फसलों की सरकारी खरीद से किसानों को होगा फायदा, इन राज्यों पर दिया ज्यादा जोर

केंद्र सरकार ने इस साल पहली बार बहुत बड़े पैमाने पर किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर चने की फसल खरीदी है। लेकिन 27 लाख टन की खरीद में से 19 लाख टन चना मध्य प्रदेश और 4.5 लाख टन राजस्थान के किसानों से खरीदा गया है। यह भी एक संयोग है कि इन दोनों राज्यों में विधानसभा चुनाव साल के अंत में होने हैं।फसलों की सरकारी खरीद से किसानों को होगा फायदा, इन राज्यों पर दिया ज्यादा जोर

देश भर में इस साल कुल 111.6 लाख टन चने का उत्पादन हुआ। यानी केंद्र सरकार ने 4000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से लगभग एक चौथाई फसल की खरीद कर ली। चना ही नहीं दूसरी फसलों की भी सरकार ने इस साल जम कर खरीदारी की। केंद्रीय खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 2017-18 के दौरान सरकार ने किसानों को उचित दाम दिलाने के लिए 29 हज़ार करोड़ रुपये से ज्यादा के 63.4 लाख टन दलहन और तिलहन खरीदे।

सरकारी सूत्रों के अनुसार पिछले तीन साल में दौरान सरकारी एजेंसियों द्वारा की गई खरीदारी उससे पहले के पंद्रह सालों के दौरान की गई कुल सरकारी खरीद का पांच गुना है। यह खरीदारी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई), राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन एजेंसी (नाफेड) और छोटे किसानों के लिए कृषि मंत्रालय द्वारा बनाए समूह (एसएफएसी) द्वारा की गई। एसएफएसी का लक्ष्य 500 टन उड़द खरीदने का था लेकिन उसने खरीदी 3123 टन। इसी तरह 10000 टन चना खरीदी का लक्ष्य था लेकिन खरीदा 25219 टन। उसे मसूर तो खरीदनी ही नहीं थी लेकिन फिर भी 1241 टन मसूर खरीद ली।

एमएसपी से कम भी

लेकिन यह तस्वीर का सिर्फ एक पहलू है। जो 76 फीसदी चने की फसल किसानों ने बाजार में बेची उन्हें उसका भाव 2800 से 3000 रुपये प्रति क्विंटल ही मिला। अरहर का एमएसपी 5450 था लेकिन किसान को खुले बाजार में 3500 प्रति क्विंटल से ज्यादा दाम नहीं मिला। मूंग का एमएसपी 5575 था, लेकिन किसान को मंडियों में दाम महज 3800 मिला। ऐसे ही 4250 के एमएसपी वाली मसूर का दाम 3300 प्रति क्विंटल मिला।

भाजपा के पूर्व केंद्रीय मंत्री शांता कुमार की अध्यक्षता में तीन साल पहले बनी एक समिति ने पाया था कि एमएसपी का लाभ महज छह फीसदी किसानों को मिल रहा था। लेकिन मोदी सरकार की जोरदार खरीदारी के बाद यह संख्या 18 फीसदी हो गई है। ऐसा किसानों की आय दोगुना करने के उपाय सुझाने के लिए बनी अशोक दिलवाई कमेटी ने पाया है। लेकिन किसान नेताओं का दावा है एमएसपी से आम किसानों का लाभ नहीं हो रहा है। 

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के अध्यक्ष वीएम सिंह का मानना है कि गांव-गांव में फैले व्यापारी किसानों से उनकी उपज औने-पौने दामों में खरीद कर उसे सरकारी एजेंसी को एमएसपी पर बेचकर भारी लाभ कमा रहे हैं। सरकार को ज्यादा से ज्यादा खरीद केंद्र लगाने होंगे, जिससे किसान बिचौलियों के चक्कर में पड़ने के बजाए अपनी उपज सीधे सरकारी एजेंसियों को बेचे।

एमएसपी बने रिजर्व प्राइस

कुछ अन्य किसान नेताओं का मानना है कि इसे रोकने के लिए सरकार को एमएसपी को रिजर्व प्राइस घोषित कर देना चाहिए। जैसे इस साल चीनी का 29 रुपये प्रति किलो घोषित किया है। यानी इस दाम से कम पर कोई फसल नहीं खरीदेगा वरना वह सजा का पात्र होगा। किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष पुष्पेंद्र सिंह कहते हैं कि इससे आढ़तियों में कुछ तो डर बैठेगा। 

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