तुम्हें क्यों है? दूसरों से जलन- स्वामी सुखबोधानंद

कुछ चीजें आपके जीवन में ऐसी होती हैं जो आपके हाथ में नहीं होती हैं लेकिन उनके साथ भी आपको जीते आना चाहिए।जिंदगी में कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिन पर आपका पूरा नियंत्रण होता है और कुछ ऐसी भी होती हैं जिन पर कभी पूरा नियंत्रण नहीं हो सकता।

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लेकिन आपको पूरी जागरूकता के साथ अपनी जीवन जीना चाहिए। आखिर इस तरह जीने में क्या सम्मिलित है? जागरूकता के साथ जीने का मतलब यही है कि आप नियंत्रण में होने वाली और नियंत्रण से बाहर की चीजों को अपने जीवन में शामिल करते हैं।

आपकी परवरिश ठीक से नहीं हो सकती है। इसमें आपकी कोई भूमिका नहीं है लेकिन यह आपके हाथ में है कि आप इस तरह के बचपन की छाया को अपने ऊपर हावी न होने दें।

मैं आपको एक सत्य कथा बताता हूं। एक पिता और उनके दो पुत्र एक ही कमरे के मकान में रहते थे। फादर रोज रात को शराब पीकर घर आते और टीवी देखते हुए बच्चों की पढ़ाई का समय खराब कर देते थे। बड़े बेटे ने जहां इन हालात में भी पढ़ाई जारी रखी तो छोटा पिता के नक्शेकदम पर आगे बढ़ गया। जब दोनों बड़े हुए तो बड़े बेटे को अच्छे नागरिक के लिए पुरस्कार मिला जबकि छोटा बेटा एक जुर्म में पकडा गया और उसे जेल हो गई।

जब उन दोनों से बातचीत की गई तो छोटे बेटे ने कहा ‘मैं अपने पिता के कारण यहां पहुंच गया। मेरे पिता ने घर को नरक बना दिया था और वहां से मैं और कहां पहुंच सकता था।” बड़े बेटे ने कहा, ‘मेरी सफलता में पिता की गलत आदत और घर के खराब माहौल का बड़ा हाथ है क्योंकि वहीं मुझे यही सीख मिली कि मुझे इस राह पर हरगिज नहीं जाना है।

एक ही स्थिति में दो लोग अलग-अलग तरह से काम करते हैं। यह किस तरह स्थितियों का सामना करते हैं उसी से हमारी पहचान बनती है।

जब हम दूसरे की सफलता का जश्न नहीं मना पाते हैं तो हमारे भीतर ईर्ष्या पैदा होती ही है। जब किसी से हमारी गैरवाजिब तुलना की जाती है तो भी जलन होती है। एक व्यक्ति प्रार्थना करता है, ‘हे भगवान, मेरी कामनाओं को पूरा कर। मैं हमेशा तेरे आगे सर झुकाऊंगा।” भगवान कहते हैं, ‘मैं जितना तेरी इच्छाओं को पूरा करूंगा उतना ही तू नाराज होता जाएगा। अपने आपको बदलने की तरफ ध्यान दो बजाय कि अपनी कामनाओं को पूरा करने के।”

लेकिन वह आदमी बार-बार आग्रह करता है और तब भगवान कहते हैं, ‘मैं तुम्हारी इच्छाएं पूरी कर दूंगा लेकिन एक शर्त है कि तुम्हें जो कुछ भी मिलेगा उसका दुगुना पूरे शहर को मिलेगा।”वह व्यक्ति राजी हो जाता है।

वह व्यक्ति एक बड़े मकान की ख्वाहिश करता है और अगले ही क्षण उसका यह मकान पूरा हो जाता है। लेकिन यह प्रसन्नाता गायब हो जाती है जब वह देखता है कि उसके पड़ोसी के पास उस तरह के दो मकान हैं। इससे उसके भीतर गुस्सा और जलन पैदा होती है। उसे लगता है कि उसने भगवान को प्रसन्ना किया और जो वरदान मिला उसका फायदा सभी ले रहे हैं। वह सभी को सबक सिखाने का निर्णय लेता है।

वह फिर से प्रार्थना करता है और भगवान से कहता है, ‘हे, भगवान मेरी एक आंख छीन ले।” तभी उसने पाया कि उसके पड़ोसी की दोनों आंखें चली गई हैं। इसके अगले दिन उसने पाया कि पूरे शहर के साथ ऐसा ही हुआ है। अब वह अकेला रह गया। पूरे शहर की आंखों की रोशनी छीन लेने का उसका उत्साह उसी पर भारी पड़ा।

टैगोर एक रोचक कथा कहते हैं। एक युवा ज्ञान की तलाश कर रहा था। वह कई लोगों से मिला। बहुत वर्ष बीत गए। वह हिमालय की घाटी पहुंच गया। यहां का वातावरण बहुत मोहक था। उसे लगा कि यही ईश्वर का घर है।

वह एक बहुत सुंदर घर में गया और उसे एक बोर्ड दिखाई दिया, ‘यहां ईश्वर रहता है।” उस व्यक्ति की खुशी की सीमा नहीं रही कि उसकी खोज पूरी हुई। जब वह दरवाजा खटखटाने वाला ही था तभी उसके मन में आया, ‘मैंने इतने वर्ष ईश्वर की खोज का आनंद उठाया। अब वह आनंदपूर्ण सफर खत्म हो रहा है। वह क्षण आ गया है कि अब मैं ईश्वर से मिलने वाला हूं…”

अगर कोई व्यक्ति अपनी खोज का आनंद उठा सकता है और उससे अपने लिए संतुष्टि तलाश सकता है तो उसने ईश्वर को पा ही लिया है। हमें खुद को यही सिखाना है कि अपनी यात्रा का आनंद लो।

 

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