बच्चों की चेचक से सुरक्षा के लिए करे ये व्रत

होली संपन्न होने के बाद के सप्ताह में माता शीतला की पूजन का विधान है। कुछ स्थानों पर मां शीतला की पूजा होली के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार या गुरुवार के दिन की जाती है। तिथि के अनुसार चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी या सप्तमी तिथि को शीतला माता की पूजा की जाती है।
 
माता शीतला हमेशा रास्ते में हमें सुरक्षित रखें और हम कभी अपने रास्ते से न भटकें इस भावना से मां शीतला के रूप में पथवारी का पूजन किया जाता है। इस दिन व्रत करने से शीतला देवी प्रसन्ना होती हैं और व्रती के कुल के सभी शीतला जनित दोष दूर होते हैं।
 
शीतला सप्तमी के एक दिन पूर्व मां शीतला को भोग लगाने के लिए बासी भोजन यानी बसौड़ा तैयार किया जाता है। बसौड़े में मीठे चावल, कढी, चने की दाल, हलवा, रबड़ी, बिना नमक की पूड़ी, पूए आदि तैयार किए जाते हैं। सप्तमी के दिन बासी भोजन देवी को नैवेद्य के रूप में अर्पित किया जाता है और फिर पूरा परिवार इसे ग्रहण करता है।
 
शीतला सप्तमी के दिन घर में चूल्हा नहीं जलता है। समूचे उत्तर भारत में चूल्हा न जलाने की परंपरा का बड़ी आस्था से पालन किया जाता है। मान्यता है कि यह इस दिन के बाद से बासी भोजन नहीं किया जाता है। यह ऋतु का अंतिम बासी भोजन होता है।
 
शीतला माता की उपासना अधिकांशत: वसंत और ग्रीष्म ऋतु में होती है। प्राचीन समय में चेचक के संक्रमण का यही मुख्य समय होता था। ऐसा भी माना जाता है कि मां शीतला मां भगवती दुर्गा का ही रूप हैं।
 
जब चैत्र माह से गर्मी का प्रारंभ होता है तो शरीर में अनेक प्रकार के पित्त विकार भी प्रारंभ हो जाते हैं। इन्हीं विकारों से बचाव के लिए मां शीतला का व्रत और उनकी कृपा प्राप्त की जाती है।
 
शीतला सप्तमी हमें स्मरण कराती है कि ऋतु संधि पर हमें अपनी दिनचर्या में परिवर्तन लाना है। इसलिए मां शीतला की पूजा का विधान पूर्णत: सामयिक है। चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ़ के कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी शीतला देवी की पूजा-अर्चना का दिन है। इन सभी अवसरों पर मौसम करवट लेता है और हमें अतिरिक्त सावधानी बरतना चाहिए। अपने खानपान और रहन-सहन में भी बदलाव लाना चाहिए।
 
मां शीतला की प्रसन्नाता से व्रती के कुल में दाहज्वर, पीतज्वर, विस्फोटक, दुर्गंधयुक्त फोड़े, नेत्रों के विभिन्ना रोगों, शीतला की फुंसियों के चिह्न तथा शीतलाजनिक रोगों से मुक्ति मिलती है। शीतला सप्तमी का व्रत और मां शीतला का पूजन लोग परिवार के स्वास्थ्य और प्रसन्नाता की आकांक्षा के साथ करते हैं। जीवन में सभी तरह के ताप से बचने के लिए मां शीतला का पूजन सर्वोत्तम उपाय है।
 
मां शीतला के हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाडूू) तथा नीम के पत्ते होते हैं। इन सभी वस्तुओं का प्रतीकात्मक महत्व है। चेचक के रोगी को व्यग्रता होने पर सूप से हवा दी जाती है। झाड़ू से चेचक के फोड़े फट जाते हैं। नीम के पत्ते फोड़ों को सड़ने नहीं देते। रोगी को ठंडा जल अच्छा लगता है तो कलश की उपयोगिता है। स्कन्दपुराण में मां शीतला की अर्चना के लिए शीतलाष्टक स्रोत है। ऐसा माना जाता है कि इस स्रोत की रचना भगवान शंकर ने लोकहित में की थी।
 
दांपत्य की खुशहाली के लिए पूजन
 
शीतला माता का पूजन वर और वधू दांपत्य जीवन में प्रवेश से पहले भी करते हैं। हल्दी लगने से पहले लड़का और लड़की जो मातापूजन करते हैं उसमें शीतला माता की ही पूजा की जाती है। परंपराओं में गणेश पूजन से भी पहले मातृका पूजन किया जाता है।
 
मां की पूजा करने के पीछे मान्यता यही है कि उससे दांपत्य में प्रवेश करने जा रहे वर और वधू के जीवन में शांति रहे, उनके जीवन में कोई उपद्रव न हो। जब विवाह से पूर्व वर या वधू मां की पूजा के लिए जाते हैं तो उस समय भी उनके ऊपर कपड़ा या चुनर से छांव कर दी जाती है और इसका अर्थ है कि ताप से जीवन की कोमलता नष्ट न हो। जीवन में क्रोध और आवेश नहीं हो और संपूर्ण जीवन शांति से बीते।
 
सफाई का महत्व सिखाता पर्व
 
मां शीतला स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं। उन्होंने जितनी भी चीजें धारण की हैं वे सभी हमें जीवन में स्वच्छता रखने की प्रेरणा देने वाली हैं। जब भी ऋतु परिवर्तन होता है तो हमें अपने आसपास के वातावरण में स्वच्छता के प्रति अतिरिक्त सावधानी बरतना चाहिए ताकि मौसम के बदलावों से हम बुरी तरह प्रभावित न हों। यह प्रेरणा भी हमें शीतला सप्तमी से मिलती है।
 
मां शीतला के दो चमत्कारी मंदिर
 
गुरुग्राम या गुड़गांव का शीतला माता मंदिर देश में प्रसिद्ध है। चैत्र के पूरे महीने में यहां देशभर से श्रद्धालु दर्शनों को आते हैं। लोग दूर-दूर से यहां आकर मन्नात मांगते हैं। पुत्र जन्म की कामना से और नवजात शिशु को आशीष दिलाने के लिए दंपति यहां आते हैं।
 
ऐसे ही किवंदती है कि राजस्थान के पाली जिले में स्थिति शीतला माता मंदिर में स्थित आधा फीट गहरा और इतना ही चौड़ा घड़ा दर्शनों के लिए खोला जाता है। मान्यता है कि इसमें कितना भी पानी डाला जाए लेकिन यह कभी भरता नहीं।
 
शीतला सप्तमी और ज्येष्ठ माह की पूनम पर यहां महिलाएं जल चढ़ाती हैं। अंत में पुजारी प्रचलित मान्यता के तहत माता के चरणों से लगाकर दूध का भोग चढ़ाता है तो घड़ा भर जाता है। दूध का भोग लगाकर इसे बंद कर दिया जाता है।
 
इसके साथ ही अप्रत्याशित जगहों पर आपके खर्च भी होंगे। आपमें से कुछ लोग खुशनुमा समय के लिए या फिर घर की जरूरत की चीजों के लिए व्यय करेंगे। कार्यक्षेत्र में नई चुनौतियां आएंगी और आप इसका सफलतापूर्वक सामना करेंगे। पुराने दोस्तों से मुलाकात का योग है। प्रेम जीवन रोमांटिक और मजेदार होगा। सप्ताहांत में आप पार्टी और डिनर का मजा लेंगे।

 

Back to top button