‘मैं एक लड़की हूं, हिंदुस्तानी हूं, नाम हुमा कुरैशी है, मैं सुरक्षित हूं’

नई दिल्ली. पूर्व उपराष्‍ट्रपति हामिद अंसारी ने कार्यकाल के अंतिम दिन अपने विदाई भाषण में भले ही देश में मुसलमानों को असुरक्षित बताया हो मगर अभिनेत्री हुमा कुरैशी इस बात से इत्‍तेफाक नहीं रखती हैं। उन्‍होंने कहा, भारत की आजादी को 70 वर्ष पूरे हो चुके हैं और इतने अच्‍छे माहौल में सकारात्मक बातें ही अच्छी लगती हैं। मैं खुद एक लड़की हूं, हिन्‍दुस्‍तानी हूं और यहां खुद को पूरी तरह महफूज मानती हूं। भारत में काफी सुधार हुआ है…
‘मैं एक लड़की हूं, हिंदुस्तानी हूं, नाम हुमा कुरैशी है, मैं सुरक्षित हूं’
 
– दरअसल, हुमा अपनी एक फिल्म के प्रमोशन के सिलसिले में दिल्ली आई थीं।
– भारत की आजादी के 70वें वर्ष में महिलाओं की आजादी की बात पर हुमा बोलीं, भारत में काफी सुधार हुआ है। बेसिक सुरक्षा तो सरकार लड़कियों को दे ही रही है मगर लड़कियों को खुद भी इतना मजबूत होना पड़ेगा कि उन्‍हें इसकी आवश्यकता न पड़े।
– दिल्‍ली विश्वविद्यालय से हिस्ट्री ऑनर्स की डिग्री प्राप्‍त कर चुकीं हुमा ने कहा, इतिहास मेरा हमेशा से पसंदीदा विषय रहा है।

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यूं आया पार्टीशन-1947 का ख्याल
– इस फिल्म की निर्देशक गुरिंदर चड्ढा ने बताया, मुझे यह फिल्‍म बनाने का आइडिया तब आया जब मैं अपने दादा का पुश्तैनी मकान खोजते हुए पाकिस्‍तान के झेलम शहर पहुंची। वहां मैंने बहुतों से पूछा कि क्‍या वे लोग मेरे दादा को जानते हैं। तब पता चला कि वे सभी सन 1947 में ही वहां आकर बसे हैं।
– इससे मुझे अंदाजा लगा गया था कि कैसे रातों रात एक पूरा शहर अपना घर-जमीन छोड़कर दूसरी जगह बस गए। उसी प्लॉट को लेकर यह फिल्म बनाई है।
सालों बाद पापा से मिले थे कजिन
– हुमा ने बताया, विभाजन के वक्त मेरे दादा जी पाकिस्‍तान छोड़ दि‍ल्ली में बस गए थे मगर मेरे पिताजी की दो बुआओं की शादी पाकिस्‍तान के एक शहर में हुई थी। विभाजन के बाद पापा और दादा जी का बुआ लोगों से मिलना-जुलना बंद हो गया। काफी साल बाद दिल्‍ली में पापा के होटल में एक आदमी उन्‍हें खोजता हुआ आया और उसने उनका नाम पूछा। उसने बताया कि वह पापा की बुआ के बेटे हैं। सालों बाद पापा से मुझे जब इस बात का पता चला तो हम लोग काफी इमोशनल हो गए।
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