‘तेल के खेल’ से बिगड़ सकती है मोदी सरकार की सेहत

नई दिल्ली : मोदी सरकार के लिए ‘तेल का खेल’ सिरदर्द साबित हो रहा है| वर्ष 2015 में दिल्ली में हुई एक चुनावी रैली के दौरान प्रधानमंत्री ने विपक्षी पार्टियों को जवाब देते हुए कहा था कि ठीक है, मान लेते हैं कि मैं सौभाग्यशाली हूं, लेकिन लोगों ने पैसा बचाया या नहीं? यदि मोदी की किस्मत से लोगों का फायदा हो रहा है, इससे ज्यादा सौभाग्य की बात क्या हो सकती है। यदि मेरी किस्मत की वजह से पेट्रोल और डीजल के दाम कम होते हैं तो किसी अनलकी को लाने की क्या जरूरत है? शेयर बाज़ार में प्रचलित कहावत कि यहां हर किसी का वक़्त आता है। कभी बाज़ी तेजड़ियों (बुल रन) के हाथ लगती है तो कभी शिकंजा मंदड़ियों (बीयर रन) का कसा रहता है। यानी शेयरों से कमाई हर कोई कर सकता है, बशर्ते वो ‘अपने वक्त’ के हिसाब से बाज़ी लगा रहा हो।

यही कहावत कच्चे तेल (क्रूड ऑयल) की कीमतों पर भी लागू है। यहां तक कि कमोडिटी (सोना-चांदी) और प्रॉपर्टी बाज़ार को लेकर भी ऐसी ही कहावतें प्रचलित हैं। साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी सत्ता में आए थे तो लोकसभा सीटें उनकी झोली में भर-भरकर आई थीं। आर्थिक हालात भी उनके पक्ष में थे। उस वक्त कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का दौर जारी था। 6 जनवरी 2014 को कच्चा तेल 112 डॉलर प्रति बैरल पर था और इधर मोदी का चुनाव प्रचार भी जोरों पर था। उनकी चुनावी रैलियों में महंगाई से लेकर पेट्रोल के दाम छाये रहते थे। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में एक रैली के दौरान खुद को देश के लिए ‘किस्‍मत वाला’ बताया था। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के एक साल से भी कम समय में कच्चे तेल की कीमत 112 डॉलर प्रति बैरल से 53 डॉलर प्रति बैरल हो गई थी। बड़े स्तर पर सोशल सेक्टर में निवेश के लिए बेकरार और राजकोषीय घाटे से जूझ रही सरकार के लिए यह किसी तोहफ़े से कम नहीं था।

इस बीच विपक्ष भी इस बात को जानता था कि 90 फ़ीसदी से अधिक तेल इंपोर्ट करने वाले देश को अगर आधी कीमत पर तेल मिलने लगे तो सरकारी खजाने के लिए कितनी राहत की बात हो सकती है। यही वजह थी कि विपक्ष भी कहने लगा कि ऐसा मोदी सरकार की नीतियों की वजह से नहीं हुआ, बल्कि ये मोदी की ‘किस्मत’ है। देखते ही देखते जनवरी 2016 तक कच्चे तेल के दाम 34 डॉलर तक लुढ़क गए। लेकिन यहां से फिर कच्चे तेल का बाज़ार पलटने लगा और धीरे-धीरे ही सही, लेकिन मोदी सरकार की मुश्किलें भी बढ़ने लगी और अब ये 80 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर कामकाज कर रहा है।

हालांकि शुरू में मोदी सरकार ने कच्चे तेल की गिरावट की रैली का खूब फ़ायदा उठाया। जिस तरह अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल के भाव थे, भारत में पेट्रोल पंपों पर उसका ख़ास असर नहीं था और सरकारी खजाना भी लगातार भरता गया। इस दौरान, पेट्रोल-डीज़ल पर 9 बार उत्पाद कर (एक्साइज़ ड्यूटी) बढ़ाया गया| नवंबर 2014 से जनवरी 2016 के बीच पेट्रोल पर ये बढ़ोतरी 11 रुपये 77 पैसे और डीजल पर 13 रुपये 47 पैसे थे। लेकिन तेल को लेकर ही विपक्षी मोदी सरकार को घेरने लगे हैं।

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