पुनर्जन्म के लिए INDIA में भी बनाए जाते थे ऐसे ‘ताबूत’, 12000 साल हैं पुराने

भोपाल. भारत में भी मिस्त्र की सभ्यता की तरह मृतकों की समाधि बनाकर उनमें अस्थियां और सामान रखा जाता था। 12 हजार साल पहले पत्थर के ताबूत में मृतक की हड्डियां और उनके इस्तेमाल का सामान रखा जाता था। केरल में मरयूर के पास अलम्पेटी इको टूरिज्म जोन में इसके प्रमाण देखे जा सकते हैं।
पुनर्जन्म के लिए INDIA में भी बनाए जाते थे ऐसे 'ताबूत', 12000 साल हैं पुराने
कितने खास है ये मेगालिथिक स्ट्रक्चर…
-केरल में मुन्नार और उदमलपेट के बीच मरयूर जगह है जहां मेगालिथिक स्ट्रक्चर पाए जाते हैं।
-मरयूर में मेन रोड पर ही अलम्पेटी इको टूरिज्म जोन है जहां ये स्ट्रक्चर पाए जाते हैं। यहां के स्थानीय लोग इन्हें ‘डोलमेंस’ कहते हैं।

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-आज से 12 हजार साल पहले दक्षिण भारत में प्रथा थी कि मृतकों के अवशेष को एक पत्थर का ताबूत बनाकर खुले पहाड़ पर रख दिया था जाता था। इसमें मृतकों के इस्तेमाल का सामान रखा जाता था। इसे मेगालिथिक कल्चर कहा जाता है। जिन बड़े-बड़े पत्थरों से ये बनता है उसे मेगालिथिक स्ट्रक्चर कहते हैं।
-इस पहाड़ी पर करीब 4 हजार के करीब मेगालिथिक स्ट्रक्चर हैं। इनमें से अधिकांश स्ट्रक्चर को खोद दिया गया है और यहां का सामान चुरा लिया गया है। अब यहां पर सिर्फ पत्थरों के अवशेष बचे हैं।

 
इन्हें माना जाता था स्वर्ग का द्वार
-इस पार्क के अंदर जाने की एंट्री फीस 225 रुपए है।
-चूंकि ये स्ट्रक्चर जंगल के अंदर हैं इसलिए बिना गाइड के अंदर जाने की अनुमति नहीं है।
-इस जगह के बारे में गाइड ने बताया कि ये डोलमेंस 10000 बी.सी. यानि 12 हजार साल पुराने हैं।
-जिन पत्थरों के ताबूत में इन्हें रखा जाता था, उनके बारे में माना जाता था कि ये स्वर्ग का द्वार हैं।
-डोलमेंस में मृतक की अस्थियां रखने से पहले उनका किसी दूसरी जगह अंतिम संस्कार होता था। बाद में इनकी अस्थियों को पत्थरों के डोलमेंस में रखा जाता था। इन डोलमेंस में मृतक के इस्तेमाल की चीजें, सोने और चांदी के गहने रखे जाते थे।
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