लोकसभा चुनाव 2019 में ” चौकीदार ” बना-बिगाड़ सकते हैं चुनावी समीकरण

सियाराम पांडेय ‘शांत’
चौकीदार का नाम देश की सुरक्षा से तो जुड़ा ही है ,लेकिन इस बार चौकीदार बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। इस चुनाव में वे राजनीतिक दलों का चुुनावी समीकरण बना और बिगाड़ सकते हैं। अपने अपमान के लिए वे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और किसी भी दल के हर उस नेता जो चौकीदार चोर है का उद्घोष करता घूम रहा है, को सबक सिखाने की मन: स्थिति में हैं। अपेक्षा है कि इस बार वे इस बार का मतदान अपनी प्रतिष्ठा के लिए करेंगे।
गौरतलब है कि 2001 की जनगणना के अनुसार देश में 6,38,596 गांव थे जो 2011 की जनगणना में बढ़कर 6,50,244 हो गए थे लेकिन 2018 में इन गांवों की संख्या घटकर 5,97,464 हो गई थी। अकेले उत्तर प्रदेश में 60 हजार से अधिक ग्राम पंचायतें हैं जिनमें 63,565 चौकीदार हैं। अमूमन हर गांव में एक चौकीदार होता है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि देश में 5,97,464 चौकीदार हैं। जिन चौकीदारों की मौत हो गई है, उनकी जगह भले ही लंबे समय से नियुक्ति न हुई हो ,लेकिन उनकी जगह पर उनके परिजन ही उनकी जगह काम कर रहे हैं।

चौकीदारों के घरों में कुल 23 लाख 89 हजार 8 सौ छप्पन हैं मतदाता
जनसंख्या के ‘हम दो -हमारे दो’ के सिद्धांत को ही आधार मानें तो भी एक चौकीदार के घर में चार मतदाता तो होते ही हैं। इस लिहाज से देखें तो चौकीदारों के घरों में कुल 23 लाख 89 हजार 8 सौ छप्पन मतदाता हैं। हालांकि यह संख्या अमूमन अधिक ही होगी। उत्तर प्रदेश में गहमर एक गांव है जिसकी आबादी 30 हजार से अधिक है। कई पट्टी वाले इस गांव में कई-कई चौकीदार हैं। हम एक गांव का एक चौकीदार ही मान कर चलें तो भी इतने लोगों की नाराजगी कांग्रेस को भारी पड़ सकती है। उत्तर प्रदेश की योगी कैबिनेट ने केवल चौकीदारों का नाम बदलकर ग्राम प्रहरी किया बल्कि उनके मानदेय में भी वृद्धि की। हरियाणा और बिहार में चौकीदारों का मानदेय पहले ही बढ़ाया जा चुका है। चौकीदारों को भाजपा शासित राज्यों में मान तो मिला ही, उनका मानदेय भी बढ़ा है, यह भी एक फैक्टर हैं जो चौकीदारों को मानसिक धरातल पर भाजपा और उसके सहयोगी दलों के करीब ले जाता है।
उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों के गांवों से चौकीदारों की तादाद का कर सकते हैं आंकलन
अब जरा उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में गांवों की तादाद पर विचार कर लेते हैं। आगरा में 956,अलीगढ़ में 1223 और इलाहाबाद संप्रति प्रयागराज में 3095 गांव हैं। अंबेडकरनगर में 1757, औरैया में 848, आजमगढ़ में 4121 और बागपत में 323 ग्राम हैं। बहराइच में 1395,बलिया में 2372, बलरामपुर में 1024, बांदा में 703,बाराबंकी में 1855 गांव हैं जबकि बरेली में 2083, बस्ती में 3351, बिजनौर में 3012,बदायूं में 2084,बुलंदशहर में 1270 और चंंदौली में 1640 गांव हैं। चित्रकूट में 660, देवरिया में 2172,एटा में 892,इटावा में 698, फैजाबाद में 1274 और फर्रुखाबाद में 1014 गांव हैं। यही नहीं, फतेहपुर में 1522,फिरोजाबाद में 817, गौतममबुद्धनगर में 333, गाजियाबाद में 573, गाजीपुर में 3378, गोंडा में 1827, गोरखपुर में 3333, हमीरपुर में 635,पीलीभीत में 1446,प्रतापगढ़ में 2226,रायबरेली में 1782,रामपुर में 1173 और सहारनपुर में 1588 गांव हैं। इसके अतिरिक्त संत कबीरनगर में 1732, संत रविदासनगर यानी भदोही में 1228, शहजहांपुर में 2339, श्रावस्ती में 543, सिद्धार्थनगर में 2513, सीतापुर में 543, सोनभद्र में 1450, सुल्तानपुर में 2538, उन्नाव में 1816 और वाराणसी में 1333 गांव हैं।

