हाथ-पैर अकड़ जाए, दांत बंध जाए, इसे मिग्री का दौरा कहते हैं। सटीक कारण तो नहीं ज्ञात है मगर माना जाता है कि मस्तिष्क के न्यूरॉन्स की गति प्रभावित होने से ही दौरे पड़ते हैं। बार-बार दौरे पड़ने से मस्तिष्क को नुकसान पहुंचाती है। मिर्गी का सटीक इलाज नहीं है, मगर मिर्गीरेाधी दवाओं से 70 प्रातिशत मामलों में मरीज ठीक हो जाते हैं।

लकवा या पक्षाघात-
मस्तिष्क की अंदर की रक्त कोशिकाओं में खून का जमाव हो जाता है, थक्के जम जाते हैं। इसके अलावा मरीज का ब्लड प्रेशर अनियंत्रित रहता है तो उसमें ब्रेन की कोर्टेक्स की छोटी कोशिकाएं कमजोर हो जाती हैं। जो कि अचानक ब्लड प्रेशर बढ़ने पर कोशिकाएं फट जाती हैं, इसे ब्रेन हैम्ब्रेज कहते हैं। यही खून के थक्के या जमाव मस्तिष्क के अंदर नर्व पर दबाव बनाता है, जिस हिस्से में खून का थक्के का दबाव होता है, उस हिस्से के अंग प्रभावित हो जाते है या निष्क्रिय या लकवाग्रस्त हो जाते हैं। यह समस्या अनियंत्रित शुगर के मरीजों के साथ भी संभव है।
मिड ब्रेन ही हैं भगवान शंकर का ‘तीसरा नेत्र’
प्रमाणित नहीं है मगर, नए शोध के अनुभव के आधार पर कहा जा सकता है कि मिड ब्रेन ही शरीर की तीसरी आंख (भगवान शंकर का तीसरा नेत्र) है। वैज्ञानिकों का मानना है कि दिमाग के बायें और दाएं हिस्सों द्वारा किये गये कार्यों को संग्रहित कर संचार चेतना करने का कार्य मिड ब्रेन करता है। सामान्यतया मिड ब्रेन सुप्तावस्था में होता है और जितना ही जागृत होगा, व्यक्ति में मस्तिष्क संचालन की क्षमताएं अधिक होंगी। यही कारण है कि बच्चों में मिड ब्रेन को एक्टिव करने (जागृत) के लिए तमाम विशेष थेरेपी देने के लिए कोर्स संचालित किये जा रहे हैं।
बाराबंकी मुख्य चिकित्सा अधिकारी एवं एनेस्थेटिक डॉ.बीकेएस चौहान का कहना है कि चिकित्सा जगत में मिड ब्रेन को एक्टिव करने वाले साक्ष्य नहीं हैं मगर, अनुभव के आधार पर कहा जा सकता है कि वाइब्रेशन (कंपन्न) से मस्तिष्क के अंदर मौजूद प्यूटरी ग्रंन्थि से हार्मोन डिस्चार्ज बढ़ जाता है। इसी के समीप स्थित पीनियल से प्यूटरी ग्रंन्थि विकास करते हैं और इससे सिरेटोनिन और मिलाटोनिन हार्मोन निकलते हैं। सूर्य के प्रकाश में सिरोटोनिन बढ़ता है जबकि मिलोटोनिन हार्मोन रात के अंधेरे में ग्रोथ करता है। मस्तिष्क के दाहिने भाग को बढ़ाने वाला सिरोटोनिन हार्मोन व्यक्ति में खुशी, प्रसन्नता का अहसास कराता है । यही कारण है कि रात के अंधेरे की अपेक्षा दिन के उजाले में व्यक्ति अच्छा महसूस करता है। दूसरी तरफ मिलोटोनिन हार्मोन व्यक्ति में अनिच्छा पैदा करता है। सुस्ती का प्रभाव होता है। जानवरों में भी होता है, अधिक होता है। इतना ही नहीं जापान जैसे विकसित देश के नागरिकों में सिरोटोनिन हार्मोन की मात्रा कम पाई जाती है। वजह, बहुमंजिला इमारतों में दिन व्यतीत करने वालों को सूर्य की रोशनी नहीं मिलती है, पर्याप्त रोशनी के अभाव में सिरोटोनिन हार्मोन का डिस्चार्ज कम होता है। सामान्य जीवन के लिए इलाज की जरूरत पड़ती है। इन हार्मोन के डिस्चार्ज से उत्पन्न होने वाले कार्यों में सामान्जस्य बैठाने का कार्य मिड ब्रेन करता है। अर्थात दिमाग के दोनों हिस्सों के द्वारा किये गये कार्यों को उचित सामान्जस्य के साथ शारीरिक क्रिया में तब्दील करने का काम यहीं मिडब्रेन (सेतु का काम) करता है।
 
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