वाल्मीकि जयन्तीः रामायण ने दी सतमार्ग पर चलने की प्रेरणा

maharishivalmikijayanti_-300x192महर्षि वाल्मीकि का जन्म दिवस आश्विन मास की शरद पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। महर्षि वाल्मीकि वैदिक काल के महान ऋषियों में माने जाते हैं। आप संस्कृत भाषा के आदि कवि और आदि काव्य ‘रामायण’ के रचयिता के रूप में सुप्रसिद्ध हैं।

महर्षि कश्यप और अदिति के नवम पुत्र वरुण [आदित्य] से इनका जन्म हुआ। इनकी माता चर्षणी और भाई भृगु थे। वरुण का एक नाम प्रचेत भी है, इसलिए इन्हें प्राचेतस् नाम से उल्लेखित किया जाता है। उपनिषद के विवरण के अनुसार यह भी अपने भाई भृगु की भांति परम ज्ञानी थे।

मनुस्मृति के अनुसार प्रचेता, वशिष्ठ, नारद, पुलस्त्य आदि भी इन्हीं के भाई थे। एक बार ध्यान में बैठे हुए वरुण-पुत्र के शरीर को दीमकों ने अपना घर बनाकर ढक लिया था। साधना पूरी करके जब यह दीमकों के घर, जिसे वाल्मीकि कहते हैं, से बाहर निकले तो लोग इन्हें वाल्मीकि कहने लगे।

वाल्मीकि रामायण में स्वयं वाल्मीकि कहते हैं कि वे प्रचेता के पुत्र हैं। मनुस्मृति में प्रचेता को वशिष्ठ, नारद, पुलस्त्य आदि का भाई बताया गया है। बताया जाता है कि प्रचेता का एक नाम वरुण भी है और वरुण ब्रह्माजी के पुत्र थे। यह भी माना जाता है कि
वाल्मीकि वरुण अर्थात् प्रचेता के 10वें पुत्र थे और उन दिनों के प्रचलन के अनुसार उनके भी दो नाम ‘अग्निशर्मा’ एवं ‘रत्नाकर’ थे।

किंवदन्ती है कि बाल्यावस्था में ही रत्नाकर को एक निःसंतान भीलनी ने चुरा लिया और प्रेमपूर्वक उनका पालन-पोषण किया। जिस वन प्रदेश में उस भीलनी का निवास था वहाँ का भील समुदाय वन्य प्राणियों का आखेट एवं दस्युकर्म करता था।

वाल्मीकि ॠषि के जन्म को लेकर भी उसी प्रकार का विवाद है जैसा संत कबीर के बारे में है। वाल्मीकि का अर्थ चींटियों की मिट्टी की बांबी है। जनश्रुति के अनुसार एक भीलनी या निषादनी ने चींटियों की बांबी पर एक बच्चा पड़ा पाया। वह उसे उठा ले गई और उसका नाम रख दिया वाल्मीकि।

एक अन्य किवंदंति का उल्लेख ऊपर किया ही जा चुका है कि वाल्मीकि ने एक स्थान पर बैठकर इतनी घोर तपस्या की थी कि उनके शरीर पर मिट्टी की बांबी बन गई। उनकी ऐसी दशा देखकर लोग उन्हें वाल्मीकि बुलाने लगे।

यह कथा भी प्रचलित है कि वास्तव में बाल्मीकि ब्राह्मण थे व एक भीलनी उन्हें चुराकर ले गई थी।

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि बनने से पूर्व वाल्मीकि रत्नाकर के नाम से जाने जाते थे तथा परिवार के पालन हेतु लोगों को लूटा करते थे। एक बार उन्हें निर्जन वन में नारद मुनि मिले, तो रत्नाकर ने उन्हें लूटने का प्रयास किया।  नारद जी ने रत्नाकर से पूछा कि- तुम यह निम्न कार्य किसलिए करते हो?  इस पर रत्नाकर ने उत्तर दिया कि अपने परिवार को पालने के लिए।

इस पर नारद ने प्रश्न किया कि तुम जो भी अपराध करते हो और जिस परिवार के पालन के लिए तुम इतने अपराध करते हो, क्या वह तुम्हारे पापों का भागीदार बनने को तैयार होंगे? इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए रत्नाकर, नारद को पेड़ से बांधकर अपने घर गए। वहां जाकर वह यह जानकर स्तब्ध रह गए कि परिवार का कोई भी व्यक्ति उसके पाप का भागीदार बनने को तैयार नहीं है। लौटकर उन्होंने नारद के चरण पकड़ लिए।

तब नारद मुनि ने कहा कि- हे रत्नाकर, यदि तुम्हारे परिवार वाले इस कार्य में तुम्हारे भागीदार नहीं बनना चाहते तो फिर क्यों उनके लिए यह पाप करते हो। इस तरह नारद जी ने इन्हें सत्य के ज्ञान से परिचित करवाया और उन्हें राम-नाम के जप का उपदेश भी दिया था, परंतु वह ‘राम’ नाम का उच्चारण नहीं कर पाते थे। तब नारद जी ने विचार करके उनसे मरा-मरा जपने के लिए कहा और मरा रटते-रटते यही ‘राम’ हो गया और निरंतर जप करते-करते हुए वह ऋषि वाल्मीकि बन गए।

एक बार महर्षि वाल्मीकि नदी के किनारे क्रौंच पक्षी के जोड़े को निहार रहे थे, वह जोड़ा प्रेमालाप में लीन था। तभी एक व्याध ने क्रौंच पक्षी के जोड़े में से एक को मार दिया। नर पक्षी की मृत्यु से व्यथित मादा पक्षी विलाप करने लगी।

उसके इस विलाप को सुन कर वाल्मीकि के मुख से खुद ही
मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः। 
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्।। 

नामक श्लोक फूट पड़ा और यही महाकाव्य रामायण का आधार बना।

देश भर में महर्षि वाल्मीकि की जयंती को श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर शोभायात्राओं का आयोजन भी होता है। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित पावन ग्रंथ रामायण में प्रेम, त्याग, तप व यश की भावनाओं को महत्व दिया गया है। वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना करके हर किसी को सद्‍मार्ग पर चलने की राह दिखाई।

इस अवसर पर वाल्मीकि मंदिर में पूजा अर्चना भी की जाती है तथा शोभायात्रा के दौरान मार्ग में जगह-जगह के लोग इसमें बडे़ उत्साह के साथ भाग लेते हैं।
झांकियों के आगे उत्साही युवक झूम-झूम कर महर्षि वाल्मीकि के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। इस अवसर पर उनके जीवन पर आधारित झांकियां निकाली जाती हैं व राम भजन होता है। महर्षि वाल्मीकि को याद करते हुए महर्षि वाल्मीकि जयंती की पूर्व संध्या पर उनके चित्र पर माल्यार्पण करके उनको श्रद्धासुमन अर्पित किए जाते हैं।

 

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