यदि ऐसा होता तो महाभारत का युद्ध ही न होता!

द्वापर युग में महाभारत का विशाल युद्ध हुआ था। यह युद्ध उस सदी का सबसे भयंकर और बड़ा युद्ध माना जाता है। क्योंकि इसमें भारत के अलग-अलग जगहों से आए राजाओं ने लड़ाई में अपनी-अपनी भूमिका निभाई थी।

 इस युद्ध में आए राजाओं में कोई मायावी था, तो कोई अतिबलशाली। रोचक बात यह है कि इस युद्ध में स्वयं हनुमानजी और विष्णु भगवान के अवतार श्रीकृष्ण भी मौजूद थे। लेकिन इन्होंने इस युद्ध में हिस्सा नहीं लिया था। श्रीकृष्ण, महाभारत युद्ध में अर्जुन के सारथी बने, तो हनुमानजी अर्जुन के रथ के ऊपर ध्वजा में मौजूद थे।
 
लेकिन दिलचस्प बात यह है कि यह यु्द्ध टाला जा सकता था। जिससे कई सैकड़ों सैनिकों और कौरवों का विनाश होने से रुक सकता था। लेकिन यह विधि का विधान था। आधुनिक युग में मौजूद नई पीढ़ी के जेहन में यह प्रश्न उठना लाजमी है कि इस युद्ध को कैसे टाला जा सकता था।
 
जाहिर तौर पर यदि महाभारत द्रोपदी के कारण हुआ, जब द्रोपदी ने दुर्योदन को अंधे राजा का अंधा लड़का कहा। लेकिन यही एक कारण नहीं था। बल्कि दुःशासन और दुयोधन द्वारा द्रोपदी का भरी सभा में अपमान करना। कौरवों द्वारा पांडवों को मौत की नींद सुलाने के लिए कई तरह की निष्फल योजनाओं का क्रियान्वयन करना जिसमें लाख का महल, भयानक दानवों से पांडवों को हानि पहुंचाना भी मुख्य कारण थे।
 
लेकिन महाभारत यु्द्ध का एक और कारण था। माया और धन का मोह। यह मोह ही था जैसे कि हस्तिनापुर नरेश धृतराष्ट्र का अपने पुत्र का मोह। और कौरवों के बड़े भाई यानी दुर्योदन का हस्तिनापुर के राज्य का मोह। वह अपने चचेरे भाइयों को सुई के बराबर भी राज्य नहीं देना चाहते थे।
 
दरअसल, कौरव और पांडव बचपन में इतनी नफरत नहीं करते थे। कौरवों में पांडवों के प्रति नफरत पैदा करने का कार्य शकुनि ने किया था। शकुनि कौरवों के मामाश्री थे। और गांधारी के भाई थे। वह चाहते थे कि उनकी बहन के पुत्र ही हस्तिनापुर के उत्ताराधिकारी बने।
 
 
ऐसे ही अनेकों कारण हैं, जिनसे महाभारत युद्ध की पृष्ठभूमि पहले से ही तैयार हो रही थी। और जब अति का अंत हुआ तो महाभारत का युद्ध हुआ। हालांकि समय रहते यह रोका भी जा सकता था। कहने का आशय यह है कि जैसे द्वापर युग में हुआ वैसा हम निजी जिंदगी में न करें। क्योंकि परिणाम महाभारत युद्ध की तरह ही होता है।

 

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