नहीं रहे “पीपली लाइव” के सीएम जुगल किशोर

jugal-amitabh-300x199लखनऊ, 26 अक्टूबर. रंगमंच में इस देश के जाने-माने हस्ताक्षर जुगल किशोर हमारे बीच नहीं रहे. भारतेन्दु नाट्य अकादमी के पूर्व निदेशक और सुपरिचित सहज रंगकर्मी जुगल किशोर का आज दिल का दौरा पड़ने से असामयिक निधन हो गया. जुगल किशोर ने लखनऊ यूनीवर्सिटी से पढ़ाई ख़त्म करने के बाद अभिनय की दुनिया में पाँव पसारे थे. भारतेन्दु नाट्य अकादमी से अभिनय में डिप्लोमा लेने के बाद भी उन्होंने अकादमी को छोड़ा नहीं. 25 साल तक वहां पढ़ाने के बाद वह उसके निदेशक भी बने. जुगल किशोर सन 2008 से 2012 तक भारतेन्दु नाट्य अकादमी के निदेशक रहे. 27 फरवरी 1954 को पैदा हुए जुगल किशोर अपनी आख़री सांस तक रंगमंच पर सक्रिय रहे.

जुगल किशोर ने अभिनय की दुनिया को बहुत मजबूती से पकड़ रखा था. जिन नाटकों में वह अभिनय नहीं करते थे उन्हें देखने ज़रूर जाते थे. नए कलाकारों का उत्साह बढ़ाने में भी वह सबसे आगे रहते थे. भारतेन्दु नाट्य अकादमी ने जुगल किशोर को निदेशक का ज़िम्मा उस दौर में सौंपा था जब राजनीति यहाँ चरम पर पहुँच चुकी थी. बाहर से लाये जा रहे निदेशकों और अध्यक्षों से यहाँ की समस्या हल नहीं हो पा रही थी. अकादमी की समस्याओं को हल करने के लिए यूपी सरकार ने जुगल किशोर पर भरोसा किया तो वह कसौटी पर पूरी तरह से खरे उतरे.

उन्होंने 30 से ज्यादा नाटकों का निर्देशन किया. उनके नाटकों के चयन में उनके भीतर छुपे प्रयोगशील रंगकर्मी का पता चलता था. समकालीन रंगमंच के राजनैतिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पक्षों का पता भी जुगल किशोर के निर्देशन में साफ़-साफ़ झलकता था.

जुगल किशोर ऐसे नाटकों को निर्देशन के लिए चुनते थे जिसमें समाज का पाखण्ड और कुरीतियाँ झलकती हों. यही वजह है कि जुगल को मुंशी प्रेमचंद बहुत पसंद थे. जुगल किशोर ने मुद्राराक्षस के नाटक आला अफसर, राकेश के नाटक माखन चोर और अरबी कहानी अलीबाबा पर नाटक कर समाज की विकृतियों के खिलाफ आवाज़ उठाई.

लखनऊ जुगल किशोर का पहला और आख़री प्यार था. यही वजह रही कि कई फिल्मों में अभिनय करने के बावजूद उन्होंने कभी मुम्बई का रुख नहीं किया. उन्होंने दबंग-2, पीपली लाइव, बाबर, काफी हाउस, मैं मेरी पत्नी और वो, कफन, हमका ऐसन वैसन ना समझा जैसी हिन्दी और भोजपुरी फिल्मों में काम किया. और बह्म्र का स्वांग, पर्दा, वसीयत, ’हल होना एक कठिन समस्या का’ आदि टेलिफिल्मों में भी अभिनय किया. राजपाल यादव और नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी जैसे शिष्य जुगल किशोर ने तैयार किये. जो हमेशा उनका नाम रौशन करेंगे.

जी वी अइयर की संस्कृत फिल्म ’श्रीमद्भगवतगीता’ के हिन्दी संस्करण को उन्होंने बनाया जिसे 1993 का गोल्डन लोटस पुरस्कार मिला. उन्होंने मूक बधिर पर, लखनऊ के रंगमंच पर, मृत्यु दंड पर, युवाओं की समस्याओं पर,लखनऊ के हस्तशिल्प पर तमाम फीचर लिखे. अखबारों में कालम लिखे. जो अब एक दस्तावेज बन चुके हैं. उन्होंने भांडों पर और बुंदेलखंड के मार्शल आर्ट ’पाई डंडा’ पर शोध पत्र लिखे. उन्होंने देश के विभिन्न शहरों में अनेक थियेटर वर्कशाप का संचालन किया. नौटंकी के परंपरागत कलाकारों और बीएनए के छात्रों के साथ उन्होंने ’सत्यवक्ता हरिशन्द्र’ नाटक तैयार किया.

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