बोर्ड की कॉपी जांचने वाले शिक्षकों की सुरक्षा को लेकर उठे सवाल

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-सीएम-डिप्‍टी सीएम से लॉकडाउन रहने तक मूल्‍यांकन रोकने की मांग

-उत्‍तर प्रदेश माध्‍यमिक शिक्षक संघ ने पत्र लिखकर कई‍ बिन्‍दुओं को रखा

डॉ महेंद्र नाथ राय

सेहत टाइम्‍स ब्‍यूरो

लखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार ने यूपी बोर्ड की हाईस्कूल एवं इंटरमीडिएट की परीक्षाओं की उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन की 5 मई से कराने की घोषणा की है। इस फैसले पर उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ ने कई प्रश्न उठाते हुए उनके निराकरण के लिए मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री, जो कि शिक्षा मंत्री भी है, को पत्र लिखकर अपील की है कि हमारी मांग है कि लॉकडाउन जारी रहने तक मूल्‍यांकन कार्य को स्‍थगित रखा जाये और मूल्‍यांकन के नाम पर शिक्षकों के साथ अमानवीय व्‍यवहार न किया जाये। संगठन द्वारा शिक्षकों से भी अपील की है कि वे लॉकडाउन समाप्‍त होने तक मूल्‍यांकन कार्य का बहिष्‍कार करें, संगठन हर हाल में उनकी सुरक्षा करेगा।

संघ के प्रांतीय मंत्री और प्रवक्ता डॉ महेंद्र नाथ राय ने पत्र में लिखा है कि 5 मई से 25 मई के बीच होने वाले उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन में यह स्‍पष्‍ट नहीं है कि रेड जोन के अंतर्गत जो जनपद आते हैं वहां पर मूल्यांकन होगा या नहीं। पत्र में कहा गया है कि लॉक डाउन के कारण अनेक शिक्षक ऐसे हैं, जो अपने गृह जनपद में अपने घर चले गए थे, उनकी दूरी अपने कार्य क्षेत्र से  सैकड़ों किलोमीटर से ज्यादा है, यहां तक कि दूसरे प्रदेशों में भी कुछ शिक्षक रहते हैं। ऐसे में मूल्यांकन कार्य के लिए ये शिक्षक जब दूसरे राज्‍य से आयेंगे तो नियम के मुताबिक उन्‍हें यूपी में 14 दिन के लिए क्‍वारेंटीन होना पड़ेगा। यही नहीं अगर शिक्षक अगर मूल्‍यांकन के लिए न आये तो सरकार जनपदों में अपने अधिकारियों के माध्‍यम से उन शिक्षकों पर दंडात्‍मक कार्यवाही करायेगी, ऐसा हुआ तो संगठन बर्दाश्‍त नहीं करेगा।

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पत्र में एक और बिंदु में कहा गया है कि जिस तरह से पुलिस एवं डॉक्‍टर, नर्स मानवीय सेवा से जुड़े हुए हैं, उनको सरकार द्वारा अप्रिय घटना होने पर 50 लाख की धनराशि देने की घोषणा की गई है, ऐसे में शिक्षक चाहे वह वित्तविहीन का हो चाहे सवित्‍त का हो, वह भी राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दे रहा है, उसके लिए 50 लाख किसी अप्रिय घटना की स्थिति में देने का प्रावधान नहीं किया गया है, आखिर क्‍यों यह दोहरा मापदंड क्‍यों।  पत्र में यह भी कहा गया है कि अनेक शिक्षक ऐसे हैं जो मोटरसाइकिल चलाना नहीं जानते, पब्लिक ट्रांसपोर्ट चल नहीं रहा है, ऐसे भी यदि शिक्षक किसी शिक्षक साथी के साथ मोटरसाइकिल पर बैठकर जाते हैं तो सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं हो पाएगा और पुलिस उनके विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाही करेगी।

एक अन्य बिंदु में कहा गया है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार संगठित असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को एवं ग्रामीण क्षेत्रों में अनेक सुविधाएं जीवन यापन के लिए निशुल्क योगदान दे रहे हैं, लेकिन इससे वित्‍तविहीन साथियों को दूर रखा गया है, उन्‍हें कोई आर्थिक सहायता नहीं दी गयी है। क्या इस देश का संविधान दो तरह की व्यवस्था लागू करने की अनुमति देता है।

डॉ राय ने पत्र में लिखा है कि जिन पुरुषोत्तम भगवान राम को आधार बनाकर यह सरकार सत्ता में आई, उन्हीं पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की मूर्ति भी मुख्यमंत्री ने गर्भ गृह में स्थापित की है, इसी तरह चुनाव से पहले किए गए अपने वचन का पालन किया होता तो वित्तविहीन शिक्षक साथी आज समान कार्य के लिए समान वेतन प्राप्त करते। एक अन्य बिंदु में कहा गया है कि मूल्यांकन कार्य के समय मूल्यांकन केंद्रों पर पानी पिलाने एवं बंडलों को ले जाने के लिए बाहरी मजदूर भी लगाए जाते हैं, क्या मूल्यांकन केंद्रों पर कोई जांच प्रक्रिया के लिए डॉक्टर की टीम की व्यवस्था की गई है, यदि नहीं तो इससे नोवेल कोरोना वायरस के संक्रमण को कैसे रोका जा सकता है, मूल्यांकन के नाम पर शिक्षकों के जीवन के साथ सरकार अमानवीय व्यवहार क्यों कर रही है।

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