महाभारत युद्ध से पहले ही मारे गए थे 4 पांडव, जानें युधिष्ठिर ने उन्हें कैसे पुनर्जीवित किया था
नई दिल्ली: कौरवों और पांडवों के बीच हुए महाभारत की गाथाएं हम सभी ने सुनी है । इस युद्ध में पांडवों की जीत और कौरवों की हार हुई थी । युद्ध में पांडवों के शौर्य और भगवान श्रीकृष्ण की रणनीति ने ऐसा चक्रव्यूह रचा कि दुर्योधन अपने 99 भाईयों समेत अपना सब कुछ हार गया । इस युद्ध में अर्जुन, भीम समेत पांचों पांडवों ने सभी महारथियों को धूल चटा दी थी । लेकिन शायद आप नहीं जानते, इस युद्ध से पहले ही युधिष्ठिर के चारों भाईयों की मौत हो चुकी थी । जिन्हें बाद में युधिष्ठिर ने पुनजीर्वित किया था ।
महाभारत का रोचक प्रसंग
ये रोचक प्रसंग यक्ष प्रश्न से जुड़ा है । जी हां ये कथा तब की हे जब युधिष्ठिर समेत पांचों पांडव 12 वर्षों के वनवास और अंतिम एक वर्ष के अज्ञात वास पर थे । अज्ञातवास से पूर्व ही हुए इस प्रसंग में एक बार जब पांडव जंगल में घूते-घूमते थक गए तो वो बेहाल होकर एक जगह बैठ गए । प्यास लगी थी तो युधिष्ठिर ने सबसे पहले नकुल को पानी की तलाश के लिए जाने को कहा ।
पानी लेकर नहीं लौटे नकुल
बड़े भाई का आदेश पाकर नकुल फौरन जल की तलाश में निकल गए । बहुत जल्दी उन्हें एक तालाब भी मिल गया । प्यासे होने के चलते उन्होने पहले ही तालाब का जल पीना शुरू कर दिया । लेकिन जल पीने से पहले ही एक आकाशवाणी ने उन्हें रोक दिया । इस आकाशवाणी में पानी पीने से पहले कुछ सवालों के जवाब देने को कहा गया था । नकुल ने इस आवाज की अनदेखी की और पानी पी लिया । इसी के साथ वो वहीं मृत्यु को प्राप्त हो गए ।
सहदेव और अर्जुन भी गए
नकुल बहुत देर तक नहीं लौटे तो युधिष्ठिर ने सहदेव को पानी लाने के लिए भेजा । बहुत देर तक सहदेव भी नहीं लौटे तो नकुल और सहदेव की तलाश में अर्जुन को भेजा । अर्जुन भी बहुत जल्द ही सरोवर तक पहुंच गए । प्यासे होने के कारण उन्होने भी पहले पानी पीना चाहा । तभी सरोवर से आई आवाज ने उन्हें रोक दिया, लेकिन सवालों का जवाब मांगने वाली इस आवाज की अर्जुन ने भी अनदेखी की और अपने दोनों भाईयों की तरह वो भी मृत अवस्था में चले गए ।
भीम को भी प्राप्त हुई मुत्यु
पहले नकुल, फिर सहदेव फिर अर्जुन और बाद में भीम । युधिष्ठिर ने अपने चारों भाईयों को वापस ना आता देख खुद ही उनकी तलाश में जाना सही समझा । कुछ ही देर में युधिष्ठिर भी उस स्थान पर जा पहुंचे । वहां जाकर देखा तो उनके चारों भाई मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे । उन्हें इस घटना का रहस्य समझ नहीं आ रहा था । सोचने की कोशि की तो उन्हें लगा जरूर सरोवर के जल में ही कोई बात है ।
यक्ष हुए प्रकट
जब युधिष्ठिर ने भी सरोवर से जल पीने की कोशिश की उससे पहले ही फिर वो आवाज प्रकट हुई और कहा कि पानी पीने से पहले मेरे सवालों को जवाब दो, अन्यथा तुम भी अपने भाईयों की तरह मारे जाओगे । जब युधिष्ठिर ने पूछा कि आप कौन हैं ? तब आकाशवाणी ने कहा कि वो सरोवर के अधिकारी यक्ष हैं । सरोवर का जल केवल उसी को प्राप्त होगा जो उनके सवालों का जवाब देगा ।
यक्ष ने पूछे ये सवाल
यक्ष द्वारा ऐसा कहने पर धर्मराज ने भी उन्हें प्रश्न पूछने को हा । तब यक्ष ने युधिष्ठिर से एक एक कर प्रश्न पूछने शुरू किए । उन्होने पूछा कि – आकाश से ऊंचा, पृथ्वी से भारी और वेग से भी तेज कौन है । इसके जवाब में युधिष्ठिर ने कहा – पृथ्वी से भारी मां हैं, आकश से ऊंचे पिता है, हवा से ज्यादा वेग चिंता है । इसके अलावा प्रश्न थे – मनुष्य का साथ कौन देता है ? जवाब – धैर्य ही मनुष्य का साथी होता है।
ये भी थे सवाल
इसके अलावा यक्ष ने धर्मराज युधिष्ठिर से ऐसे कई प्रश्न पूछे जिसका उत्तर युधिष्ठिर ने बहुत ध्यान से दिया और जवाबों से प्रसन्न होकर यक्ष ने उनके चारों भाईयों के प्राण लौटाकर उन्हें पुनर्जीवित कर दिया ।
प्रश्न : कौन सा शास्त्र है, जिसका अध्ययन करके मनुष्य बुद्धिमान बनता है ?
उत्तरः कोई भी ऐसा शास्त्र नहीं है। महान लोगों की संगति से ही मनुष्य बुद्धिमान बनता है।
प्रश्नः घास से भी तुच्छ चीज क्या है ?
उत्तरः चिंता।
प्रश्नः विदेश जाने वाले का साथी कौन होता है ?
उत्तरः विद्या।
इन प्रश्नों का भी मांगा जवाब
प्रश्नः मरणासन्न वृद्ध का मित्र कौन होता है ? उत्तरः दान, क्योंकि वही मृत्यु के बाद अकेले चलनेवाले जीव के साथ-साथ चलता है। प्रश्नः बर्तनों में सबसे बड़ा कौन-सा है ?
उत्तरः भूमि ही सबसे बड़ा बर्तन है जिसमें सबकुछ समा सकता है।
प्रश्नः किसके छूट जाने पर मनुष्य सर्वप्रिय बनता है ?
उत्तरः अहंभाव के छूट जाने पर मनुष्य सर्वप्रिय बनता है।
प्रश्नः किस चीज को गंवाकर मनुष्य धनी बनता है ?
उत्तरः लालच को खोकर। युधिष्ठिर ने यक्ष के सभी सवालों के सही जवाब दिए ।