यूपी में सियासी गठबंधनों की सौदेबाजी मुर्गी बाजार जैसी

नवेद शिकोह 8090180256
ना तुम्हारी ना हमारी.. ना एक सौ की ना दो सौ की.. डेढ़ सौ पकड़ो और मुर्गी दे दो !
तीसरा बोला-हां बाऊजी, सौदा बुरा नहीं है। ये भी खुश और बाऊजी आपको भी सही जानवर मिल रहा है। अंडे देने वाली मुर्गी बाजार में मिलती ही कहां है। देसी अंडे बाजार में अब देखने को नहीं मिलते। कोई और बोला- अरे अंडे नहीं भी दे तो हलाल कर देना। इसमें दो किलो से ज्यादा गोश्त निकलेगा। आजकल देसी मुर्गी का गोश्त कहाँ नसीब होता है। पुराने लखनऊ के नक्खास में चिड़ियाबाजार में मोल-भाव, राहगीरों और दलालों में  फंसा मुर्गी का सौदा हो गया। लेकिन यूपी की सियासत में राजनीतिक दलों का गठबंधन अभी तक पूरी तरह से तय नहीं हो पाया है।
नक्खास बाजार का मंज़र देखकर घर आया तो चिड़ियाबाजार जैसी  नयी सियासी खबरें मिलीं। मसलन- भाजपा ने यूपी के अपने सहयोगी दलों को मनाने की कोशिशें तेज कर दी हैं। भारतीय समाज पार्टी के ओमप्रकाश राजभर जो सरकार के मंत्री रह कर भी योगी सरकार पर लगातार हमले करते रहे उनके बेटे को मंत्री का दर्जा दे दिया गया। आचार संहिता लगने से चंद घंटे पहले राजभर के बेटे को निगम का अध्यक्ष बनाने के बाद उन्हें मनमाफिक सीटें देने पर भाजपा विचार कर रही है।

गौरतलब है कि योगी सरकार के मंत्री ओमप्रकाश राजभर डेढ़ साल से लगातार अपनी सरकार को ही गलियाते रहे फिर भी भाजपा संयम बनाये रखी और अब गठबंधन की सहयोगी भासपा की सौदेबाजी की शर्तें पूरी करने की कोशिश कर रही है। भाजपा को यकीन है कि भाजपा पर हमलावरें शिवसेना को महाराष्ट्र में जिस तरह मना लिया ऐसे ही उत्तर प्रदेश में छोटेछोटे सहयोगी दलों की शर्तें पूरी करके कड़वाहट दूर कर ली जायेगी। इसी क्रम में अपना दल की मुखिया और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल का मोलभाव बर्दाश्त करके भाजपा उनकी नाराजगी भी दूर करने की कोशिशें कर रही हैं। उधर सपा-बसपा और कांग्रेस के बीच लुकाछिपी का खेल जारी है।
कभी यूपी में सपा-बसपा गठबंधन ने कांग्रेस को दस सीटों का आफर दिया तो कभी पंद्रह सीटों का। इस सौदेबाजी में कभी कांग्रेस राजी नहीं हुईं तो कभी बसपा सुप्रीपों मायावती कांग्रेस को साथ लने को तैयार नहीं हुईं। प्रियंका गांधी की एंट्री के बाद शायद कांग्रेस अपनी पुरानी डिमांड 22 से भी आगे बढ़ गयी। फिर पुलवामा हमले और फिर सरजिकल स्ट्राइक के बाद भाजपा के बढ़ते ग्राफ के बाद कांग्रेस यूपी में सपा बसपा गठबंधन के आगे लचीली हुई तो फिर बहन मायावती सख्त हो गयीं।
अब मोल-भाव का दौर खत्म होकर दबाव का सिलसिला शुरू हो गया। सपा-बसपा गठबंधन में कांग्रेस को शामिल नहीं किया जायेगा। बसपा सुप्रीमो मायावती ने जब ये ऐलान कर दिया तो अटकलों के दौर पर विराम लग जाना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। भाजपा विरोधी अभी भी ये उम्मीद बनाये रखे हैं कि कांग्रेस अभी भी सपा-बसपा के साथ आ सकती है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उभरते युवा दलित नेता चंद्रशेखर उर्फ रावण को असपताल देखने पंहुची प्रियंका ने यूपी में सपा-बसपा गठबंधन पर दबाव बनाया तो वाकई दबाव का असर दिखा। रावण और प्रियंका की अस्पताल में मुलाकात के फौरन बाद  सपा अध्यक्ष अखिलेश बसपा सुप्रीमो मायावती से मिलने उनके आवास पंहुच गये।
सपा का वोट बैंक अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव काट रहे हैं तो मायावती का वोट कतरने के लिए कांग्रेस चंद्रशेखर रावण को तैयार कर रही है। दबाव और उठापटक के इस दौर में गठबन्धनों का ऊंट किस करवट बैठेगा चुनाव की तारीख आने और टिकट बंटवारे के बाद भी तय नहीं हो पा रहा है। अभी कयास लग रहे हैं। चर्चाएं जारी हैं। नरेंद्र मोदी से लड़ने के लिए एकजुट होने की बात करने वाले आपस में ही लड़ते रहेंगे या सपा-बसपा से कांग्रेस के बीच तालमेल की अभी भी कोई गुंजाइश बची है!! होली तक सब साफ हो जायेगा। क्योंकि सियासत से ज्यादा होली के रंगों में रूठों को मनाने और दुश्मन को दोस्त बनाने की तासीर होती है।

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