यहां जानिए पौराणिक काल में कैसे सीखते थे भाषा

प्राचीन काल की शुरुआत पृथ्वी के जन्म से होती है। पृथ्वी को वेदों, पुराणों और शास्त्रों में संपूर्ण मानव जीव जाति का दर्जा मिला है। पुराणों में इसी सृष्टि को मृत्युलोक कहा गया है।

मृत्युलोक में सदियों पहले आदिकाल में आदिमानव रहते थे। वह संवाद तरह-तरह की आवाजों के जरिए किया करते थे। भाषा सीखने का यह उनका तरीका था। इस तरह समय का पहिया चलता गया और संवाद सरल होता गया। जब मानव सभ्य हुआ तो उसने भाषा के जरिए एक दूसरे से संवाद किया। यह सभ्य भाषा संस्कृत थी।

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संस्कृत के श्लोकों की रचना हुई। पहले ये श्लोक गुरुकुल में शिष्यों को कंठस्थ कराए जाते थे। फिर इनको ताड़ पत्रों पर लिखना शुरु किया। इस तरह वेदों और देवों की भाषा संस्कृत को लोगों ने सीखना शुरु किया। इस तरह संस्कृत भाषा से कई अन्य भाषाओं का जन्म हुआ।

वेदों की भाषा संस्कृत है। चारों वेद संस्कृत भाषा में ही लिखे गए थे। संस्कृत भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा तो मिला ही है, बल्कि यह हिन्दी-यूरोपीय भाषा परिवार की मुख्य शाखा है। यही कारण है कि संस्कृत भाषा दुनिया की सबसे पुरानी भाषा है।

यदि, कहें कि संस्कृत हिन्दी-ईरानी भाषा की हिन्दी-आर्य उप शाखा की मुख्य भाषा है तो गलत न होगा। आलम यह है कि आधुनिक भारतीय भाषाएं हिन्दी, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, बंगला, उड़िया, नेपाली, कश्मीरी, उर्दू आदि सभी भाषाओं की जननी संस्कृत भाषा ही है। इन सभी भाषाओं में ही यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है।

 

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