बहुत कुछ कहते हैं उपचुनावों के नतीजे…

वैसे तो ये सिर्फ चार लोकसभा सीटों और 11 विधानसभा सीटों के उपचुनाव थे, लेकिन लोकसभा चुनावों से ठीक एक साल और साल के अंत में होने वाले चार राज्यों के विधानसभा चुनावों से ठीक छह महीने पहले होने की वजह से इनके नतीजों ने सियासी पारा एकाएक ऊपर चढ़ा दिया है। केंद्र और देश के 20 राज्यों में सरकार चला रही भारतीय जनता पार्टी को इन उपचुनावों के नतीजों से जबर्दस्त झटका लगा है, जबकि कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष को जनता ने यह संदेश दिया है कि 2019 में अगर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा और उसके एनडीए गठबंधन का मुकाबला सफलतापूर्वक करना है तो उसके लिए भाजपा विरोधी मोर्चा अनिवार्य शर्त है। बहुत कुछ कहते हैं उपचुनावों के नतीजे...

उपचुनावों के नतीजों से भाजपा के लिए भी संदेश है कि अपने तमाम प्रचार अभियान, संसाधन, केंद्र और राज्य सरकारों की सत्ता की ताकत, अमित शाह की बेजोड़ मेहनत और नरेंद्र मोदी के करिश्माई नेतृत्व के बावजूद जनता के बीच उसकी लोकप्रियता का ग्राफ गिर रहा है और विपक्षी गठबंधन एक कड़ी चुनौती बन रहा है। उत्तर प्रदेश में 2014 के लोकसभा चुनावों में सहयोगी दलों को मिलाकर कुल 80 में से 73 सीटें जीतने और 2017 के विधानसभा चुनावों में 325 सीटों की तूफानी जीत दर्ज करने के वाली भाजपा पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गोरखपुर और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की फूलपुर लोकसभा सीट बसपा समर्थित समाजवादी पार्टी उम्मीदवारों से हारी और अब कैराना लोकसभा सीट और फूलपुर विधानसभा सीट में उसे राष्ट्रीय लोकदल और समाजवादी पार्टी से हारनी पड़ी है। 

यहां भी भाजपा को सपा और रालोद उम्मीदवारों को बसपा और कांग्रेस का समर्थन मिला हुआ था। कैराना सीट पर भाजपा पहली बार 2014 में जीती थी, जब कि पूरे देश और उत्तर प्रदेश में मोदी लहर थी और 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों का असर यहां के जनमानस पर ताजा था। पहले कांग्रेस और फिर लंबे समय से लोकदल का गढ़ रहे इस क्षेत्र में जाट और मुस्लिम गठजोड़ हमेशा भाजपा पर भारी पड़ता रहा। लेकिन 2013 के दंगों ने जाटों और मुसलमानों के बीच नफरत का एसा बीज बोया कि उससे उगी सियासी फसल को भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनावों में न सिर्फ कैराना बल्कि पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में काटा। लेकिन पिछले चार सालों में किसानों की राज्य और केंद्र सरकार से बढ़ती नाराजगी, रालोद अध्यक्ष अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी की जाटों के बीच घनघोर मेहनत और आखिर में रालोद को सपा, बसपा और कांग्रेस के समर्थन ने कैराना और नूरपुर दोनों ही जगह भाजपा की हार और रालोद की जीत की इबारत लिख दी। 

इन सीटों को जीतने के लिए भाजपा ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य सहित पांच मंत्रियों ने चुनाव प्रचार में जमकर मेहनत की।मतदान के एक दिन पहले बगल के जिले बागपत में एक सरकारी कार्यक्रम में आकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विशाल जनसभा को संबोधित किया और क्षेत्र के गन्ना किसानों की उनके बकाए के भुगतान का आश्वासन भी दिया। इसके बावजूद भाजपा अपनी ये दोनों सीटें हार गई। गोरखपुर उत्तर प्रदेश के पूर्वी छोर पर है और फूलपुर इलाहाबाद प्रदेश के मध्य में है जबकि कैराना और नूरपुर पश्चिमी उत्तर प्रदेश का हिस्सा है। 

