महागठबंधन के लिए इन बड़ी पार्टियों को अखिलेश के हाँ का इंतजार..

लखनऊ. सियासत में  कोई एक दिन कितना महत्वपूर्ण हो जाता है इस बात का ताजा उदाहरण 3 नवम्बर को हुयी अखिलेश यादव की रथयात्रा से समझा जा सकता है. बीते दिनों पार्टी संगठन से अपने समर्थको को बाहर किए जाने और सपा सुप्रीमो की नाराजगी के संकेत के बीच रथयात्रा की कामयाबी ने अखिलेश यादव के कद को काफी बढ़ा दिया है. बीते दिनों समाजवादी पार्टी में हुए घमासान के बाद अखिलेश यादव के बढे कद का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि महागठबंधन के लिए आगे बढ़ रहे समाजवादी नेताओं को दूसरे दलों के शीर्ष नेताओं ने साफ़ सन्देश दे दिया है कि वे गठबंधन के लिए तभी आगे बढ़ेंगे जब खुद अखिलेश यादव की हाँ होगी.

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बिहार के बाद यूपी में भाजपा का रथ रोकने की कवायद में लगे कांग्रेस, राष्ट्रीय लोकदल और जनता दल युनाईटेड के नेताओं ने सपा सुप्रीमो को सन्देश दे दिया है कि वे चाहते हैं कि महागठबंधन का फैसला तभी हो जब उसमे अखिलेश यादव की पूरी सहमति हो.

3 नवम्बर को निकली समाजवादी विकास रथयात्रा में उमड़ी भीड़ के बाद आये सर्वे में भी यूपी की जनता ने अखिलेश यादव को सीएम पद की पहली पसंद बताया है , हांलाकि इस सर्वे के अनुसार समाजवादी पार्टी की उठापठक के बाद पार्टी को बहुमत की संभावनाए कम हुयी है.

 

कुछ दिन पहले कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी यह कहा था कि वे गठबंधन की संभावना पर तभी विचार करेंगे जब अखिलेश सपा का चेहरा बनें. बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने भी ऐसे ही संकेत दिए हैं. राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया चौधरी अजीत सिंह भी समाजवादी पार्टी के अंदरूनी हलचल पर नजर बनाये हुए हैं , सपा के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव से उनकी बातचीत चल रही है मगर उनकी राय में भी अखिलेश की सहमती बहुत महत्वपूर्ण है.

समाजवादी पार्टी की अंदरूनी हलचल ने उनके पारंपरिक वोटबैंक में भी एकबारगी बेचैनी है. दूसरी तरफ भाजपा ने मिशन यूपी के लिए योजनाबद्ध  तरीके से अभियान चलाया हुआ है. भाजपा ने अपने गठबंधन की रूपरेखा दो माह पहले ही तैयार कर ली थी और कांग्रेस और बसपा के कई बड़े नेताओं को अपने पाले में लाने में वह कामयाब हो चुकी है. ऐसे में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के सामने भाजपा एक बड़ी चुनौती बन कर उभरी है.

बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी अपनी तैयारिया तेज कर रखी है. उनकी उम्मीद का बड़ा सिरा मुस्लिम मतदाताओं से जुडा हुआ है. मायावती को उम्मीद है कि समाजवादी पार्टी की हलचल के कारण मुस्लिम वोटर उनके साथ आ सकता है ऐसे में दलित मुस्लिम गठजोड़ के जरिये वे अपने मत प्रतिशत को जिताऊ स्थिति में लाने में कामयाब हो सकती है.
सियासी पंडितो का मानना है कि यदि समाजवादी पार्टी के नेतृत्व में कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल मिल जाते हैं तो फिर उत्तर प्रदेश में यह एक अजेय गठबंधन होगा.

5 नवम्बर को कांग्रेस को छोड़ कर बाकी सभी संभावित सहयोगी दलों के शीर्ष नेता लखनऊ में समाजवादी पार्टी के रजत जयंती समारोह में शिरकत करने आ रहे हैं. इस आयोजन के जरिये वे समाजवादी पार्टी के अंदरूनी सत्ता संघर्ष का जायजा भी लेंगे.

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