ये है भगवान परशुराम का फरसा, जब लोहार ने काटा तो हो गई मौत

ये है भगवान परशुराम का फरसा, जब लोहार ने काटा तो हो गई मौत….. परशुराम महान तपस्वी और योद्धा हैं। वे सप्त चिरंजीवियों में से एक हैं। उनका जिक्र रामायण में भी आता है और महाभारत में भी। वे शस्त्र के साथ ही शास्त्र के भी विशेषज्ञ हैं। परशुराम धनुर्विद्या के ज्ञाता हैं लेकिन फरसा उनका प्रिय शस्त्र है।

झारखंड में रांची से करीब 150 किमी की दूरी पर घने जंगलों में स्थित टांगीनाथ धाम के बारे में कहा जाता है कि यहां भगवान परशुराम का फरसा गड़ा हुआ है। यह इलाका नक्सल प्रभावित है। यहां स्थानीय भाषा में फरसा को टांगी कहा जाता है, इसलिए इस जगह का नाम टांगीनाथ धाम हो गया।

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परशुराम का फरसा और चरण चिह्न

इस जगह भगवान परशुराम का फरसा जमीन में गड़ा हुआ है। यहां परशुराम के चरण चिह्न भी बताए जाते हैं। चूंकि परशुराम महान तपस्वी हैं। उन्होंने तप से अद्भुत सिद्धि और शक्तियां प्राप्त की हैं। इस स्थान से एक अद्भुत कथा भी जुड़ी है।

जब सीताजी के स्वयंवर में भगवान श्रीराम ने शिव का धनुष तोड़ दिया था तब परशुराम अत्यंत क्रोधित हुए और स्वयंवर स्थल पर आ गए। उस दौरान श्रीराम शांत रहे लेकिन लक्ष्मण से परशुराम का विवाद होने लगा। बहस के बीच जब परशुराम को यह जानकारी होती है कि श्रीराम स्वयं परमेश्वर के अवतार हैं तो उन्हें इस बात का दुख होता है कि उनके लिए कटु वचन इस्तेमाल किए।

स्वयंवर स्थल से परशुराम जंगलों में चले जाते हैं। यहां वे अपना फरसा भूमि में गाड़ देते हैं और भगवान शिव की स्थापना करते हैं। यहां वे तपस्या करने लगते हैं। उसी जगह पर आज टांगीनाथ धाम स्थित है। लोगों का विश्वास है कि परशुरामजी का वही फरसा आज भी यहां गड़ा हुआ है।

नहीं लगता फरसे पर जंग

यह फरसा यहां हजारों साल से बिना किसी देखभाल के गड़ा हुआ है लेकिन आज तक इस पर जंग नहीं लगा है। लोगों का कहना है कि फरसा भूमि में कितना गड़ा हुआ है, यह कोई नहीं जानता। इसके बारे में एक कहानी भी प्रचलित है। कहा जाता है कि एक बार इस इलाके में लोहार आकर रहने लगे थे।

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काम के दौरान उन्हें लोहे की जरूरत हुई तो उन्होंने परशुराम का यह फरसा काटने की कोशिश की। काफी कोशिश के बाद भी वे फरसा नहीं काट पाए, लेकिन इसका नतीजा बहुत बुरा हुआ। उस परिवार के सदस्यों की मौत होने लगी। इसके बाद उन्होंने वह इलाका छोड़ दिया। आज भी टांगीनाथ धाम के आसपास लोहार नहीं रहते। उस घटना का खौफ उनके मन में आज भी ताजा है।

टांगीनाथ धाम में प्राचीन मंदिर व शिवलिंग के अवशेष हैं। यहां की स्थापत्य कला केदारनाथ धाम जैसे बहुत पुराने मंदिरों से मेल खाती है। बताया जाता है कि एक बार यहां खुदाई भी की गई और उसमें कई कीमती चीजें पाई गई थीं।

नक्सल प्रभावित इलाके में स्थित होने के बावजूद टांगीनाथ धाम में श्रद्धालु आते हैं। परशुराम द्वारा भगवान शिव की तपस्या से पवित्र यह स्थल विशाल फरसे के कारण किसी आश्चर्य से कम नहीं है।

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