जिंदगी की जंग जीत ली, पहाड़ क्या चीज है…

arunima-sinha_landscape_1457384323एजेंसी/कश्ती लहरों से लड़ती हुई आगे बढ़ जाती है
एक कदम बढ़ाओ, हिम्मत खुद हिमालय चढ़ जाती है…

यही फलसफा है उन बेटियों की जिनके हौसलों को एवरेस्ट भी सलाम करता है। ये बेटियां विषम परिस्थितियों में घबराती नहीं। उनका इरादा इतना बुलंद है कि पर्वतारोहण जैसे खतरनाक और जोखिम वाले काम को भी वे आसानी से अंजाम देने लगी हैं।

एक-दो बार नहीं, कई बार… पहाड़ों को चुनौती देने का उनका जज्बा बढ़ता ही जा रहा है। महिला दिवस पर आज ऐसी बेटियों के अदम्य साहस के बारे में बता रही हैं रोली खन्ना..।

अरुणिमा सिन्हा (एक पैर से एवरेस्ट फतह करने वाली पहली महिला)

तारीख : 21 मई 2013
समय : 10.55 मिनट
स्थान : माउंट एवरेस्ट

यह वहीं तारीख है जब एक चट्टान सी इरादों वाली लड़की महज एक पैर से माउंट एवरेस्ट फतह कर जाती है। अरुणिमा की कहानी लोगों के लिए प्रेरणा का सबब है। न तो माउंट एवरेस्ट की राहें सपाट थीं और न ही अरुणिमा के लिए जिंदगी… पर दम जीतने के बाद ही लिया।

आखिर इतना हौसला आया कहां से? अरुणिमा कहती हैं, ‘मेरा पैर सिर्फ चलने के लिए लगाया गया था, लेकिन मैं उससे एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए निकल पड़ी थी। रास्ते में एक समय ऐसा आया कि पैर अलग हो गया।

किसी तरह घिसटते हुए, एक हाथ में कृत्रिम पैर और दूसरे हाथ में रोप लिए, आगे बढ़ी। पर मुश्किलें खत्म नहीं हुईं। ऑक्सीजन खत्म हो गई। पर भरोसा था ‘मुझे जीतना है’। …और मैं जीत गई।’

 कभी वालीबॉल खिलाड़ी रहीं अरुणिमा को अपना एक पैर ट्रेन हादसे में गंवाना पड़ा। जमाने ने हजारों लांछन लगाए। कभी चरित्र पर अंगुली उठाई तो कभी कायर बता खुदकुशी की कोशिश करने का आरोप लगाया।

खामोशी से सब सुना और सहा। न जवाब दिया न किसी पर आरोप मढ़ा। अब जो कुछ था हौसला ही था। इसी की बदौलत दुनिया की ऐसी पहली महिला पर्वतारोही बनने का गौरव हासिल हुआ जिसने एक पैर से एवरेस्ट फतह किया।

रुकना मुझे मंजूर नहीं
अरुणिमा की जिद है दुनिया के सातों महाद्वीप की ऊंची चोटियों को फतह करना। पांच पर तिरंगा फहरा चुकी हैं। बस अंटार्कटिका और इंडोनेशिया की सबसे ऊंची चोटी को फतह करना बाकी है। अरुणिमा कहती हैं कि सब ठीक रहा तो दिसंबर तक अंटार्कटिका के लिए निकलूंगी। फिलहाल स्पोर्ट्स अकादमी खोलने में जुटी हुई हूं।

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