भारतीय रक्षा उद्योग के विकास और ‘मेक इन इंडिया’ मुहिम के लिए यह एक बड़ा झटका|

भारतीय नौसेना ने स्वदेश निर्मित लड़ाकू विमान तेजस को भारी-भरकम बताकर खारिज कर दिया है। नौसेना अब अपनी रक्षा प्रणाली की क्षमता बढ़ाने के लिए विदेशी लड़ाकू विमान की तलाश कर रही है। भारतीय रक्षा उद्योग के विकास और ‘मेक इन इंडिया’ मुहिम के लिए यह एक बड़ा झटका है।भारतीय नौसेना ने स्वदेश निर्मित लड़ाकू विमान तेजस को भारी-भरकम बताकर खारिज कर दिया है।
 नौसेना ने पिछले महीने ही अपने लड़ाकू विमानवाहक के बेड़े में 57 विमान शामिल करने के लिए निर्माताओं को आमंत्रित किया था। अरबों डॉलर के इस ऑर्डर से सरकार को उम्मीद थी कि 33 वर्षों की मेहनत से स्वदेश निर्मित लड़ाकू विमान तेजस के निर्माताओं को बल मिलेगा। भारत, दक्षिण कोरिया, ताइवान और अन्य एशियाई देशों के खरीदार इस वर्ष स्वदेशी लड़ाकू विमान विकसित करने के प्रयासों में तेजी आने की उम्मीद कर रहे हैं क्योंकि अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियां इस क्षेत्र में कम दिलचस्पी दिखा रही हैं। 

लड़ाकू विमान तेजस का निर्माण अब भी जारी है

विशेषज्ञों का कहना है कि अत्याधुनिक लड़ाकू विमान बनाने की उनकी आकांक्षाएं अब भी दशकों पीछे हैं क्योंकि इन देशों को प्रौद्योगिकी में महारत हासिल करने के लिए अभी और समय लगेगा। सिंगापुर में एस. राजरत्नम स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के रिचर्ड ए. बिजिंगर बताते हैं कि यह ऊंची महत्वाकांक्षा और छोटी सफलता का मामला है। ऐसा टेक्नो राष्ट्रवाद के कारण हो रहा है। ये सभी देश खुद को उभरती शक्तियां मानने लगे हैं। 

​प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के तहत वैज्ञानिक मंगलवार को बंगलूरू में एयर शो के दौरान तेजस के करतब दिखाने वाले हैं। लेकिन इस लड़ाकू विमान का निर्माण अब भी जारी है और सिर्फ तीन विमान वायुसेना में शामिल हो पाए हैं। 

भारतीय रक्षा वैज्ञानिक नौसेना के इस फैसले से हताश

इंडोनेशिया के सहयोग से दक्षिण कोरिया ने अरबों डॉलर की लागत से दोहरे इंजन वाले केएफ-एक्स लड़ाकू विकसित करने की योजना बनाई है जबकि ताइवान ने इसी महीने कहा है कि उसने 66 ऐसे जेट प्रशिक्षु विमान बनाने की योजना बनाई है जो लड़ाकू विमान बनाने में मददगार साबित होंगे।

भारतीय लड़ाकू विमान को वायुसेना में शामिल किए जाने की योजना 1994 से लंबित है जिसे सरकार ने 1983 में ही हरी झंडी दे दी थी। भारतीय वैज्ञानिक तभी से इंजन सहित विश्व का सबसे आधुनिक और हल्का लड़ाकू विमान बनाने की कोशिश कर रहे हैं। 

दिसंबर में नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा ने कहा था कि समुद्र से छोड़े जाने वाले विमान मानकों पर खरे नहीं उतर पाए हैं और हथियार लादने के बाद यह विमानवाहक जहाज से उड़ान नहीं भर सकता। नौसेना के एक सूत्र का कहना है कि यह विमान वर्षों से हथियारों के साथ 200 मीटर के विमानवाहक डेक से उड़ान भरने में विफल रहा है।

इस वजह से नौसेना को पिछले महीने इसकी भरपाई के लिए एक विदेशी लड़ाकू विमान का अनुरोध करना पड़ा। भारतीय रक्षा वैज्ञानिकों का कहना है कि वे नौसेना के इस फैसले से हताश हैं और लड़ाकू विमान का विकास हर कदम पर चुनौतीपूर्ण हो गया है।

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