राफेल विमानों का भारत आगमन

अनुपम तिवारी, लखनऊ
फ्रांस से उड़कर राफेल विमानों की पहली खेप आज भारत पहुच रही है। चीन और पाकिस्तान दोनों सीमाओं पर पिछले कुछ समय से बढ़ी हुई तनातनी के मद्देनजर, इन विमानों का भारतीय वायु सेना के बेड़े में शामिल होना, बेहद खास माना जा रहा है। विशेषज्ञों की मानें तो राफेल विमान उपमहाद्वीप में शक्ति संतुलन साधने में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हैं।
बात कई साल पहले की है, तब केंद्र में यूपीए की सरकार थी। मेरी नियुक्ति उस समय जिस स्क्वाड्रन के साथ थी वह देश की पश्चिमी सीमा की सुरक्षा में तैनात हुआ करता था। तत्कालीन भारत सरकार की 126 राफेल विमानों की डील फ्रांस के साथ आखिरी चरणों पर थी, विलंब भले हो रहा था पर कार्य प्रगति पर था। इसी प्रगतिशील कार्य के बीच राफेल जंगी जहाजों का एक बेड़ा मध्य पूर्व एशिया के एक नेवल फ्रेंच बेस से भेजा गया। इन विमानों को हमारी वायु सेना के साथ अभ्यास करना था, ताकि इसकी क्षमताओं से हम अवगत हो सकें।
देखने मे बेहद छोटे, ये आसमानी परिंदे जब हमारे हवाई इलाके में हमारे ही सुखोई 30 के साथ कलाबाजियां खाते, तो विहंगम दृश्य होता था। सुखोई 30 एक बड़ा विमान है। वह अपनी बनावट से ही पराक्रमी और खतरनाक लगता है। उसके सामने राफेल खिलोने जैसा लगता था। जब मन्यूवरिंग की बात आई तो किसी को शक नहीं था अपने आकार और एरोडायनामिक डिजाइन की वजह से यह सुखोई से किसी मामले में कमतर नही होगा। वो सारी खूबियां जो सुखोई में थीं, इस छोटे से जहाज में भी थीं।
क्यों बेहद खास है राफेल
करीब एक पखवाड़े हमने साथ मिल कर काम किया, इस दौरान हमारा मन तुलनात्मक अध्ययन में ही लगा रहता, राफेल की कॉकपिट से ले कर, राडार और सेल्फ डिफेंस सिस्टम, उसकी लोड कैरिंग कैपेसिटी, उसका वेपन कंट्रोल सब लाजवाब लगा। एक पायलट को हवा में बहुत सारे सिस्टम्स को कंट्रोल करना होता है। राफेल ने इसका तोड़ ढूंढ लिया था। वौइस् सिस्टम से युक्त इस जहाज में पायलट बहुत सारे काम सिर्फ आवाज दे कर निबटा सकता है। उस समय के लिहाज से यह तकनीकी हमे अचंभित करती थी। इस्राएल में बने विशेष हेलमेट डिवाइस जिनकी खूबी यह थी कि पायलट सिर्फ अपने सर का मूवमेंट कर के दुश्मन टारगेट को लॉक कर सकता था, इसकी एक अन्य खूबी थी। वैसे यह तकनीकी तब हमारे विमानों में भी थी, परंतु राफेल में इसे अधिक बेहतर और आधुनिक बनाया गया था।
राफेल को सबसे खास बनाता है उसका स्पेक्ट्रा सिस्टम, जो कि ज्यादातर स्टील्थ विमानों की खासियत होती है। यह एक तरह का सेल्फ डिफेंस मैकेनिज्म उपलब्ध कराता है, जिससे विमान को आने वाले खतरों की सूचना समय से मिल जाती है और यह उसी हिसाब से अपने को बचा लेता है। चूंकि राफेल 4.5 पीढ़ी का लड़ाकू विमान है, इसे पूर्णतः स्टील्थ नही कहा जा सकता। यह राडार की पकड़ में आ सकता है, किंतु राडार को धोखा देने और उसे जैम करने की तकनीकी इतनी जबरदस्त है कि भारत और उसके आसपास के देशों में इतने सशक्त राडार शायद ही हों जो इस नायाब मशीन को रियल टाइम में उड़ते देख पाएं।
‘बर्स्ट ऑफ फायर’ राफेल की लाजवाब मारक क्षमता
किसी उड़ने वाली मशीन की ताकत उसकी मारक क्षमता होती है। आज अगर राफेल की विश्व भर में इतनी चर्चा है तो वह सिर्फ इसलिए कि इसके सहारे फ्रांस ने कई अंतरराष्ट्रीय ऑपरेशन्स को बखूबी अंजाम दिया है। अपने ‘चार्ल्स दे गुइल’ हवाई बेस से उड़कर जब सैकड़ो किलोमीटर दूर आईएसआईएस के ठिकानों पर इसने सटीक बमबारी की थी तो दुनिया ने इसकी चिड़िया की आंख भेदने जैसी मारक क्षमता का पहली बार अनुभव किया। लंबे समय तक हवा में रह कर, लीबिया, अफगानिस्तान इराक आदि के ऊपर भी इसने कामयाब मिशन अंजाम दिए हैं। आधुनिकतम यंत्रों और तकनीकी से लैस इस ‘आग के गोले’ का यह नाम पड़ा भी शायद इसीलिए है कि मेटीयोर, स्कैल्प, हैमर जैसी बेहद खतरनाक और विश्वसनीय मिसाइलों को यह बेहद सटीक तरह से लांच कर देता है। परमाणु अस्त्रों को ले जाने में सक्षम और एन्टी शिप, एन्टी सबमरीन आदि अस्त्रों से सुसज्जित राफेल न सिर्फ हवा में बल्कि जमीन या समंदर में स्थायी या चलायमान लक्ष्य को बड़ी आसानी से भेद सकता है।
