देश का निजीकरण : एक दिन हाथ में कुछ नहीं होगा केवल आंसुओं के सिवाय….

-पवन सिंह
लोकतंत्र तेजी से निजीतंत्र की ओर बढ़ रहा है। जिस तेजी से सरकार सरकारी उपक्रमों को निजी हाथों में सौंप रही है, आने वाले कुछ वर्षों में इसका एक रक्तरंजित वह भयावह स्वरूप देखने के लिए लोगों को तैयार रहना चाहिए। देश में चुनाव इसलिए होते हैं ताकि लोकतांत्रिक तरीके से सरकारें चुनी जाएं और ये सरकारें संविधान के दायरे में रहकर एक लोकतांत्रिक तरीके से देश को चलाएं। उनकी योजनाएं जनता के हित में हों, कर्मचारियों वह श्रमिकों के हित में हों लेकिन जिस तरह से मोदी सरकार को देश के चंद पूंजीपतियों ने ठेके पर ले रखा है, वह इस देश की जनता को बहुत भारी पड़ेगा। मौजूदा सरकार देश की हर सरकारी कंपनी का निजीकरण करने को उतारू है। रेलवे, दूरसंचार जैसे महत्वपूर्ण विभागों का एक तरह से निजीकरण किया ही जा चुका है। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि जो सरकारी क्षेत्र की जो कंपनियां अरबों-खरबों का लाभांश देती आ रही हैं वह भी निजी हाथों में तेजी से खिसकाई जा रही हैं। आश्चर्यजनक यह है कि 2014 से पहले जो श्रमिक संगठन, कर्मचारी संगठन वह सामाजिक संगठन… सरकारों के खिलाफ उठ खड़े होते थे वो मौन साधना में जा चुके हैं। मीडिया पर लिखना बेईमानी है क्योंकि यह विश्व का इकलौता मीडिया है जो अपनी और अपने दोनों न की तबाही पर ही तालियां बजा रहा है।
केंद्रीय कैबिनेट ने सरकारी कंपनियों की अब तक के सबसे बड़े विनिवेश को मंजूरी दी है, इसके पीछे मंदी से निपटना बताया जा रहा है, जबकि इसके पीछे का खेल यह है कि देश के चुनिंदा दो-तीन उद्योगपति जैसा चाहे रहे हैं और जिस तरह से चाह रहे हैं, वो सरकार को घुमा रहे हैं। सरकार ने पांच ब्लू चिप कंपनियों भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड, शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया और ऑनलैंड कार्गो मूवर कॉनकोर अपनी हिस्सेदारी कम कर निजीकरण की ओर कदम बड़ा बढ़ाया है। इसके साथ ही देश के एअरपोर्ट से लेकर बिजली-पानी-चिकित्सा, शिक्षा, जो कि आप हम सब के मूलभूत अधिकार हैं, वो भी निजी हाथों में गिरवी होंगे। बीपीसीएल में इस समय सरकार की 51.29 फीसदी हिस्सेदारी को बेचा ही नहीं जाएगा बल्कि इस कंपनी का प्रबंधकीय नियंत्रण भी खरीदने वाली कंपनी के पास रहेगा। कैबिनेट ने शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया में भी सरकार की 6&.75 फीसदी हिस्सेदारी को बेचने का निर्णय है चुका है। रेलवे की कंपनी कॉनकोर जिसमें सरकार की हिस्सेदारी 54.8 है, वह भी निपट रही है। रेलवे का मोदी सरकार की प्लानिंग अब भारतीय रेलवे के आईआरसीटीसी का निजीकरण करने की है। जबकि आईआरसीटीसी करोड़ों का लाभांश देती आई है। इसके लिए सरकार ऑफर ऑफ सेल्स यानी ओएफएस का सहारा से सकती है।
सीएनबीसी आवाज की रिपोर्ट के अनुसार निजीकरण के विभाग ने मर्चेंट बैंकर्स और सेलिंग बैंकर्स की नियुक्ति के लिए बोलियां भी मंगाई हैं, ताकि एक डील हो सके। रिपोर्ट के अनुसार 3 सितंबर को बोली लगाने से पहले की एक मीटिंग हो सकती है और 11 सितंबर से बोली लगाने की प्रक्रिया शुरू हो सकती है। सरकार ने 151 ट्रेनों के जरिए 109 रूट्स पर निजी कंपनियों को यात्री ट्रेनें चलाने की इजाजत दी है। ये ट्रेनें 12 क्लस्टर में चलेंगी, जिनमें बेंगलुरु, चंडीगढ़, जयपुर, दिल्ली, मुंबई, पटना, प्रयागराज, सिकंदराबाद, हावड़ा और चेन्नई भी शामिल हैं और यह भी साफ कर दूं कि इनके किराए का नियंत्रण सरकार नहीं निजी कंपनी करेगी। सरकार करीब दर्जन भर से अधिक पब्लिक सेक्टर यूनिट का निजीकरण करने की तैयारी में है, जिनमें कम से कम 4 बड़े सरकारी बैंक भी शामिल हैं। इसके अलावा टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन और नॉर्थ-ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन लि. की पूरी हिस्सेदारी को भी बेचना तय हो गया है। उपरोक्त पांचों कंपनियों का प्रबंधकीय नियंत्रण, निवेश करने वाली कंपनी का होगा। यहां यह जरूर बता दूं कि चुनिंदा कंपनियों में सरकारी हिस्सेदारी 51 फीसदी से कम हो जाएगी इसके बाद मतलब साफ है कि इन कंपनियों पर सरकार का नियंत्रण नहीं रहेगा। सरकार इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन में अपनी हिस्सेदारी 51 फीसदी से कम कर रही है। इंडियन ऑयल में सरकार की मौजूदा हिस्सेदारी 51.5 फीसदी है। इसके अलावा 25.9 फीसदी हिस्सेदारी भारतीय जीवन बीमा निगम, ओएनजीसी और ऑयल इंडिया के पास है। सरकार ने 26.4 फीसदी हिस्सेदारी 88000 करोड़ रुपये में बेचने का फैसला किया है।

ईस्ट इंडिया कंपनी का इतिहास एक बार जरूर पढ़िएगा और फिर रूस कैसे पूंजीपतियों की जागीर बना था, उसे भी पढिएगा। देश की समूची व्यवस्था निजी कंपनियों के हाथों में आएगी। शिक्षा व चिकित्सा जैसे मौलिक अधिकारों से वंचित जनता के हाथ में कटोरा, मंदिर, घंटा, संस्कृति, दिया, मोमबत्ती वह पकौड़ा ही रह जाएगा। युवा फांसी का फंदा चूमेगा या अपराध करेगा…जो रक्तरंजित इतिहास रूस वह जर्मनी में दोहराया गया था, वह फिर से दोहराया जाएगा। निजीकरण से आज तक किसी देश की अर्थव्यवस्था मजबूत नहीं हुई बल्कि पूंजीपतियों का दमन-उत्पीड़न ही आरंभ हुआ है। पूंजीपतियों का देश व समाज से कोई लेना-देना नहीं होता है। सरकारी संसाधनों की लूट होगी और श्रमिकों का शोषण होगा व उन पर अत्याचार होगा। पूंजीपतियों के इशारों पर कार्य कर रही मोदी सरकार ने श्रम कानून में संशोधन कर श्रमिकों को पहले ही कंपनियों का बंधुआ बना दिया है। नौकरीपेशा खून के आंसू रोएगा और यही होगा…यह दौर आप भी देखेंगे और हम भी…. अपनी नंगी आंखों से अपनी पीढ़ियों की तबाही देखेंगे।…

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