चौकीदारों की यूनियन जगह-जगह थानाध्यक्षों से राहुल गांधी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की कर रही है अपील
उत्तर प्रदेश पर कांग्रेस का इस बार ज्यादा ध्यान है क्योंकि दिल्ली की गद्दी उत्तर प्रदेश ही तय करता है। चुनाव में हर वोट कीमती होता है। बूंद-बूंद से घड़ा भरता है। पूरे देश में दस हजार से अधिक ग्रामीण और पांच हजार से अधिक शहरी थाने हैं। चौकीदारों की यूनियन जगह-जगह थानाध्यक्षों से राहुल गांधी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की अपील भी कर रही है। मतलब चौकीदार कांग्रेस से खुश नजर नहीं आ रहे हैं और इसका खामियाजा उसे इस चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। यह तो स्थिति उन चौकीदारों की है जो गांव और पुलिस प्रशासन के बीच सेतु की भूमिका निभाते हैं। सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के कल कारखानों में भी गार्डों यानी चौकीदारी की नियुक्ति होती है। पूरे देश में निजी क्षेत्र की 2लाख 22 हजार 120 फैक्ट्रियां हैं जहां दस या उससे अधिक कर्मचारी काम करते हैं। उन कल-कारखानों की हिफाजत के लिए शिफ्ट में गार्ड यानी चौकीदार रखे जाते हैं। अब तो लोग घरों में भी चौकीदार रखने लगे हैं। शहरों में रोज नेपाली चौकीदार रात में सीटी बजाते और पहरेदारी करते हैं। स्कूल-कॉलेजों में भी चौकीदार रखे जाते हैं। कुछ लोग अपनी दुककानों में भी निजी गार्ड यानी चौकीदार रखते हैं। इस तरह देखा जाए तो देश में चौकीदारों की बहुत बड़ी तादाद है। चौकीदार कोई जाति नहीं है। यह व्यवस्था है। चौकीदारों के नातेदारों, रिश्तेदारों को जोड़ लें जो चौकीदार चोर हैं कहने से नाराज हैं तो यह संख्या और बड़ी हो जाता है। चुनाव में जनभावनाएं बहुत मायने रखती हैं। चुनाव का अपना मनोविज्ञान होता है और किसी भी दल की जीत- हार में वह विशेष अहमियत रखता है।
इसमें संदेह नहीं कि देश का चौकीदार सम्मानित भी हुआ है और अपमानित भी। सम्मानित इसलिए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद को देश का चौकीदार कहा है। किसी भी प्रधानमंत्री ने आज तक किसी चौकीदार को ऐसा सम्मान नहीं दिया। अपमानित इसलिए कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी हर सभा में कहते फिर रहे हैं कि चौकीदार चोर है। चौकीदार सब कुछ बर्दाश्त कर सकता है लेकिन अपने दामन पर चोर होने का दाग बर्दाश्त नहीं कर सकता। ईमानदारी ही उसकी पूंजी है। इस पूंजी को वह कभी खोना नहीं चाहता।

