बावरी विध्वंस मामले को हो गए 28 साल, अब 31 अगस्त से पहले आएगा फैसला

लखनऊ। अयोध्या स्थित ढांचा विध्वंस मामले में 6 दिसंबर  1992  को कुल 50 एफ. आई .आर दर्ज हुई जिन्हें 3 जांच एजेंसियों ने मिलकर विवेचना की अब इस मामले में विशेष अदालत 31 अगस्त 2020 के पूर्व अपना फैसला सुनाएगी।

ढांचा विध्वंस प्रकरण के मामले की पहली रिपोर्ट अपराध संख्या 197/92 पर इंस्पेक्टर राम जन्मभूमि प्रियंवदा नाथ शुक्ला ने थाना राम जन्म भूमि पर 40 लोगों को नामजद करते हुए लाखों अज्ञात कारसेवकों के खिलाफ दर्ज कराई थी। जबकि इसी दिन दूसरी रिपोर्ट अपराध संख्या 198/92 पर चौकी इंचार्ज राम जन्मभूमि जी पी तिवारी ने अज्ञात कारसेवकों के खिलाफ दर्ज कराई थी। इसके अलावा 48 रिपोर्टें मीडिया कर्मियों की ओर से दर्ज कराई गई थी जिनमें उन्होंने मारपीट किएजाने,कैमरा ,वीडियो एवं रील छीने जाने का आरोप लगाया था।

सभी मामलों की प्राथमिकी दर्ज होने के बाद उनकी विवेचना स्थानीय पुलिस के द्वारा की गई। इसके बाद अपराध संख्या 197/92 की विवेचना के लिए तत्कालीन सरकार ने 12 दिसंबर 1992 को केंद्र सरकार को पत्र लिखकर केंद्रीय जांच ब्यूरो से विवेचना कराए जाने की संस्तुति कर दी। जिसके बाद केंद्र सरकार ने मामले की विवेचना सीबीआई से कराए जाने के लिए 13 दिसंबर 1992 को अधिसूचना जारी कर दी।

सीबीआई ने अपराध संख्या 197/92 की विवेचना करते हुए 40 आरोपितों के विरुद्ध 4 अक्टूबर 1993 को विशेष अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट( अयोध्या प्रकरण) लखनऊ के समक्ष आरोप पत्र दाखिल किया। जिसमें बालासाहेब ठाकरे ,लालकृष्ण आडवाणी ,कल्याण सिंह ,अशोक सिंघल ,विनय कटियार, मोरेश्वर सावे ,पवन पांडे ,बृजभूषण, शरण सिंह ,जय भगवान गोयल, उमा भारती ,साध्वी ऋतंभरा, महाराज स्वामी साक्षी ,सतीश प्रधान ,मुरली मनोहर जोशी, गिरीराज किशोर ,विष्णु हरि डालमिया ,विनोद कुमार वत्स, रामचंद्र खत्री, सुधीर कक्कर, अमरनाथ गोयल ,संतोष दुबे, प्रकाशशर्मा ,जय भान सिंह पवैया ,धर्मेंद्र सिंह गुर्जर ,राम नारायण दास ,रामजी गुप्ता, पूर्व विधायक लल्लू सिंह ,चंपत राय बंसल ,ओम प्रकाश पांडे, लक्ष्मी नारायण दास महा त्यागी ,विनय कुमार राय ,कमलेशत्रिपाठी ,गांधी यादव ,हरगोविंद सिंह ,विजय बहादुर सिंह ,नवीन भाई शुक्ला, रमेश प्रताप सिंह, आचार्य धर्मदेव आरएन श्रीवास्तव एवं देवेंद्र बहादुर राय को आरोपी बनाया गया है।

तत्कालीन अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अयोध्या प्रकरण श्री महिपाल सिरोही ने मामले को विचारण के लिए सत्र न्यायालय सुपुर्द कर दिया। जहां से यह मामला विशेष न्यायाधीश अयोध्या प्रकरण को सुनवाई के लिए स्थानांतरित किया गया। अयोध्या प्रकरण की विशेष अदालत के समक्ष33आरोपियों की ओर से विचारण के क्षेत्राधिकार को उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के समक्ष चुनौती दी गई। जिसे एक निगरानी याचिका के माध्यम से सुनवाई के उपरांत उच्च न्यायालय ने विशेष अदालत के संज्ञान एवं कार्रवाई को अनुचित बताते हुए इस आधार पर कार्रवाई समाप्त कर दी कि अधिसूचना जारी किए जाने के पूर्व राज्य सरकार की ओर से उच्च न्यायालय से सहमति नहीं ली गई थी। इसी आधार पर अन्य 7 लोगों को विशेष न्यायालय ने आरोप मुक्त कर दिया।