फ्रांस के बने विमान भारतीय वायु सेना की रीढ़ रहे हैं
फ्रेंच और भारतीय वायु सेना का एक लंबा साथ रहा है। आज़ादी के तुरंत बाद खरीदे गए हर्रिकन विमानों से शुरू हुआ यह सिलसिला मिस्टयर, जगुआर (इसमे यूके का भी सहयोग था) और मिराज से होता हुआ अब राफेल तक आ पहुँचा है। इसमे कोई शक नही है कि आज भी वायुसेना की इन्वेंटरी का एक बड़ा हिस्सा रूसी विमानों का है किंतु फ्रांस के विमानों की तकनीकी और खरीद में सहजता इनको काफी आकर्षक बना देती है। और फिर जब उपयोगिता की बात हो तो गोवा की मुक्ति के लिए किये गए हवाई हमलों से लेकर, मिजोरम के बागी रहे लालडेंगा के ठिकानों को नेस्तनाबूत करने के साथ 65 और 71 के युद्धों में फ्रांस की इन नायाब मशीनों ने हमेशा अच्छे परिणाम दिए। कारगिल युद्ध और ताज़ातरीन बालाकोट हमलों में फ्रांसीसी मिराज 2000 का पराक्रम दुनिया ने आंखे फाड़ कर देखा है।
रक्षा सौदों में विलंब और अनावश्यक मीडिया हाइप
भारतीय व्यवस्था में रक्षा सौदों को लेकर तूफान उठते रहते हैं। राफेल का ही उदाहरण ले सकते हैं, इस विमान के सौदे ने राजनीतिक भूचाल लाने में कोई कसर नही छोड़ी थी। पिछले लोकसभा चुनावों में यह बड़ा मुद्दा भी बनाया गया था। पक्ष और विपक्ष के अपने अपने तर्क थे, एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ सी मच गई थी। किंतु किसी भी पक्ष ने गंभीरता से इस तरफ विचार नही किया कि धीरे धीरे पुराने और खाली होते जा रहे हमारे हवाई बेड़े को दुरुस्त करने की अतिशीघ्र आवश्यकता है। सीमा पर वर्तमान तनातनी को देखते हुए राफेल विमानों की पहली खेप आज पहुचना हिम्मत जरूर बंधाता है, किंतु क्या हमारे नीति नियंता दूरगामी नीति नही बना सकते? या फिर जो बनेंगी भी वह सिर्फ कागजों पर कब तक सीमित रहेंगी। आज काम से कम 44 स्क्वाड्रन खड़े करने की वायु सेना की जरूरत निकट भविष्य में पूरी होती क्यों नहीं दिख रही? इन सब पर हम हाथ पर हाथ धरे नही बैठे रह सकते।
मीडिया चैनलों, अखबारों, सोशल मीडिया सबने मिल कर राफेल आगमन को एक राष्ट्रव्यापी मुद्दा बना दिया है। हर क्षण की जानकारी लोगो तक पहुचने की होड़ सी मच गई है। माना कि हम भारतीय भावुक और उत्साही होते हैं किंतु राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े राफेल, या अन्य मशीनों, मिसाइलों, अस्त्रों आदि पर गंभीर होने की जरूरत है। ठीक उसी तरह जैसे इंडियन एयर फोर्स ने बिना कोई शोर शराबा किये विमान आने के पहले ही अपने पायलट, तकनीशियन इत्यादि की ट्रेनिंग पूर्ण करा दी।
हम जैसे रिटायर हो चुके वायु योद्धाओं के लिए राफेल का यह आगमन नोस्टाल्जिया जैसा है। लेख की शुरुआत में जिस राफेल का जिक्र किया है, वह नेवल वर्शन विमान थे, और अब जो आ रहे हैं वह विशेष रूप से वायु सेना की जरूरत के मुताबिक बनाये गए हैं, इसलिए संतोष होता है, धीरे धीरे ही सही, लक्ष्य को लॉक तो कर ही रहे हैं। भले ही राफेल की गति से नहीं।

(लेखक भारतीय वायु सेना से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं, 20 वर्षों तक वायुसेना में रहने के बाद अब स्वतंत्र लेखक, विचारक और रक्षा मामलों के जानकार के तौर पर मीडिया स्वराज सहित कई समाचार चैंनलों से जुड़े हुए हैं)
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