राहुल गांधी ने जो कुछ भी कहा उससे देश भर का चौकीदार दुखी
राहुल गांधी ने हालांकि जो कुछ भी कहा है, वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए कहा है लेकिन इससे देश भर का चौकीदार दुखी है। चौकीदार पर इस देश का भरोसा कभी नहीं डिगा। भरोसा जीतने के लिए किसी भरोसेमंद का ही उदाहरण पेश किया जाता है लेकिन प्रधानमंत्री ने खुद को चौकीदार क्या कहा, चौकीदारों के सम्मान पर बन आई है। महाराष्ट्र के चौकीदारों ने तो राहुल गांधी के खिलाफ तो अवमानना का केस भी दर्ज करा दिया है। उनके शब्द चौकीदारों को किसी तीर की तरह चुुभ रहे हैं और इसका असर 2019 के लोकसभा चुनाव में दिखाई पड़ सकता है। चौकीदारों का एक अर्थ रक्षक भी है और रक्षक कभी अपने उद्देश्य से नहीं भटकता। एकाध लोगों से गलती होना अपवाद है लेकिन सभी रक्षक एक से नहीं हो सकते। हाथ की पांचों अंगुलि एक सी नहीं होती। ईश्वर के बनाए संसार में एक भी चेहरा दूसरे से हूबहू नहीं मिलता। चौकीदार संस्था का जन्म अंग्रेजों के दौर में हुआ था। उन्होंने चौकीदार की नियुक्ति इसलिए की थी कि गांव की गतिविधियों का उन्हें पता चलता रहे। अंग्रेजों के जमाने में चौकीदार का गांव में प्रवेश ही रोंगटे खड़ा कर देता था। आजाद भारत में चौकीदार पुलिस-प्रशासन और गांव के बीच की कड़ी है। यह और बात है कि पुलिस की कार्यशैली में आए बदलाव और चौकीदारों की उपेक्षा के चलते चौकीदार खुद को उपेक्षित पा रहे थे। पंचायती राज व्यवस्था के वजूद में आने के बाद चौकीदार एक तरह से ग्राम प्रधानों के अधीन काम करने लगे लेकिन थानों से उनका संपर्क आज भी यथावत बना हुआ है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि जो भी व्यक्ति भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहा है वह चौकीदार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ट्विटर अकाउंट एक वीडियो जारी कर ‘मैं भी चौकीदार’ मुहिम की शुरुआत की है। इस वीडियो में केंद्र सरकार की उज्ज्वला योजना, भ्रष्टाचार पर लगाम, हाईवे निर्माण और देश की सुरक्षा मजबूत करने का जिक्र किया गया है। प्रधानममंत्री ने इस मुहिम का आगाज करते हुए कहा है कि जो भी व्यक्ति भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहा है, वह चौकीदार है। प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया है कि आपका चौकीदार मजबूती के साथ खड़ा है और देश की सेवा में जुटा है। लेकिन मैं अकेला नहीं हूं। ऐसा हर व्यक्ति जो भ्रष्टाचार, गंदगी और समाज के दुश्मनों से लड़ रहा है, वह चौकीदार है। जो भी व्यक्ति भारत के विकास के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है, वह चौकीदार है। आज हर भारतीय कह रहा है कि मैं भी चौकीदार हूं। यह स्थिति आ जाए तो इससे अच्छी बात दूसरी हो ही नहीं सकती। कुल मिलाकर चौकीदार शब्द अब राजनीतिक हो गया है। प्रधानमंत्री की इस मुहिम को कमोवेश इसी रूप में देखा-समझा जा सकता है लेकिन यह सच है कि इस देश का चौकीदार अब और अधिक अपमान का घूंट पीने की स्थिति में नहीं है। इस चुनाव में वह बड़ा झटका देने की सोच रहा है और अगर ऐसा होता है तो यह स्थिति कांग्रेस के लिए बहुत मुफीद नहीं होगी।

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