प्रेरणा की कहानी: पैरालिंपिक के पदक विजेताओं की दर्द भरी कहानी

तमिलनाडु के मरियप्पन थांगावेलू और उत्तरप्रदेश के वरूण भाटी ने रियो पैरालिंपिक खेलों में स्वर्ण और कांस्य पदक जीतकर भारत का नाम रोशन किया। हाई जम्प टी-42 वर्ग में पदक जीतने वाले इन एथलीट्सर का सफर बहुत कष्टदायक रहा है। आइए हम आपको इससे रूबरू करवाते हैं।

प्रेरणा की कहानी: पैरालिंपिक के पदक विजेताओं की दर्द भरी कहानी20 वर्षीय मरियप्पन तमिलनाडु के सालेम से 50 किलोमीटर दूर स्थित गांव पेरियावदगम्पति के रहने वाले हैं। वे जब 5 वर्ष के थे और स्कूल जा रहे थे तब गलत ढंग से मुड़ी बस ने उन्हें कुचल दिया था। यह बस उनके दाएं पैर पर से गुजरी थी जिससे उनका पैर घुटने के नीचे पूरी तरह खराब हो गया था। इसके बावजूद मरियप्पन ने हिम्मत नहीं हारी और अपने सपने को साकार किया। उनकी पहली स्पर्धा ऐसी थी जिसमें उन्हें सामान्य वर्ग में उतरना पड़ा और उन्होंने वहां भी रजत पदक जीता। इसके बाद तो उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

मरियप्पन ने मार्च में ट्यूतनीशिया में आईपीसी ग्रांप्रि में 1.78 मीटर की छलांग लगाकर पैरालिंपिक के लिए ए-क्वालीफिकेशन हासिल किया। इसकी पात्रता 1.60 मीटर थी। उसी वक्त लग गया था कि यदि उन्होंने प्रदर्शन दोहराया तो वे रियो में पदक अवश्य जीतेंगे।

उत्तरप्रदेश के भाटी जब बहुत छोटे थे तभी पोलियो के कारण उनका एक पैर खराब हो गया था। इसके बावजूद भाटी ने हिम्मत नहीं हारी और आगे चलकर चैंपियन एथलीट बने। 21 वर्षीय भाटी ने 2014 के इंचियोन पैरा एशियाई खेलों में पांचवां स्थान हासिल किया। उन्होंने 2014 में ही चाइना ओपन में गोल्ड मेडल जीता था।

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