तीनों ही जगह उपचुनावों में भाजपा की हार और विपक्षी गठबंधन की जीत का एक संदेश तो स्पष्ट है कि जमीन पर पूरे प्रदेश में गठबंधन का असर है। इन नतीजों का एक बड़ा संदेश सपा और बसपा के लिए भी है कि बिना रालोद के उत्तर प्रदेश में उनका महागठबंधन पूरा नहीं होगा, क्योंकि जाट बहुल पश्चिम उत्तर प्रदेश में रालोद का साथ ही महागठबंधन की जीत की गारंटी बन सकता है।इन नतीजों का एक बड़ा फायदा रालोद अध्यक्ष अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी को ये हुआ है कि प्रदेश की राजनीति में उनका अलगाव अब खत्म हुआ और लोकसभा चुनाव में विपक्षी गठबंधन में उन्हें उचित हिस्सेदारी मिलने का दावा मजबूत हुआ। साथ ही कैराना और नूरपुर से यह संदेश भी मिला है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुसलमानों और जाटों के बीच 2013 के जख्मों से पैदा हुआ अलगाव और दूरी खत्म हुई है और एक बार फिर उनका राजनीतिक गठजोड़ मजबूत हुआ है। 

कैराना में जिस तरह भाजपा को चार मंत्रियों के क्षेत्रों से हार मिली वह भी एक सबक है। इनमें दो विधानसभा क्षेत्र गंगोह और नकुड में तो जाटों की तादाद नाममात्र को है, बल्कि गूजरों की संख्या ज्यादा है जबकि भाजपा उम्मीदवार मृगांका सिंह दिवंगत सांसद हुकुम सिंह जो इलाके के मजबूत और सम्मानित गूजर नेता थे, लेकिन वहां भी भाजपा उम्मीदवार का अच्छे खासे मतों से पिछड़ जाना चौंकाता है। उत्तर प्रदेश के अलावा उत्तराखंड की थराली विधानसभा सीट बचाने में भाजपा कामयाब रही है। लेकिन यहां भी उसे कांग्रेस से कांटे का संघर्ष करना पड़ा। लेकिन कर्नाटक में भाजपा अपनी आर आर नगर सीट नहीं बचा सकी और उसे कांग्रेस से करीब 41 हजार मतों से पराजित होना पड़ा। जबकि यहां जनता दल (एस) के उम्मीदवार को खासे वोट मिले।महाराष्ट्र में कांग्रेस पालघर लोकसभा सीट पर चौथे नंबर पर पहुंच गई। 

भाजपा अपनी यह सीट बचाने में कामयाब रही। यहां उसका मुकाबला कांग्रेस के अलावा सहयोगी शिवसेना और अघाड़ी पार्टी से भी था। पालघर की जीत से भाजपा को जरूर राहत मिली है लेकिन इसके शिवसेना के साथ उसके रिश्तों में कड़वाहट और बढ़ गई है।महाराष्ट्र की बडेगांव विधानसभा सीट पर कांग्रेस निर्विरोध जीत गई। प.बंगाल में ममता बनर्जी का जलवा बरकरार है और तृणमूल कांग्रेस अपनी दोनों विधानसभा सीटें जीतने में कामयाब रही। पंजाब में कांग्रेस ने भारी मतों से शेरकोट विधानसभा सीट फिर जीती। इसी तरह केरल में हुए के विधानसभा सीट पर माकपा ने जीत दर्ज की। 

नगालैंड में हुए उपचुनाव में भाजपा समर्थित एनडीपीपी ने एनपीएफ से लोकसभा सीट छीन ली है। लेकिन सबसे दिलचस्प नतीजा बिहार के जोकीहाट विधानसभा सीट का है जहां लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल के उम्मीदवार शाहनवाज ने 41 हजार से ज्यादा वोटों से जद(यू) उम्मीदवार को हराया। बिहार में नीतीश कुमार के महागठबंधन से अलग होकर भाजपा के साथ जाने के बाद राजद की यह लगातार तीसरी जीत है। इसके पहले हुए अररिया लोकसभा और जहानाबाद विधानसभा सीटों के उपचुनावों में भी राजद ने जीत दर्ज की। लालू प्रसाद यादव की गैर मौजूदगी के बावजूद इन तीनों सीटों पर राजद की जीत ने लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव का सियासी कद खासा मजबूत और बड़ा कर दिया है।

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