शनि प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव का पूजन किया जाता है, जानें व्रत कथा व शिव पूजन का शुभ मुहूर्त-

प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित है। शनिवार के दिन पड़ने वाले व्रत को शनि प्रदोष व्रत कहते हैं। इस बार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी 04 मार्च को है। इस दिन शनि प्रदोष व्रत का शुभ संयोग बन रहा है। प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव के साथ माता पार्वती का पूजन विधि-विधान के साथ किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन प्रदोष काल में शिव पूजन करने से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। भगवान शिव व माता पार्वती की कृपा से जातक को सभी सुखों की प्राप्ति होती है।

04 मार्च 2023 को शिव पूजन का मुहूर्त-

फाल्गुन शुक्ल पक्ष त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ – 11:43 ए एम, मार्च 04 और समाप्त – 02:07 पी एम, मार्च 05 को होगी। इस दिन शिव पूजन का उत्तम मुहूर्त शाम 06 बजकर 23 मिनट से रात 08 बजकर 51 मिनट तक है। इस अवधि में प्रदोष काल रहेगा।

शनि प्रदोष व्रत कथा-

प्राचीन समय की बात है। एक नगर सेठ धन-दौलत और वैभव से सम्पन्न था। वह अत्यन्त दयालु था। उसके यहां से कभी कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता था। वह सभी को जी भरकर दान-दक्षिणा देता था। लेकिन दूसरों को सुखी देखने वाले सेठ और उसकी पत्‍नी स्वयं काफी दुखी थे। दुःख का कारण था उनकी संतान का न होना। 

एक दिन उन्होंने तीर्थयात्रा पर जाने का निश्‍चय किया और अपने काम-काज सेवकों को सोंप चल पड़े। अभी वे नगर के बाहर ही निकले थे कि उन्हें एक विशाल वृक्ष के नीचे समाधि लगाए एक तेजस्वी साधु दिखाई पड़े। दोनों ने सोचा कि साधु महाराज से आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा शुरू की जाए। पति-पत्‍नी दोनों समाधिलीन साधु के सामने हाथ जोड़कर बैठ गए और उनकी समाधि टूटने की प्रतीक्षा करने लगे। सुबह से शाम और फिर रात हो गई, लेकिन साधु की समाधि नही टूटी। मगर सेठ पति-पत्‍नी धैर्यपूर्वक हाथ जोड़े बैठे रहे।

अंततः अगले दिन प्रातः काल साधु समाधि से उठे। सेठ पति-पत्‍नी को देख वह मन्द-मन्द मुस्कराए और आशीर्वाद स्वरूप हाथ उठाकर बोले मैं तुम्हारे अन्तर्मन की कथा भांप गया हूं वत्स! मैं तुम्हारे धैर्य और भक्तिभाव से अत्यन्त प्रसन्न हूं। साधु ने सन्तान प्राप्ति के लिए उन्हें शनि प्रदोष व्रत करने की विधि समझाई।

तीर्थयात्रा के बाद दोनों वापस घर लौटे और नियमपूर्वक शनि प्रदोष व्रत करने लगे । कालान्तर में सेठ की पत्‍नी ने एक सुन्दर पुत्र जो जन्म दिया। शनि प्रदोष व्रत के प्रभाव से उनके यहां छाया अन्धकार लुप्त हो गया । दोनों आनन्दपूर्वक रहने लगे।

Back to top button