राहत पैकेज है या सत्यनारायण भगवान की कथा!

  राजेंद्र तिवारी, वरिष्ठ पत्रकार, राँची से 
राजेंद्र तिवारीआत्मनिर्भर भारत अभियान की दूसरी किस्त ने साफ कर दिया है कि केंद्र सरकार लोगों वाकई लोगों को अपने बूते जीने का संदेश दे रही है। यानी लोगों को संकट की घड़ी में भी सरकार से  किसी मजबूत सहारे या मदद की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने  किसानों व प्रवासी कामगारों का नाम लेकर आज जो घोषणाएं की हैं उनसे इसके अलावा कुछ और ध्वनित नहीं होता है। इसके साथ, सरकार खर्च के झूठे आंकड़े भी पेश कर रही है। कुल मिलाकर यह आत्मनिर्भर भारत अभियान पैकेज भगवान सत्यनारायण की कथा जैसा ही लग रहा है जिसमें मूल कथा तो पता ही नहीं चलती और अंतिम अध्याय में कथा करने वाले अधिकतर लोगों के कष्ट को ही मोक्ष के तौर पर महिमामंडित किया जाता है। फिलहाल यहां तो अभी तीसरा अध्याय ही समाप्त हुआ है। 
आइये नजर डालते हैं कि दूसरी किस्त में किसी की अंटी में कुछ आया कि नहीं –
प्रवासी कामगार – 
प्रवासी कामगारों को इस समय नकद सहायता और जो सड़कों पर हैं, उनको घरों तक पहुंचाने की तुरंत व्यवस्था किये जाने की जरूरत है। लेकिन केंद्र सरकार ने ऐसा कोई इंतजाम इस पैकेज में नहीं किया है। जो घोषणाएं की गई हैं, उनमें से मुफ्त राशन को छोड़कर बाकी का तात्कालिक जरूरत से कोई संबंध नहीं है। हजारों किमी का सफर पैदल तय करने की हिम्मत के साथ पैदल चल रहे मजदूरों व उनके बालबच्चों को तिनका भर भी सहारा इस राहत पैकेज में नहीं है।
१. वित्तमंत्री के मुताबिक देश में ८ करोड़ प्रवासी कामगार है। इनमें से जिनके पास पीडीएस कार्ड नहीं है, उनको दो माह तक ५ किग्रा गेहूं/चावल व एक किग्रा चना प्रति माह दिया जाएगा। इस पर ३५०० करोड़ रुपये की लागत आएगी। आज की किस्त में यही एक मात्र ऐसी घोषणा है जिसमें सरकार की जेब से पैसा जाएगा। इस योजना पर आने वाले खर्च की गणित लगाई जाए तो पता चलेगा कि ३५०० करोड़ में तो १२ करोड़ को दो माह यह राशन मुफ्त मिल जाएगा। मतलब वित्तमंत्री खर्च का आकड़ा भी गलत दे रही हैं।
२. वन नेशन-वन राशनकार्ड की व्यवस्था लागू करने की घोषणा भी की गई। इसे अगस्त माह तक नेशनल पोर्टेबिलिटी के तहत अमल में ला दिया जाएगा। यानी जुलाई और अगस्त में अगर स्थितियां नहीं सुधरती हैं तो मजदूर को अब तक की तरह ही खुद ही इंतजाम करना होगा। 
३. प्रवासी कामगारों के लिए अफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग की घोषणा की गई है। इसमें विभिन्न शहरों में सरकार पोषित हाउसिंग को पीपीपी के तहत अफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग कांप्लेक्स में बदला जाएगा। यह कब तक होगा, पता नहीं।
४. केंद्र ने राज्य सरकारों को प्रवासी कामगारों को फूड व शरणस्थली उपलब्ध कराने को एसडीआरएफ (स्टेट डिजास्टर रेस्पांस फंड) के इस्तेमाल की अनुमति दी है। इस फंड के तहत इस वित्त वर्ष के लिए २८९८३ करोड़ का प्रावधान बजट में किया गया है। इसमें केंद्र का हिस्सा २२१८४ करोड़ का है और इसमें से लगभग ११००० करोड़ ही केंद्र ने अब तक जारी किये हैं।
इसके अलावा, कल प्रधानमंत्री कार्यालय ने पीएम केयर्स फंड से १००० करोड़ प्रवासी कामगारों के लिए जारी करने की घोषणा की थी। 
किसान
किसानों के लिए वित्तमंत्री की घोषणा में ऐसा कुछ नहीं है जिससे तुरंत राहत किसानों को मिल सके। होना तो यह चाहिए था कि किसानों को सीधे राहत देने के लिए रबी की फसल का समर्थन मूल्य तात्कालिक तौर पर ५० फीसदी बढ़ा दिया जाता और रकम सीधे किसानों के खाते में ट्रांसफर कर दी जाती। इसके विपरीत सरकार ने सामान्य तौर पर जारी किये जाने कृषि ऋण में कुछ सहूलियतें दी हैं। वित्तमंत्री ने कहा भी है कि किसान चार लाख करोड़ का ऋण ले चुके हैं। अब यह स्पष्ट नहीं है कि ये चार लाख करोड़ भी २० लाख करोड़ के राहत पैकेज का हिस्सा बनाये जाएंगे या नहीं। वैसे इससे ज्यादा सहूलियतें या ऋण माफी चुनावी मौसम में दी जाती रही हैं और इसलिए यह कहना कि आपदा के समय में सरकार किसानों की मदद कर रही है, गलत ही होगा।
स्ट्रीट वेंडर्स
इनके लिए वित्तमंत्री ने ५००० करोड़ की स्पेशल क्रेडिट सुविधा की घोषणा की है। लेकिन यह स्पेशल क्रेडिट किन-किन को, कैसे व किस आधार पर और कब मिलेगा, इस बारे में कोई स्पष्टता नहीं है। वित्तमंत्री ने यह जरूर कहा है कि इस घोषणा से ५० लाख स्ट्रीट वेंडर्स को फायदा होगा।
इसके अलावा मुद्रा शिशु ऋण पर दो फीसदी की ब्याज सब्सिडी की घोषणा भी वित्तमंत्री ने की है। आदिवासियों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए ६००० करोड़ का एप्रूवल भी सरकार जल्द करेगी।
इस तरह आत्मनिर्भर भारत अभियान कथा का तीसरा अध्याय समाप्त होता है।
 
कृपया सुनने के लिए क्लिक करें : https://www.youtube.com/watch?v=OPVSi5uodDw&feature=youtu.be
लेखक राजेंद्र तिवारी वरिष्ठ पत्रकार हैं । अमर उजाला, दैनिक भास्कर व हिंदुस्तान में संपादक और प्रभात खबर समूह के कॉरपोरेट (समूह) संपादक रहे। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिले में जन्मे, लखनऊ विवि में पढ़े और छात्र राजनीति का हिस्सा रहे। यूपी के बाद दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, मध्य प्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड में अलग अलग अख़बारों की टीम बनाने और चलाने का अनुभव।

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