जानिए 12 ज्योतिर्लिंग में से एक महाकाल मंदिर के बारे में रोचक बातें..

शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव उज्जैन में खुद ही लिंग के रूप में विराजमान हुए थे। महाकालेश्वर को पृथ्वी का केंद्र माना जाता है। जानिए 12 ज्योतिर्लिंग में से एक महाकाल मंदिर के बारे में रोचक बातें।

 देशभर में महाशिवरात्रि का पर्व बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। बाबा के जयकारे हर तरफ से सुनाई देते हैं। ऐसे ही महाशिवरात्रि के दिन उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर मंदिर में बाब के दर्शन करना भाग्य की बात माना जाता है।

उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर मंदिर के बारे में कौन नहीं जानता है। इस मंदिर को 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। मान्यता है कि दक्षिणामुखी मृत्युंजय भगवान श्री महाकालेश्वर मंदिर के गर्भगृह में विराजमान होकर सृष्टि का संचार करते हैं।

मध्यप्रदेश के हृदय स्थल में स्थित है तीर्थ भूमि उज्जैन। माना जाता है कि उज्जैन पांच हजार साल पुराना नगर माना जाता है। इसे अवंती, अवंतिका, उज्जयिनी, विशाला, नंदिनी, अमरावती, पद्मावती, प्रतिकल्पा, कुशस्थली जैसे नामों से जाना जाता है।

महाकालेश्वर हैं स्वयंभू

शिवपुराण की एक कथा के अनुसार, दूषण नामक दैत्य के अत्याचार से उज्जयिनी के निवासी काफी परेशान हो गए थे। तब उन लोगों ने भगवान शिव की प्रार्थना की थी तो वह ज्योति के रूप में प्रकट हुए थे और राक्षस का संहार किया था। इसके बाद उज्जयिनी में बसे अपने भक्तों के आग्रह में लिंग के रूप में वहां प्रतिष्ठित हो गए थे।

क्यों कहा जाता है मृत्युंजय महाकालेश्वर

श्री महाकालेश्वर पृथ्वी लोक के राजा है। सभी ज्योतिर्लिंगों में से एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जिसकी प्रतिष्ठा पूरी पृथ्वी के राजा और मृत्यु के देवता मृत्युंजय महाकाल के रूप में की जाती है।

महाकालेश्वर से की जाती है काल गणना

माना जाता है कि काल गणना में शंकु यंत्र महत्वपूर्ण है। माना जाता है कि पृथ्वी के केंद्र उज्जैन में इसी शंकु यंत्र पर महाकालेश्वर लिंग स्थित है। यहीं से पूरी पृथ्वी की काल गणना की जाती है।

कितना पुराना है श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग

पुराणों के अनुसार, श्री महाकाल सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है। शिवपुराण के अनुसार, श्रीकृष्ण के पालक नंद से आठ पीढ़ी पहले महाकाल यहां विराजित हुए थे। इस ज्योतिर्लिंग के बारे में वेदव्यास ने महाभारत में, कालिदास, बाणभट्ट और आदि ने भी लिखा है।

भक्तों को अलग-अलग रूप में देते हैं महाकाल दर्शन

उज्जैन में विराजित महाकाल एक ही है, लेकिन वह अपने भक्तों को अलग-अलग रूपों में दर्शन देते हैं। हर वर्ष और पर्व के अनुरूप ही उनका श्रृंगार किया जाता है। जैसे शिवरात्रि में वह दूल्हा बनते हैं तो श्रावण मास में राजाधिराज बन जाते हैं। दिवाली में जहां महाकाल का आंगन दीपों से सज जाता है, तो होली में गुलाल से रंग जाता है। जहां ग्रीष्म ऋतु में महाकाल के मस्तक में मटकियों से जल गिरता है, तो कार्तिक मास में भगवान विष्णु को सृष्टि का कार्यभार सौंपने के लिए पालकी में विराजित हो जाते हैं। महाकाल के हर एक रूप को देखकर व्यक्ति मोहित हो जाता है।

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