#dushera: दशहरे पर दहन करें समाज के इन असली रावणों को

दशहरे से अमूमन हर व्यक्ति असत्य पर सत्य की जीत या राम द्वारा रावण वध का अभिप्राय लगता है और यह सत्य भी है. किन्तु यह बात पूरी तरह या यूँ कहें कि सही मायने में यथार्थ सत्य साबित नहीं होती. सत्य तो यह है कि, व्यक्ति अपने मन के आगे मजबूर है. ये मन ही रावण के दस शीश को निर्मित करता है और यही मन राम जैसा पुरषोत्तम पुरुष बनने के लिए प्रेरित भी करता है.

#dushera: दशहरे पर दहन करें समाज के इन असली रावणों को

आज दशहरे के पर्व पर सभी लोग रावण दहन कर अपने – अपने घर को लौट जायेंगे और सभी इस बात से भली – भाँती परिचित भी हैं कि सिर्फ रावण दहन से दशहरा, या दशहरे से रावण दहन नहीं होता बल्कि ये प्रतीक है असत्य पर सत्य कि विजय का, ये प्रतीक है अधर्म पर धर्म की जीत का. हम सभी को दशहरे पर अपने अंदर के रावण को मारने के लिए कृत संकल्प होना पड़ेगा तभी सही मायने में दशहरा पर्व सार्थक हो सकता है. मेरी नज़रों में दशहरा पर्व सिर्फ रावण दहन करना नहीं वल्कि आज की आपराधिक प्रवत्तियों को दमन करने से मनाया जाए तो कुछ बात बने. वो कहते हैं ना कि “मन के हारे हार है और मन के जीते जीत”. मेरी नज़रों में यह दस कारण है जो आज के रावण को जन्म देते हैं…

1- आतंकवाद जैसा नासूर भी उन गिने चुने नामर्दों के मन का ही परिणाम है, जो अपने मन पर काबू नहीं कर सकते और इस घिनोने कृत्य को अंजाम देते हैं.

2- देश के वो गद्दार, चाहे वह नेता हो या आम आदमी, ये उनका मन ही है जो अपनी रोटी सेंकने के लिए देश का अहित भी करने से नहीं चूकते. ये “जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करना” नहीं भूलते.

3- देश के अंदर फैला भ्रष्टाचार भी पापी मन की उपज का परिणाम है.

4- हमें गर्व है अपने देश के वीर जवानों और देश के लिए तत्पर रहने वाले सैनिको पर, जो अपने मन के आगे मजबूर हैं. जिनका मन राष्ट्र की सुरक्षा में अपने प्राण विसर्जित करने को हमेशा तत्पर रहता है. वह सैनिक जो बिना किसी स्वार्थ के, बिना किसी भेद – भाव के सरहद पर हर एक मौसम में हमारी सुरक्षा में सदैव अपने प्राणों की आहुति देने को तैयार खड़ा रहता है ये उसका मन ही तो है जो उसे ऐसा करने को बाध्य रखता है.

5- लानत है उन नेताओं और अभिनेताओं पर, जिन पर देश की जनता अपना प्यार लुटाती है और उन पर श्रद्धा रखती है. पर असल मायने में उनका ही मन रावण वंशी है जो जनता एवं हमारे प्यारे और वीर सैनकों की भावनाओं से खिलवाड़ करते हैं. अपनों के तीखे शब्द वाणों से जितनी पीड़ा होती है, उतनी तकलीफ तो दुश्मन की गोली से भी नहीं होती.

6- किसी – किसी का मन तो अपना नाम करने के लिए किसी भी सीमा को लांघ सकता है, फिर चाहे उसके लिए अपने देश को ही क्यों न दांव पर लगाना पड़े.

7- एक मन वह भी है जो सिर्फ अपना हित सोचता है. इसके लिए फिर भले अपनों की ही बलि क्यों ना देनी पड़े. चाहे वह तस्करी हो या फिर नशा.

8- किसी – किसी का मन दुःशासन वाला भी होता है जो महिलाओं या फिर अपनी ही बहन – बेटियों का चीर हरण करते हैं. उन्हें समाज में ही बेइज्जत करते हैं.

9- एक मन वह, जो सिर्फ अपने स्वाद के लिए किसी भी जीव की हत्या करने से नहीं चूकते. उन मूक प्राणियों पर जुल्म करते हैं, अत्याचार करते हैं.

10- किन्तु मेरी नज़रों में तो वह मन ही सबसे महान है जो अपनी ख़ुशी, अपनी आकांक्षाओं को मार कर दूसरों को ख़ुशी दे, प्यार दे. मन पर जीत पाना ही इस पर्व को सार्थक बनाता है.

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सही मायने में अपने कुसित, अत्याचारी, अन्यायी, क्रोधी, लोभी, मान, कषाय, काम, मोह, एवं हिंसा आदि का मन में विचार ना लाना या इनका नाश करना ही सच्चा दशहरा है.

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