मेडिकल कॉलेज घूस कांडः SIT जांच कराने की मांग को किया खारिज, भूषण-कामिनी को SC की फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल कॉलेज घूस मामले की SIT जांच कराने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है. साथ ही याचिका दायर करने वाले वकील कामिनी जायसवाल और प्रशांत भूषण को जमकर फटकार लगाई है. न्यायाधीश एके अग्रवाल, एम खानविल्कर और अरुण मिश्रा की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि एक न्यायाधीश के खिलाफ FIR दर्ज नहीं की जा सकती है.मेडिकल कॉलेज घूस कांडः SIT जांच कराने की मांग को किया खारिज, भूषण-कामिनी को SC की फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ”हम कानून के ऊपर नहीं हैं, लेकिन कानून की प्रक्रिया का पालन निश्चित रूप से किया जाना चाहिए. न्यायिक आदेश पर एक न्यायाधीश के खिलाफ FIR दर्ज नहीं की जा सकती है.” कोर्ट ने माना कि ऐसी याचिकाएं दायर करके अदालत का अपमान और फोरम शॉपिंग (अपने पसंदीदा जज के पास मामले को हस्तांतरित कराने की कोशिश) हैं. हालांकि न्यायालय ने कामिनी जायसवाल और प्रशांत भूषण के खिलाफ अवमानना का नोटिस जारी नहीं किया.

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प्रशांत भूषण पर सख्त टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले में वकील का आचरण आचार संहिता के खिलाफ है, लेकिन हम फिर भी इनके खिलाफ अवमानना की प्रक्रिया शुरू नहीं कर रहे हैं. शीर्ष अदालत ने कहा कि भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ आरोप निराधार हैं और मामले की सुनवाई से न्यायाधीश को अलग करने की कोई जरूरत नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मामले को इस खंडपीठ को हस्तांतरित करने में सक्षम हैं. अदालत ने कहा कि मामले की सुनवाई से न्यायाधीश एम खनविल्कर को अलग करने की कोशिश फोरम शॉपिंग के लिए की जा रही है.

मालूम हो कि इन याचिकाओं में मेडिकल कॉलेज से जुड़े मामलों को निपटाने के लिए कथित तौर पर जजों पर घूस लेने का आरोपलगाए गए थे. शीर्ष अदालत ने कहा कि बिना वजह मामले में याचिका दायर की गई और मामले को तूल दिया गया. इससे कोर्ट की प्रतिष्ठ और सम्मान को पहले ही भारी क्षति हो चुकी है. ऐसी याचिकाओं से न्यायाधीश की ईमानदारी पर सवाल उठते हैं.

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इससे पहले नौ नवंबर को न्यायाधीश जे चेलमेश्वर और एस अब्दुल नजीर की पीठ ने मामले को पांच जजों की संविधान पीठ के पास सुनवाई के लिए भेजने का आदेश दिया था, लेकिन 10 नवंबर को मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली पांच सदस्यीय खंठपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए आदेश दिया कि जब तक मुख्य न्यायाधीश किसी मामले को हस्तांतरित नहीं करते है, तब तक कोई भी जज किसी मामले में सुनवाई नहीं कर सकता है.

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