ब्रज को बनाने में वल्लभाचार्य जी की भूमिका थी सबसे अधिक

वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वल्लभाचार्य जयंती मनाई जाती है। वल्लभाचार्य ने पुष्टिमार्ग का प्रतिपादन किया था। उन्होंने इस मार्ग पर चलने वालों के लिए वल्लभ संप्रदाय की आधारशिला रखी।ब्रज को बनाने में वल्लभाचार्य जी की भूमिका

पुष्टिमार्ग शुद्धाद्वैत दर्शन पर आधारित है। इस मार्ग पर चलने वाले भगवान के स्वरूप दर्शन के अतिरिक्त किसी अन्य वस्तु के लिए प्रार्थना नहीं करते।  आराध्य के प्रति उनका पूर्ण समर्पण होता है। भक्त तन, मन और अपना सर्वस्व भगवान को सौंप देता है। भागवत पुराण के अनुसार भगवान का अनुग्रह पोषण या पुष्टि है। वल्लभाचार्य ने प्रत्येक जीवात्मा को परमात्मा का अंश माना है। उनके अनुसार परमात्मा ही जीव आत्मा के रूप में संसार में छिटके हैं। इसी आधार पर किसी भी जीव को कष्ट या प्रताड़ना देना ठीक नहीं। वल्लभाचार्य के मार्ग पर चलने वालों नही वल्लभ संप्रदाय की नींव रखी। 

भारतीय दर्शन से रूबरू होने के लिए वैशाख के महीने का विशेष महत्व है। इसकी वजह है कि आदि शंकराचार्य, वल्लभाचार्य और रामानुजाचार्य की जयंती इसी माह में आती है। तीनों आचार्यों के बीच सदियों का फर्क है, लेकिन अद्वैत उन्हें एक साथ बांधता है। भारत में मान्यता रही है कि परमात्मा और आत्मा के बीच कोई भेद यानी द्वैत नहीं है। इस अद्वैत दर्शन पूरे भारतवर्ष के सामने रखने की शुरुआत आदि शंकराचार्य से होती है। उन्होंने अपने अद्वैत से देश को जोड़ने की कोशिश की।

विष्णु और शिव के भेद को पाटने का प्रयास किया। उनके बाद आने वाले रामानुज ने राम भक्ति को केंद्र में रखा। वल्लभाचार्य ने कृष्णभक्ति को। रामानुजाचार्य और वल्लभाचार्य दोनों ही वैष्णव संत अद्वैत से अलग सोच ही नहीं पाते। रामानुज का अद्वैत विशिष्ट हो जाता है। वल्लाभाचार्य का शुद्ध।

लेकिन अद्वैत पर कोई समझौता नहीं है। शंकराचार्य अलग-अलग देवताओं की बात कर रहे थे। अगर भारत में राम और कृष्ण की भक्ति की धारा बहती है तो उसका श्रेय रामानुज और वल्लभाचार्य को है। वल्लभाचार्य जी ने ‘श्रीकृष्ण: शरणं ममं’ मंत्र दिया। यही नहीं आज के ब्रज को बनाने में वल्लभाचार्य जी की भूमिका रही है।

 

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