देश में तैनात हुए चिनूक हेलिकॉप्टर, चीन से लगे बॉर्डर पर बढ़ेगी ताकत

चिनूक ने पहली बार 1962 में उड़ान भरी थी. ये वियतनाम से अफगानिस्तान और इराक तक के युद्ध क्षेत्र से जुड़े कई अभियानों में मददगार साबित हुए हैं.

भारतीय एयरफोर्स (आईएएफ) ने सोमवार को चार युद्धक चिनूक हेवी लिफ्ट हेलीकॉप्टरों को अपने बेड़े में शामिल किया. इससे चीन और पाकिस्तान से लगे बॉर्डर पर भारतीय फौज की रणनीतिक एयरलिफ्ट क्षमता को काफी बल मिलेगा.
भारत ने 2015 में अमेरिका की कंपनी बोइंग से 8000 करोड़ के सौदे में 15 CH-47F (I) चिनूक हेलिकॉप्टर ख़रीदे थे. ये चार उसी सौदे के तहत भारत आए हैं. इन्हें आईएएफ की चंडीगढ़ स्थित 126 हेलीकॉप्टर यूनिट में शामिल किया गया है. इनका उपनाम ‘फिदरवेट’ (बेहद हल्की चीज़) रखा गया है.
आईएएफ के एक उच्च अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, ‘चिनूक से बलों की क्षमता को काफी ताकत मिलेगी. ये सिर्फ बलों को ही एक जगह से दूसरी जगह ले जाने का काम नहीं करते बल्कि तोपखाने की बंदूकों और हल्की बख़्तरबंद गाड़ियों को भी ऊंची जगहों पर ले जाने में सक्षम है. इससे उत्तरी सीमा से जुड़ी क्षमता में काफी बदलाव होगा.”
10 टन तक भार उठाने की क्षमता की वजह से चिनूक उन स्थितियों से भी पार पाने में मददगार साबित होगा जो रणनीतिक सड़कें और बॉर्डर से जुड़ी अन्य परियोजनाओं में हो रही देरी की वजह से उत्पन्न हो रही हैं, ख़ास तौर पर पूर्वोत्तर में. वहां तक पहुंचना हमारी मुख्य चुनौती थी जिसकी वजह से काफी ज़्यादा भार उठा सकने वाले चॉपर की चाह थी जो कि संकीर्ण घाटियों तक भारी उपकरण पहुंचा सकें.

#Chinook CH-47 (I) will be commissioned into @IAF_MCC today in Chandigarh. Watch this video and read @ThePrintIndia to know why the choppers along with four Mi-26, that will undergo extensive overhaul in Russia, will add to the strategic air lift prowess of the Indian military. pic.twitter.com/e1B3RBth6I
— Snehesh Alex Philip (@sneheshphilip) March 25, 2019

भारत के पास फिलहाल चार Mi-26 चॉपर हैं. इन्हें 1980 के अंत में रूस से ख़रीदा गया था. लेकिन उनकी देख-रेख ठीक से नहीं हो पाई. चार में से अब एक ही काम लायक है. इन चॉपरों को रूस भेजा जा रहा है ताकि इनकी ठीक से मरम्मत की जा सके और उसके बाद ये आईएएफ को सेवा देना जारी रखेंगे.
चिनूक क्या है?
चिनूक ने पहली बार 1962 में उड़ान भरी थी. ये दो रोटर वाले चौपर होते हैं. ये वियतनाम से अफगानिस्तान और इराक तक के युद्ध क्षेत्र से जुड़े कई अभियानों में मददगार साबित हुए हैं. इसके कई अपग्रेड किए गए हैं जिसके बाद चिनूक को काफी ज़्यादा भार उठाने वाले हेलीकॉप्टरों के मामले में उम्दा माना जाता है.
आईएएफ की निगाहें चिनूक पर थीं, बावजूद इसके कि Mi-26 भी अपना पूरा ज़ोर लगा रहा था. इस डील पर नियंत्रक और लेखा परीक्षक (कैग) ने बेहद तीख़ी टिप्पणी की थी. दरअसल, Mi-26 की क्षमता चिनूक से दोगुनी है. ये 20 टन तक पेलोड ले जा सकता है और युद्ध के लिए तैयार 82 जवानों को ढो सकता है, वहीं चिनूक की क्षमता 11 टन और 45 जवानों की है. Mi-26 20 टन तक भार भी उठा सकता है.
चिनूक क्या भूमिका अदा करेगा?
इसकी पहली यूनिट को चंडीगढ़ के पास तैयार किया जा रहा है. ये पश्चिमी और उत्तरी मोर्चों से जुड़े अभियानों का ज़िम्मा संभालेगी. दूसरे यूनिट असम के डिनजन में बनाई जाएगी जो पूर्वी मोर्चे को संभालेगी. आईएएफ के उसी उच्च अधिकारी ने आगे कहा, ‘चिनूक का डिज़ाइन ऐसा है कि पहाड़ों से जुड़े अभियानों की पैंतरेबाजी में ये ख़ूब काम आएगा क्योंकि जब सकरी घाटियों से गुज़रना होगा तो ये बेहद कारगर साबित होगा.”
अमेरिका से भारत जो हल्के भार वाले M777 तोपें ख़रीद रहा है  चिनूक उनको उठाने में सक्षम है. भारतीय फौज ऐसे 145 तोपों को शामिल करने वाली है और इनमें से ज़्यादातर चीन से जुड़े बॉर्डर पर तैनात किए जाएंगे. तोपों को उठान की क्षमता की वजह से ज़रूरत पड़ने पर उत्तर पूर्व में तुरंत तैनती के मामले में चिनूक मददगार साबित होंगे. इनके बग़ैर तोपों और वाहनों को वहां तक पहुंचाना काफी मशक्कत से भरा होता क्योंकि इन इलाकों में सड़कों के रास्ते पहुंचना असंभव है.

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