भारत में नये धर्म का उदय, 45 लाख अनुयायी

रांची। भारत के झारखंड प्रांत में एक नया मजहबी आन्दोलन जन्म ले चुका है। यह नया मजहब किसी और का नहीं यहां tribal_women_prakriti-300x176के 45 लाख आदिवासियों के एक समूह का है। सरना आदिवासी ख़ुद को हिंदू कहे जाने का विरोध कर रहे हैं और अपने धर्म को मान्यता दिए जाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं।

यह आन्दोलन उस समय शुरू हुआ जब भारत सरकार ने धर्म पर आधारित जनगणना जारी की। जिसमें झारखंड की कुल जनसंख्या में से 42 लाख 35 हजार 786 लोगों ने अन्य धर्म के कॉलम में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी। जनगणना शुरू होने से पहले पूरे राज्य में आदिवासियों का एक अभियान चला था। जिसमें सरना धर्म के लिए अलग कोड की मांग की गयी थी। लोगों ने गांव-गांव जाकर कहा था कि जनगणना में धर्म के स्थान पर सरना धर्म लिखें।

लेकिन भारत सरकार ने जो जनगणना चार्ट बनाया, उसमें सरना धर्म के लिए अलग कोड की व्यवस्था नहीं की।

आदिवासी बहुल जिलों में अन्य धर्म के कॉलम वालों की संख्या ज्यादा है। झारखंड में आदिवासी बहुल जिले पश्चिमी सिंहभूम में सबसे ज्यादा करीब 10 लाख अन्य धर्म के कॉलम वाले बताये जाते हैं। यह वहां की कुल आबादी का करीब 50 फीसदी है।

पुरानी है सरना धर्म की मांग

सरना धर्म गुरु बंधन तिग्गा का कहना है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री कार्तिक उरांव के समय से ही सरना को अलग धर्म का दरजा देने की मांग की जा रही है। 2001 की जनगणना में भी सरना को अलग धर्म लिखने का आह्वान किया गया था। उस वक्त की जनगणना में करीब 35 लाख लोगों ने सरना धर्म में होने का दावा किया था। इस बार यह संख्या 45 लाख से ऊपर है। राज्य में करीब एक करोड़ के आसपास आदिवासियों में 15 लाख इसाई हैं। एक करोड़ में
इनको घटा दिया जाये तो करीब 85 लाख के आ
सपास वैसे आदिवासी बच जाते हैं, जो गैरइसाई हैं। इसमें से 45 लाख लोगों ने सरना धर्म लिखा है।

जैन धर्म के बराबर है हमारी संख्या : डॉ उरांव 

रांची विवि मानविकी विभाग के अध्यक्ष डॉ करमा उरांव का भी कहना है कि सरना धर्म वालों का दावा मजबूत हो रहा है। उनके अनुसार सरना धर्मावलंबियों की जनसंख्या जैन धर्म के बराबर हो गयी है। जैन धर्म की पूरे देश में कुल जनसंख्या 45 लाख के करीब है। वहीं केवल झारखंड में ही हमारी संख्या 45 लाख के करीब (जो दावा है) है। इसके अतिरिक्त छत्तीसगढ़, ओडिशा, बंगाल, बिहार में भी सरना धर्म वालों की संख्या है। कुछ राज्यों में गोंड व अन्य समाज के लोगों को भी सरना धर्म में शामिल होने का आग्रह किया जा रहा है।

सरना आदिवासियों का कहना है कि वे हिंदू नहीं हैं। वे प्रकृति के पुजारी हैं। उनका अपना धर्म है ‘सरना’, जो हिंदू धर्म का हिस्सा या पंथ नहीं है। इसका हिंदू धर्म से कोई लेना देना नहीं है।

छह अक्टूबर को दिल्ली कूच

इस मांग के समर्थन में छोटानागपुर में रैली, जुलूस, धरना, प्रदर्शन और बैठकों का दौर चल रहा है और आगामी छह अक्टूबर को वो दिल्ली कूच करने का भी इरादा बना रहे हैं।


पुराना इतिहास

इस मांग को आदिवासी विषयों के जानकार और पत्रकार कोरनेलियुस मिंज भी सही मानते हैं। वो कहते हैं, “सरना धर्म वालों का दावा मज़बूत हो रहा है। इनका इतिहास काफी पुराना है। लेकिन इस पर ख़तरे बढ़ रहे हैं कि इसे दूसरे धर्म में शामिल कर संख्या बढ़ा ली जाए। अधिकतर जनगणना में इन्हें हिन्दू में शामिल किया जाता रहा है।

एशिया पेसिफिक यूथ इंडिजिनेस पीपुल्स फोरम की अध्यक्ष मिनाक्षी मुंडा कहती हैं कि आदिवासियों की जनगणना अलग से होनी चाहिए। यह उनके अस्तित्व से जुड़ा सवाल है। आदिवासियों के जन्म, मृत्यु, विवाह, पर्व-त्योहार के रीति-रिवाज अलग हैं।

 

 

 

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