आबादी की बढ़ती दर ने उत्तराखंड को किया पिछली पांत में खड़ा
देहरादून: देश के 101 पिछड़े जिलों में शामिल उत्तराखंड के ऊधमसिंहनगर (छठी रैंक) व हरिद्वार (24वीं रैंक) जनपद में अनियोजित विकास इसके पीछे की बड़ी वजह रहा। इन दोनों जिलों में आबादी की दर सबसे अधिक रही, मगर इस बढ़ती आबादी के लिए बुनियादी संसाधन नहीं जुटाए जा सके। न ही जन जागरूकता जैसे कार्यक्रमों का इन जिलों में प्रभावी क्रियान्वयन ही किया जा सका। खासकर सुरक्षित प्रसव का अभाव व मानक से कम उम्र में विवाह के मामले अब भी यहां पाए गए हैं। परिवार नियोजन की स्थिति भी अधिक संतोषजनक नहीं पाई गई।
नीति आयोग की रिपोर्ट भले ही अब आई है, मगर साक्षरता दर, शिक्षा, लिंगानुपात व स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में ये दोनों जिले पहले से ही पिछली कतार में खड़े हैं। सबसे पहले बात करते हैं, स्वास्थ्य सेवाओं की। हाल ही में नीति आयोग की एक अन्य रिपोर्ट की बात करें तो देश के सर्वाधिक कुपोषित जिलों में भी ऊधमसिंहनगर व हरिद्वार का नाम शामिल हैं।
दूसरी तरफ उत्तराखंड सरकार की ओर से टीबी को लेकर चलाए गए सघन सर्वेक्षण में पता चला था कि हरिद्वार में टीबी के सर्वाधिक साढ़े चार हजार से भी मामले दर्ज हैं। जबकि ऊधमसिंहनगर में भी यह संख्या काफी अधिक 2578 पाई गई थी। वहीं, बाल लिंगानुपात हो या शिशु लिंगानुपात इन दोनों जिलों की तस्वीर बेहतर नहीं है। दूसरी तरफ आबादी की बात करें तो वर्ष 2001 से 2011 के बीच इन दोनों जिलों में जनसंख्या का दबाव सबसे अधिक दर से बढ़ा। जबकि साक्षरता दर में यही दोनों जिले सबसे निचले पायदान पर खड़े हैं। यदि पहले से पिछले जिलों में हर तरह के संसाधन जुटाने की दिशा में समुचित प्रयास किए जाते तो शायद आज पिछड़े जिलों पर आधारित नीति आयोग की रिपोर्ट में हरिद्वार व ऊधमसिंहनगर का नाम शामिल नहीं होता।
यहां रहा कमजोर प्रदर्शन
हरिद्वार
परिवार नियोजन, 17.90 फीसद
अस्पताल में प्रसव, 63 फीसद
घर में प्रसव, 43.50 फीसद
मानक से कम उम्र में विवाह (बालिका) 1.90 फीसद
मानक से कम उम्र में विवाह (बालक) 7.80 फीसद
ऊधमसिंहनगर
परिवार नियोजन, 26.20 फीसद
अस्पताल में प्रसव, 55.30 फीसद
घर में प्रसव, 33.60 फीसद
मानक से कम उम्र में विवाह (बालिका) 1.60 फीसद
मानक से कम उम्र में विवाह (बालक) 7.1 फीसद