त्रिविध रूपों की एक ही समय भक्ति करने का अतीव महत्वपूर्ण पर्व है-नवरात्रि

2015_10image_11_11_000870947navdurga-ll (2) नवरात्रों का भारतीय समाज में और विशेष रूप से हिन्दू समुदाय में विशेष महत्व है। ‘नवरात्र’ को विश्व की आदि शक्ति दुर्गा की पूजा का पावन पर्व माना गया है। शारदीय नवरात्र प्रतिपदा से शुरू होकर नवमी तक चलते हैं और शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा की प्रतिमाएं बनाकर प्रतिपदा से नवमी तक उनकी बड़ी निष्ठा से पूजा की जाती है व व्रत रखा जाता है तथा दशमी के दिन इन प्रतिमाओं को गंगा या अन्य पवित्र नदियों में विसर्जित कर दिया जाता है। नवरात्र नवशक्तियों से युक्त हैं और हर शक्ति का अपना-अपना अलग महत्व है। भगवती की आराधना के लिए वर्ष में दो बार उपयुक्त समय माना जाता है-चैत्र और आश्विन मास ।

इन्हें वासंतिक एवं शरद नवरात्र नाम से भी जाना जाता है।अनंत कोटि ब्रह्मांडों  के अधिपति परम पिता परमेश्वर की एक आदिशक्ति  है।उसी आदिशक्ति  के तीन सगुण रूप हैं : दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती जो क्रमश: दुष्टों के मर्दन, सम्पत्ति के सम्पादन तथा ब्रह्मविद्या के प्रकाशन का कार्य करती हैं। अत: दुखी, द्रवित व्यक्ति दुर्ग तिहारिणी दुर्गा देवी की आराधना करते हैं, तो लक्षविधि सम्पदाओं को चलाने वाले अर्थार्थी जन महालक्ष्मी की और सत्य के जिज्ञासुगण विद्या प्रदायिनी सरस्वती की उपासना करते हैं। 

इस प्रकार अपनी-अपनी कामना के अनुसार भक्तजन जगज्जननी आदि शक्ति की विविध रूपों में पूजा करते रहते हैं, उस आदि शक्ति के त्रिविध रूपों की एक ही समय भक्ति करने का अतीव महत्वपूर्ण पर्व है-नवरात्रि। मूलत: मां दुर्गा की उपासना शक्ति, समृद्धि तथा ज्ञान के संचय तथा संवद्र्धन के लिए की जाती है। अनादिकाल में मनस्वी, भक्तजन इसी शक्ति का आह्वान कर अपना और जगत समूह का उद्धार करते आ रहे हैं। आदि गुरु शंकराचार्य जी भी देवी के उपासक रहे हैं। उन्हें ऐसी शक्तियां प्राप्त हुई हैं, युगों-युगों तक उनकी कीॢत गाई जा रही है।

गोस्वामी तुलसीदास जी भी भगवान राम  तक पहुंचने के लिए माता सीता (देवी का स्वरूप) का ही आह्वान करते हैं। इसका आह्वान करने पर जब वह शक्ति मानव के मानस पटल के मन बुद्धि सब में छा जाती है तो उसका फल देवि कवच में इस प्रकार बताते हैं : 

‘न तेषां जायते किचिदशुभं रण संकटे।
नापदं तस्य पश्यामि शोक दुख भयं न हि।।’

जो भगवती दुर्गा की शरण में आ जाते हैं उनका कभी कोई अमंगल नहीं होता। उन्हें शोक, दुख और भय की प्राप्ति नहीं होती। देवी शक्ति विषम परिस्थितियों में रक्षा करने वाली है। देवी जी के नौ स्वरूप हैं । वे सब आध्यात्मिक प्रतीकात्मक सदस्य हैं यथा : 

1. शैल पुत्री (श्रद्धा की प्रतीक), 2. ब्रह्मचारिणी (वैराग्य की प्रतीक), 3. चंद्रघंटा (स्वच्छ निर्मल मन की प्रतीक), 4. कूष्मांडा (आसुरी वृत्तियों पर विजय की प्रतीक), 5. स्कंदमाता (दैवी गुणों की रक्षा का प्रतीक), 6. कात्यायनी (सत्वगुण की प्रतीक), 7. कालरात्रि (सत्वगुण बुद्धि के मनोलय की प्रतीक), 8. महागौरी (मनोलय हो जाने के बाद साधक को एक नित्य प्रकाश चेतना का अनुभव होता है। इसी भाव का प्रतीक देवी का  महागौरी  स्वरूप है), 9. सिद्धि दात्री : (सिद्धि अर्थात इष्ट कार्य में सफलता यानी परमात्मा को प्राप्त  करके) परमात्मा में स्थित होने की प्रतीक है।
देवियों से करबद्ध प्रार्थना करते हुए उनकी सवारियों का भी आह्वान करो। ये सवारियां भी देवियों की शक्ति का प्रतीक हैं। वस्तुत: यह सारा ब्रह्मांड ही देवी का रूप है। भारत में पर्व और उत्सव, भगवती पूजन आदि का आयोजन हमारे जीवन के प्रकाश स्तम्भ हैं। भक्तजन माता जगदम्बिका भवानी के विविध स्वरूपों की पूजा-अर्चना करके अपने इस परम अमूल्य समय को सार्थक बनाते हैं। वेद, शास्त्रों में परम तपस्वी  मनीषियों ने मानव कल्याण हेतु अनेक प्रकार के पूजा-पाठ यज्ञ अनुष्ठान, जप, नियम, संयम आदि सद्कार्यों के द्वारा मानव उत्थान के लिए सुगम मार्ग बताए हैं परंतु नवरात्र पर्व भगवती पूजन व उपासना का श्रेष्ठ समय है। भगवती पूजन से भक्तों को अद्भुत शक्ति और आलौकिक ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त होती है जो जितनी निष्ठा से, श्रद्धा से, नियमित पूजन करते हैं उतना ही लाभान्वित होते हैं।  

 

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