डायबिटीज को निंयत्रित रखकर मनायें रमजान

लखनऊ: ब्लड शुगर में बढ़ोतरी वाला आजीवन रोग दुनियाभर में तेजी से बढ़ रहा है। भारत में 72.9 मिलियन लोगों को डायबीटीज है। डायबिटीज अब धनवानों का रोग नहीं रहा। दुनिया के हर 6 डायबिटीज मरीज में एक भारतीय है। डायबिटीज से ग्रस्त 19 साल से कम उम्र के बच्चों और किशोरों की अनुमानित संख्या बढ़कर दस लाख से ऊपर हो गई है। तेजी से शहरीकरण, अस्वास्थ्यकर भोजन और अधिक शिथिल जीवनशैली के कारण डायबीटीज में अभूतपूर्व बढ़ोतरी हुई है। डायबीटीज के पीछे उपवास भी एक बड़ा कारण है। इससे खतरनाक स्तर तक ब्लड शुगर बढ़ सकता है।

त्योहारों के मौसम में डायबिटीज के मरीज अपने स्वास्थ्य के साथ कुछ न कुछ लापरवाही कर ही देते हैं। रमजान इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना होता है और इस दौरान दिनभर उपवास यानी रोजा रखना इस्लाम के पाँच स्तंभों में से एक है। सभी स्वस्थ वयस्त मुसलमानों के लिए रमजान के दौरान उपवास रखना अनिवार्य है, हालाँकि डायबीटीज सहित कतिपय गंभीर बीमारी वाले लोगों को इससे छूट दी गई है। डायबिटीज से ग्रसित अनेक मुसलमान रोजा रखते हैं और ऐसी स्थिति में व्यावहारिक डायबीटीज और रजमान संबंधी मार्गदर्षन और भी जरूरी हो जाता है। इससे जुडे़ संभावित खतरों में हाइपोग्लाइसेमीआ, हापरग्लाइसेमीआ, डिहाइड्रेशन और गंभीर चयापचयी समस्याएँ, जैसे कि डाइबिटिक केटोएसिडोसिस शामिल हैं।

होटल रेडिसन में शुक्रवार को आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस में डॉ दिनेश कुमार, मधुमेह विशेषज्ञ, हर्षा क्लिनिक ने बताया कि रोजा के दौरान डायबिटीज का बेहतर प्रबंधन बेहत जरूरी है। रोजा के दौरान और रमजान के बाद डॉक्टर से सलाह करके दवाओं और देखभाल और रोजा को सहने के तरीकों पर बातचीत करनी चाहिए। मरीज को ईद-उल-फितर समारोह के वक्त अतिउत्साह के खतरों से अवगत कराना चाहिए। नियमित रूप से उनका ब्लड ग्लुकोज स्तर जाँचते रहें और डॉक्टर द्वारा बताए गए अनुसार दवाओं की खुराक और समय व्यवस्थित करते रहें। इसी मौके पर डॉ संजय अरोड़ा, सलाहकार चिकित्सक, डैंज क्लिनिक और नाबार्ड बैंक अस्पताल ने कहा कि यद्यपि रोजा के दौरान हाइपोग्लेसेमीआ और/या डिहाइड्रेशन का खतरा बढ़ने के कारण कठोर परिश्रम की मनाही रहती है, फिर भी डायबिटीज के मरीजों को रमजान के दौरान नियमित रूप से हल्का से मध्यम व्यायाम करने के लिए उत्साहित किया जाना चाहिए। मरीज को याद दिलाते रहें कि उन्हें तरावीह नमाज में झुकने और उठने जैसी शारीरिक मेहनत को अपना दैनिक व्यायाम मानना चाहिए।

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