पांच करोड़ अतिरिक्त वोट के जुगाड़ में जुटे हैं अमित शाह ताकि मोदी सत्ता में लौट सके

दिल्ली ब्यूरो: बीजेपी के रणनीतिकार और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह इन दिनों कुछ ज्यादा ही परेशान है। उनकी परेशानी मोदी को फिर से सत्ता तक लौटाने की है। अमित शाह को लग रहा है कि अगर मोदी सत्ता में नहीं लौटे तो आगे की राजनीति कमजोर होगी। बीजेपी को बनवास भी संभव है। यही वजह है कि अमित शाह की सबसे बड़ी चिंता किसी भी सूरत में मोदी को सत्ता तक पहुंचाने की है। अमित शाह को लग रहा है कि बीजेपी को पूर्ण बहुमत के लिए 17 करोड़ वोट की जरुरत है। अगर यह संभव हो गया तो मोदी की राह आसान होगी और वे फिर से पीएम की कुर्सी हासिल कर सकेंगे। इसी 17 करोड़ वोट पाने की तैयारी में जुटे हैं अमित शाह।
बता दें कि अमित शाह कई मौकों पर कहते रहे हैं कि उनकी पार्टी में करीब 12 करोड़ रजिस्टर्ड वर्कर हैं। उनमें से कुछ करोड़ से तो वो जब चाहें तुरंत फोन पर संपर्क कर सकते हैं। यानी 12 करोड़ कार्यकर्ता+5 करोड़ आम मतदाता- 17 करोड़। अमित शाह का टारगेट पुरा हो सकता है। यानी बीजेपी इस चुनाव के लिए जितना भी मेहनत कर रही है, वह सब सिर्फ 5 करोड़ वोटों के लिए करना पड़ रहा है। जबकि, खुद प्रधानमंत्री और शाह दावा करते हैं कि उनकी सरकार की योजनाओं ने कम से कम 22 करोड़ लोगों का जीवन बदल दिया है। ऊपर से आयुष्मान भारत योजना से करीब 50 करोड़ लोगों के जीवन से संकट दूर होने वाला है।
ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि सिर्फ 17 करोड़ वोट पाना बीजेपी के लिए कितना आसान रहने वाला है? केवल 17 करोड़ वोट पाकर बीजेपी की सरकार बनाने के दावे के पीछे अमित शाह का आधार यही है। क्योंकि, आजादी के सात दशक बाद भी कोई नहीं कह सकता कि भारत में सौ फीसदी मतदाता वोट कब डालेंगे। सच्चाई ये भी है कि पिछले कुछ वर्षों में ज्यादा से ज्यादा मतदान की अपील का असर भी पड़ा है। लेकिन, यह अभी भी ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। यही कारण है कि बीजेपी समझ चुकी है कि अगर 17 करोड़ वोट का भी इंतजाम पार्टी ने कर लिया, तो सत्ता उसके हाथ में होगी। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की यह सबसे बड़ी विडंबना भी है और सच्चाई भी, जिससे इनकार नहीं किया जा सकता।
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का कहना है कि दोबारा सरकार बनाने के लिए उनकी पार्टी को महज 17 करोड़ वोटों की दरकार है। जबकि, भारत में 2019 के लोकसभा चुनाव में 90 करोड़ से ज्यादा मतदाता होंगे। ऐसे में कुल मतदाताओं के पांचवें हिस्से से भी कम वोट के आधार पर सरकार बनाने का दावा सुनने में बहुत ही अजीब लग रहा है। लेकिन, अमित शाह ने जो कुछ भी कहा है, उसके पीछे एक पुख्ता पैटर्न भी है और हमारे लोकतंत्र की एक कड़वी सच्चाई भी। दरअसल इसे समझने के लिए भारत में अबतक हो चुके 16 लोकसभा चुनावों का विश्लेषण करना जरूरी है।
अगर पहले लोकसभा चुनाव से लेकर पिछले लोकसभा चुनाव तक का आंकड़ा देंखें, 2014 में सबसे ज्यादा यानी 66.4 फीसदी लोगों ने वोट डाले थे। यानी जब सबसे ज्यादा लोग अपनी सरकार चुनने के लिए बूथ पर पहुंचे तो भी उनका हिस्सा कुल मतादाताओं के 2/3 से ज्यादा नहीं पहुंचा। इसमें बीजेपी ने डाले गए वोट में से 38.4 फीसदी मत पाकर 30 साल बाद पूर्ण बहुमत की सरकार बना ली थी। लेकिन, आप जानकर हैरान होंगे कि उस चुनाव में बीजेपी को जितने वोट मिले थे, वह देश के कुल मतदाताओं का केवल 25.5 फीसदी हिस्सा था। यह कोई एकबार का किस्सा नहीं है। आजादी के इतिहास में सबसे ज्यादा सीटें कांग्रेस ने 1984 के इंदिरा लहर में जीती थी।
तब भी राजीव गांधी ने कुल मतदाताओं का सिर्फ 31.2 प्रतिशत वोट पाकर सत्ता हासिल की थी। इस लिहाज से सबसे बुरा हाल 1996 के चुनाव में रहा था। उस समय तो यूनाइट फ्रंट महज 17.4 फीसदी वोट पाकर ही सत्ता पर काबिज हो गया था। तब बारी-बारी से एचडी देवगौड़ा और आई के गुजरात को सत्ता सुख भोगने का मौका मिला था। दरअसल, भारत में यह सिलसिला पहले चुनाव से ही शुरू हो गया था। 1952 में जवाहर लाल नेहरू कुल वोटरों का मात्र 20.2% वोट पाकर ही पहलीबार भारत की चुनी हुई सरकार में प्रधानमंत्री बने थे।

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