विधानसभा चुनाव: राहुल-मोदी की जोर आजमाइश, दल-बदल और जातीय समीकरण का कॉकटेल

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे क्या होंगे इसे लेकर कयासों और बनते बिगड़ते समीकरणोंं का दौर जारी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बीच की जोर आजमाइश, आखिरी घड़ी में नेताओं के पाला बदलने, आरोप-प्रत्यारोप और जातीय समीकरण अबतक की बड़ी चुनावी सुर्खियां रहीं लेकिन चुनाव नतीजे के बारे में हॉलीवुड थ्रीलर के क्लाइमेक्स की भांति ही कुछ कहना मुश्किल है। सबकी नजरें चुनाव नतीजों पर है जो तय करेंगे कि 2019 अाम चुनाव का एजेंडा किस तरह सेट होगा।

सोमवार को छत्तीसगढ़ में वोटिंग

सोमवार को छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के पहले चरण के साथ ही पांच राज्यों में शुरू हो रहे विधानसभा चुनाव को अगले साल के लोकसभा चुनाव से पहले का सेमीफाइनल माना जा रहा है। ये विधानसभा चुनाव तय करेंगे कि भाजपा, कांग्रेस, बसपा जैसे प्रमुख राजनीतिक दल 2019 के आम चुनाव में मुकाबला करने के लिए किस तरह सियासी समीकरण बनाएंगे। राजनीतिक दल छत्तीसगढ़ की 90, मध्यमप्रदेश की 230, मिजोरम की 40, राजस्थान की 200 और तेलंगाना की 119 सीटों के लिए जोर आजमाएंगे।

अगर कांग्रेस इन विधानसभा चुनावों में अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी भाजपा का खेल बिगाड़ने में सफल रहती है तो यह लोकसभा चुनाव से पहले उसके लिए मनोबल बढ़ाने वाला कदम होगा। उधर, अच्छा प्रदर्शन करने पर भाजपा अपने कार्यकर्ताओं में नया जोश भर पाएगी और 2019 के चुनाव में केंद्र में अपनी सत्ता बचाए रखने की अपनी उम्मीद को बल देगी। भाजपा ने 2013 में हिंदी-भाषी राज्यों – मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में 165,163 और 49 सीटें जीती थीं और कांग्रेस 58, 21, और 39 सीटों में सिमट गई थी।

तेलंगाना में मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की अगुवाई वाली सत्तारुढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति को सबसे मजबूत राजनीतिक ताकत के रुप में देखा जा रहा है और उसका मुकाबला कांग्रेस और भाजपा से होगा। 2014 के विधानसभा चुनाव में 63 सीटों पर जीती टीआरएस में बाद के सालों में विरोधी दलों के कई नेता शामिल हो गये। बहरहाल, सत्ताविरोधी लहर और केसीआर द्वारा समय से पहले चुनाव कराने से चौंकाने वाली बातें सामने आ सकती हैं। मिजोरम में कांग्रेस 2008 से सत्तासीन है जबकि छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में भाजपा पिछले 15 सालों से शासन कर रही है।

छत्तीसगढ़ में रही कांटे की टक्कर

साल 2013 में छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में वैसे भाजपा और कांग्रेस के बीच 10 सीटों का फर्क था लेकिन उनके वोट प्रतिशत में महज 0.75 फीसद का ही अंतर था। छत्तीसगढ़ में चुनावी मुकाबला एक बार फिर राजनीतिक दलों के लिए चिंताजनक स्थिति पैदा कर रहा है। सत्तारुढ़ भाजपा सत्ताविरोधी लहर का सामना कर रही है जबकि कांग्रेस को अजीत जोगी-बहुजन समाज पार्टी गठजोड़ से चुनौती मिल रही है।

मुख्यमंत्री रमन सिंह ने पिछले ही हफ्ते कहा था कि ‘जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़’ भाजपा से ज्यादा कांग्रेस की चुनावी संभावनाओं पर असर डालेगी। दूसरी तरफ, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने कहा है कि इस गठबंधन से भाजपा की संभावनाओं को ज्यादा नुकसान पहुंचेगा क्योंकि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित दस सीटों में से कांग्रेस 2013 में केवल एक सीट की जीती थी जबकि भाजपा नौ सीटों पर विजयी रही थी।

बघेल ने कहा था कि जोगी-मायावती के समर्थकों में ज्यादातर अनुसूचित जाति के लोग हैं और अगर इस गठबंधन को कुछ सीटें मिलती हैं तो यह भाजपा की कीमत पर होगी। छत्तीसगढ़ में बसपा पिछली बार महज एक सीट जीत पायी थी लेकिन उसका वोट प्रतिशत 4.27 फीसदी रहा था। अगर उसका वोट प्रतिशत बना रहता है तो यह निर्णायक साबित हो सकता है। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच के गठबंधन जैसे छोटे क्षेत्रीय गठबंधन एक अन्य कारक है। इन दलों को पिछले चुनाव में 1.57 फीसद और 0.29 फीसद वोट मिले थे।

उइके के भाजपा में जाने से बदला समीकरण

राज्य में कांग्रेस-भाजपा मुकाबला प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रामदयाल उइके के भाजपा में शामिल होने से और तीखा हो गया है। राज्य में 12 और 20 नवंबर को मतदान है। मध्यप्रदेश में मुकाबला और कड़ा जान पड़ता है क्योंकि राज्य में सत्ताविरोधी लहर एक बड़ा कारक है और कांग्रेस पिछले डेढ़ सालों में कई उचुनावों में अच्छा प्रदर्शन कर चुकी है।

भाजपा को 2013 में 44.88 फीसदी वोट मिला था जबकि कांग्रेस का वोट प्रतिशत 36.38 फीसदी रहा था। बसपा ने 6.29 फीसदी वोट हासिल किया था। राज्य में कई नेताओं ने पाला बदला। उनमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साले संजय सिंह मसानी, वरिष्ठ भाजपा नेता सरताज सिंह कांग्रेस में चले गये जबकि दलित नेता प्रेमचंद गुड्डु भाजपा से जुड़ गये।राजस्थान में चुनावी समर मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ से भिन्न जान पड़ता है। यहां 1998 से एक बार कांग्रेस तो एक बार भाजपा चुनाव जीतती रही है। 2013 के चुनाव में भाजपा ने 45.17 फीसद वोट हासिल किया था जबकि कांग्रेस का वोट प्रतिशत 33.07 फीसदी रहा था। यहां अन्य राज्यों की तुलना में सत्ताविरोधी लहर बड़ा कारक है। मध्यप्रदेश और मिजोरम में 28 नवंबर को जबकि राजस्थान व तेलंगाना में सात दिसंबर को मतदान होगा।

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