यद्यपि उच्च न्यायालय ने विधिक आधार पर 33 लोगों के विरुद्ध कार्यवाही को बंद कर दिया था परंतु अपने आदेश में कहा था जो भी राज्य सरकार द्वारा विधिक त्रुटि की गई है उसे ठीक किया जा सकता है। इसके पश्चात राज सरकार ने उच्च न्यायालय से परामर्श लेने के उपरांत अधिसूचना जारी की। यह पहला मामला आज विशेष न्यायाधीश अयोध्या प्रकरण की अदालत में विचाराधीन है। जिसकी सुनवाई न्यायाधीश सुरेंद्र कुमार यादव कर रहे हैं।

इसी प्रकार अपराध संख्या 198/92 एवं 48 अन्य मामलों की स्थानीय पुलिस की विवेचना के दौरान उच्च न्यायालय ने 16 दिसंबर 1992 को एक अधिसूचना जारी कर इन मामलों की विवेचना सीबी सीआईडी से कराए जाने का आदेश करते हुए मामलों की सुनवाई के लिए जनपद ललितपुर में विशेष अदालत के गठन का आदेश दिया। प्रभारी चौकी राम जन्मभूमि श्री जी पी तिवारी ने अपनी रिपोर्ट में 9 लोगों को नामजद किया था जिसमें लालकृष्ण आडवाणी ,अशोक सिंघल ,उमा भारती ,मुरली मनोहर जोशी ,गिरिराज किशोर, विष्णु हरि डालमिया ,विनय कटियार एवं विजय राजे सिंधिया को आरोपी बनाया गया था इसके अलावा हजारों अज्ञात कार सेवकों को आरोपित किया गया था।

घटना की रिपोर्ट दर्ज होने के उपरांत मुरली मनोहर जोशी ,उमा भारती ,लालकृष्ण आडवाणी आदि लोगों को ललितपुर के डाक बंगला माताटीला को अस्थाई जेल बनाकर रखा गया जहां पर ललितपुर के विशेष मजिस्ट्रेट द्वारा शुरुआती दौर में न्यायिक रिमांड की कार्रवाई की गई।

ललितपुर की विशेष अदालत के समक्ष सीबीसीआईडी ने 27 फरवरी 1993 को 8 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया जिसमें एक अन्य आरोपी विजय राजे सिंधिया को मृत दिखाया गया। सीबीसीआईडी द्वारा दाखिल इस आरोप पत्र में आरोपियों के विरुद्ध धारा 147, 148 ,149 ,153 ए, 153 बी एवं 505 भारतीय दंड संहिता का आरोप लगाया गया था। विशेष अदालत ने इस आरोप पत्र पर 1 मार्च 1993 को संज्ञान लेकर  विचारण की कार्रवाई करते हुए आरोपियों को न्यायालय में तलब किया था।

ललितपुर में मुकदमे की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने पुनः उच्च न्यायालय की सहमत से 8 जुलाई 1993 को एक अधिसूचना जारी कर मामले को रायबरेली स्थानांतरित कर दिया तथा विशेष अदालत का गठन करते हुए श्री अमिताभ सहाय को विचारण मजिस्ट्रेट नियुक्त किया गया। अपराध संख्या 198/92 एवं अन्य 48 मामलों की रायबरेली की विशेष अदालत में 6 आरोपियों के विरुद्ध आरोप तय किए गए।

मामले के लंबित रहने के दौरान राज्य सरकार ने अपराध संख्या 198/92 एवं 48 अन्य रिपोर्टो की अग्रिम विवेचना सीबीआई से कराने का निश्चय किया तथा 25 अगस्त 1993 को सीबीआई विवेचना की संस्तुति केंद्र सरकार से कर दी। जिसके बाद 26 अगस्त को केंद्र ने सभी मामलों की सीबीआई जांच कराने के लिए दो अधिसूचना जारी की इसमें पहली अधिसूचना अपराध संख्या 198/92 से संबंधित थी जब कि दूसरी अधिसूचना अन्य 48 F.I.R. के लिए थी।

