नवरात्र के बाद आज बंगाली समाज की महिलाओं ने सिंदूर खेला की रस्म के साथ दी मां दुर्गा को विदाई
Durga Puja 2019: पूरा बिहार भक्ति के सागर में डूबा हुआ है। नौ दिनों के नवरात्र के बाद मंगलवार को विजया दशमी का पर्व मनाया जा रहा है। दशहरा के उल्लास के बीच मां दुर्गा की प्रतिमाओं के विसर्जन की तैयारी भी शुरू हो गई है। पटना में कई दुर्गा मंदिरों व पंडालों में बंगाली समाज की महिलाओं ने ‘सिंदूर खेला’ रस्म के साथ की मां दुर्गा की आराधना की। मां दुर्गा की भक्ति में डूबीं ये महिलाएं नृत्य भी कीं। बता दें कि सिंदूर खेला को सिंदूर होली भी कहते हैं। बता दें कि इस बार मां दुर्गा की प्रतिमाओं का विर्सजन गंगा या अन्य नदियों में नहीं होगा। प्रतिमाओं के लिए पटना में दो-तीन जगहों पर बड़े-बड़े गड्ढे बनाए गए हैं।
बंगाली परंपरा को समाज की महिलाओं ने निभाया
दरअसल पूरे पटना में लगभग 1200 पंडालों में मां दुर्गा की प्रतिमाएं विराजी गई हैं। काफी संख्या में बंगाली समाज की ओर से भी मां दुर्गा की प्रतिमाएं प्रतिष्ठापित की गई हैं। बंगाली समाज में विजया दशमी के दिन सिंदूर खेला का रस्म अदायगी की जाती है। इसे लेकर मंगलवार को पटना के बंगाली अखाड़ा, गर्दनीबाग दुर्गा मंदिर, छज्जू बाग स्थित पंडाल, बंगाली टोला आदि में बंगाली समाज की महिलाओं ने बंगाली परंपरा को निभाया।
पति की लंबी उम्र की कामना की
बंगाली समाज की महिलाओं ने एक-दूजे को सिंदूर लगाया और पति की लंबी उम्र की कामना की। महिलाओं ने बताया कि बंगाली समाज में चार दिनों के लिए मां के पट खुलते हैं। षष्ठी पूजा को मां के छठे रूप मां कात्यायनी की पूजा अर्चना के साथ बंगाली समाज की प्रतिष्ठापित मां दुर्गा के पट खुल जाते हैं। दशमी को मां दुर्गा को एक बेटी के रूप में मायके से ससुराल के लिए विदा की जाती है।
नम आंखों से दी विदाई
मां दुर्गा की विदाई की इस बेला में महिलाओं की आंखें नम थीं। बंगाली अखाड़ा की बात हो या बंगाली टोला की, सिंदूर खेला में महिलाओं ने जमकर नृत्य किया और एक-दूसरे को सिंदूर लगाया। इतना ही नहीं, मां के इस सिंदूर को खुद भी महिलाओं ने अपनी मांगों में लगाया। महिलाओं ने बताया कि सिंदूर खेला के साथ ही मां को मीठा खिलाकर विदा करते हैं और सिंदूर लगाकर परिवार के साथ ही पति के दीर्घायु होने की कामना करते हैं।
400 साल से चली आ रही है परंपरा
बता दें कि बंगाली समाज में सिंदूर खेला या सिंदूर होली की परंपरा लगभग 400 वर्षों से चली आ रही है। इस मौके पर महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं और माता रानी से सुख समृद्धि के साथ पति के लंबी आयु की कामना करती है। फिर मां को मुंह मीठा कराकर विदाई दी जाती है। महिलाएं पान पत्ता से मां का गाल सहलाती हैं और अगले साल फिर आने के लिए निमंत्रण देती हैं। कहा जाता है कि इस सिंदूर खेला की रस्म के दौरान कुंवारी लड़कियां भी पहुंचती हैं। कुंवारी लड़कियों को यदि सिंदूर लग जाता है तो उसकी शादी में कोई परेशानी नहीं होती है।