ज्ञान गंगा : लक्ष्‍य के अंतिम चरण में जरूरी सजगता

जंclimbdowntree_04_10_2015गल में लकड़ियां काटने के लिए जाने वाले युवकों को गांव के एक बुजुर्ग (जिन्हें सब प्यार से बाबा कहते थे) पेड़ पर तेजी से चढ़ने-उतरने का प्रशिक्षण दे रहे थे। एक दिन बाबा ने उनसे कहा – ‘तुम लोग काफी कुछ सीख चुके हो। मैं चाहता हूं कि तुम सब एक-एक कर इस चिकने व लंबे पेड़ पर तेजी से चढ़-उतरकर दिखाओ।” युवक अपना कौशल दिखाने के लिए तैयार हो गए।

पहले युवक ने तेजी से पेड़ पर चढ़ना शुरू किया और देखते-देखते पेड़ की सबसे ऊंची शाखा पर पहुंच गया। फिर उसने उतरना शुरू किया। जब वो लगभग आधे से ज्यादा उतर आया और नीचे पहुंचने ही वाला था, तो बाबा ने आवाज लगाई – ‘जरा संभलकर। आराम से उतरो, कोई जल्दबाजी नहीं।” युवक सावधानीपूर्वक नीचे उतर आया।

इसी तरह बाकी युवक भी पेड़ पर चढ़े-उतरे और हर बार बाबा ने आधा उतर आने के बाद उन्हें सावधान रहने को कहा। एक युवक ने पूछा – ‘बाबा, पेड़ का सबसे कठिन हिस्सा तो एकदम ऊपर वाला था, जहां पे चढ़ना व उतरना दोनों ही बहुत कठिन था। आपने तब हमें सावधान होने के लिए नहीं कहा। पर जब हम आधे से ज्यादा हिस्सा नीचे उतर आए, तभी आपने हमें सावधान होने के निर्देश क्यों दिए?”

बाबा गंभीर होते हुए बोले – ‘बेटे, यह तो सभी जानते हैं कि ऊपर का हिस्सा सबसे कठिन होता है, इसलिए वहां पर हम सब खुद ही सतर्क हो जाते हैं और पूरी सावधानी बरतते हैं। लेकिन जब हम अपने लक्ष्य के समीप पहुंचने लगते हैं, तो वह हमें बहुत ही सरल लगने लगता है। हम जोश में होते हैं और अति-आत्मविश्वास से भर जाते हैं और इसी समय सबसे अधिक गलती होने की आशंका होती है। यही कारण है कि मैंने तुम लोगों को आधा पेड़ उतर आने के बाद सावधान किया, ताकि तुम अपनी मंजिल के निकट आकर कोई गलती न कर बैठो।” यह सुनकर युवकों को एक नई सीख मिली।

जीवन में सफल होने के लिए लक्ष्य निर्धारित करने के साथ-साथ यह भी जरूरी है कि जब हम लक्ष्य को हासिल करने के करीब पहुंचें और मंजिल को सामने पाएं तो कोई जल्दबाजी न करें। कई लोग लक्ष्य के निकट पहुंच धैर्य खो देते हैं और गलतियां कर बैठते हैं, जिस कारण वे अपने लक्ष्य से चूक जाते हैं।

 
 
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