इस मामले की सीबीआई ने 27 अगस्त 1993 को जांच शुरू की जबकि संबंधित सीबी सीआईडी का मामला रायबरेली की विशेष अदालत में चल रहा था। जिसके बाद सीबीआई ने 10 सितंबर 1993 को रायबरेली की विशेष अदालत में एक अर्जी देकर कहा कि इस मामले की अग्रिम विवेचना किए जाने का आदेश केंद्र सरकार द्वारा सीबीआई को दिया जा चुका है तथा उनके द्वारा मामले की विवेचना की जा रही है लिहाजा अदालत उन्हें अग्रिम विवेचना किए जाने की अनुमति दे दे। जिस पर 10 सितंबर 1993 को ही रायबरेली की विशेष अदालत ने सीबीआई के विवेचक को अग्रिम विवेचना करने की अनुमति दे दी थी।

इसी बीच रायबरेली की विशेष अदालत ने सीबीआई से पूछा कि अग्रिम विवेचना के मामले में वह हो क्या कर रही है इस पर सीबीआई ने सभी आरोपियों के विरुद्ध आरोप लगाए जाने की बात कही। इसी के साथ ही साथ 24 जनवरी 1994 को रायबरेली की कोर्ट में सीबीआई ने एक अनुरोध किया कि इस प्रकरण से संबंधित दूसरा मामला लखनऊ की विशेष अदालत में चल रहा है लिहाजा इस मामले को भी लखनऊ की विशेष अदालत को स्थानांतरित कर दिया जाए। जिस पर विशेष अदालत ने जिला जज रायबरेली को सूचित करते हुए मामले को लखनऊ की अदालत भेज दिया जहां पर अगले दिन 25 जनवरी 1994 को पत्रावली प्राप्त हुई।

दूसरी ओर समय अवधि बीत जाने के उपरांत सीबीआई ने उच्च न्यायालय के आदेश को अपील के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी इस अपील को उच्चतम न्यायालय ने 19 अप्रैल 2017 को स्वीकार करते हुए सभी 13 पक्षकारों के विरुद्ध मामला चलाएं  जाने  को कहां तथा रायबरेली की विशेष अदालत में लंबित मामले को लखनऊ की विशेष अदालत में स्थानांतरित करने को कहा। यद्यपि रायबरेली की विशेष अदालत के समक्ष लालकृष्ण आडवाणी ,विनय कटियार ,उमा भारती ,साध्वी ऋतंभरा ,मुरली मनोहर जोशी, विष्णु हरि डालमिया के विरुद्ध अंतर्गत धारा 120 बी भारतीय दंड संहिता के तहत मामला चल रहा था।

उच्चतम न्यायालय के 19 अप्रैल 2017 के निर्णय के उपरांत पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को छोड़कर अन्य लोगों ने लखनऊ की विशेष अदालत में हाजिर होकर अपनी जमानत कराई। उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा था कि आरोपी कल्याण सिंह मौजूदा समय में राजस्थान राज्य के राज्यपाल के पद पर हैं तथा संविधान के अनुच्छेद 360 के अंतर्गत पद पर रहने के दौरान उनके विरुद्ध अदालती कार्यवाही नहीं की जा सकती । लिहाजा उनके विरुद्ध पद से हटने के बाद कार्रवाई की जा सकती है।

इस प्रकार राजस्थान राज्य के राज्यपाल पद से हटने के उपरांत विशेष अदालत ने उन्हें न्यायालय में हाजिर होने के लिए समन जारी किया तथा उनके हाजिर होने के उपरांत सभी आरोपियों के साथ साथ उनके विरुद्ध भी अदालती कार्यवाही प्रारंभ की गई इस समय विशेष अदालत में 32 आरोपितों के विरुद्ध विचारण हो रहा है जबकि 17 आरोपियों की मृत्यु हो चुकी है सीबीआई ने कई चरणों में आरोप पत्र दाखिल कर अभियोजन पक्ष को साबित करने के लिए 994 गवाहों की सूची अदालत में दाखिल की है। जिसमें विचारण के दौरान 354 गवाह पेश किए गए।

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